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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 19, 2017

बलबीर पुंज जी अयोध्या मंदिर और गौवध पर मैकाले और मार्क्ष्स समर्थक ही नहीं अरुणाचल -मेघालय - नागालैंड मणिपुर और त्रिपुरा के निवासी भी असहमत

भारतीय जनता पार्टी के नेता और पूर्व पत्रकार बलबीर पुंज जी ने एक आलेख मे आरोप लगाया की अयोध्या मंदिर के निर्माण मे अंग्रेज़ो की शिक्षा प्रणाली से निकले लोग ही इसका विरोध कर रहे है | वैसे उनके कथन से तो सर्वोच्च न्यायालय भी आ गया है ,,क्योंकि उसने भी बाबरी मस्जिद विध्वंश के षड्यंत्र के लिए आडवाणी - उमा भारती जयभान सिंह पवैया समेत दर्जन भर नेताओ पर मुकदमा चलाये जाने का आदेश दिया है | मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह ने अदालत के आदेश पर प्रतिकृया व्यक्त की है की "” कोई माई का लाल भी आरोप साबित नहीं कर सकता "” अब यह बयान तो यही संदेह उत्पन्न करता है की उत्तर प्रदेश सरकार ही इस मुकदमे को जीतने का प्रयास नहीं करेगी | वरना इतने विश्वास से कोई अभियुक्त कैसे गर्जना कर सकता है |

रही बात गौवध पर सारे देश मे प्रतिबंध की राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के सर संघचालक डॉ मोहन भागवत के कथन की -उसमे अनेक कानूनी अडचने है | मोर राष्ट्रीय पक्षी है और सिंह राष्ट्रीय पशु है इन दोनों को मारने पर सज़ा का प्रावधान है | परंतु केरल और तमिलनाडू तथा पूर्वोतर के पांचों राज्यो मे गाय का मांस वनहा के लोगो के खाद्य पदार्थ है | अब इतनी बड़ी आबाड़ी को उत्तर भारत के आस्था और विश्वास के तले जबरन तो नहीं लाया जा सकता | संविधान की राज्य सूची मे खान -पान का विषय है | पूर्वोतर के राज्यो मे उत्तर भारत के विपरीत मात् सत्तात्मकपरिवार है अर्थात वनहा घर का मुखिया महिला होती है और , उत्तराधिकार भी उसी के अनुरूप होता है |
भारतवर्ष मे सभी राज्यो मे अपनी संसक्राति और भाषा तथा रिवाज है | जो दूसरों को असहज लगेंगे | तमिल परंपरा मे मामा -भांजी का विवाह उत्तम माना जाता है | उत्तर भारत मे यह निषिद्ध श्रेणी मे आता है --अर्थात इस विवाह को गैर कानूनी माना जाएगा | केरल के मलयाली समज के नायर समुदाय मे "”पाणिग्रहण "” नहीं होता वनहा "”संबंधम "” होता है | अब यह हिन्दु कोड के अनुरूप नहीं है | तो क्या हम उत्तर भारत की परंपरा और सोच को उन पर थोप सकते है ?? मेरा मानना है बिलकुल नहीं |

पुंज साहब जिस गुलामी मानसिकता की बात करते है ---उसे आजादी की लड़ाई के दौरान देश ने देखा है --जब संघ ने महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन का विरोध किया था | संघ समर्थित एक भी नेता उस लड़ाई मे नहीं था | सावरकर का नाम लिया जाता है --परंतु अभिलेखगर के सबूतो के अनुसार उन्होने अंग्रेज़ो से रिहाई के लिए माफी मांगी थी |

आज शगूफे के तौर पर इन मुद्दो को पुराने बस्तो से निकाल कर लाया जा रहा है --क्योंकि आज की नयी पीड़ी को भारत की विविधता और विभिन्नताओ की जानकारी नहीं है | उन्हे तो वही सत्य लगता है जो शासन के कंगूरे पर चाड कर बोला जा रहा हो | परंतु वह सत्य नहीं है तथ्य नहीं है |

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