खिलाड़ी
के खेलने पर आजीवन प्रतिबंध---
पर
एम पी और एम एल ए पर सिर्फ 6
साल
चुनाव लड़ने की बंदिश ??
एक
मामले मे सुप्रीम कोर्ट मे
केंद्र सरकार की ओर से कहा
गया है की भ्रष्ट और आपराधिक
व्यक्तियों के चुनाव लड़ने
पर आजीवन प्रतिबंध नहीं लगाया
जाये |
इतना
ही नहीं यह भी कहा गया की जन
प्रतिनिधियो के लिए न्यूनतम
शैक्षणिक यौग्यता की अनिवार्यता
निर्धारित नहीं की जाये |इसके
विपरीत बोर्ड ऑफ क्रिकेट
कंट्रोल ऑफ इंडिया ने केरल
के खिलाड़ी श्रीसंत पर गैर
कानूनी आचरण यानि "”फिक्सिंग
'' के
आरोप के आधार पर उनकी अपील
को खारिज करते हुए उन पर आजीवन
खेलने पर प्रतिबंध का फैसला
किया |
क्या
यह विसंगति नहीं है की एक
राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी की
एक गलती उसे खेलने से ही बाधित
कर दे ?
जबकि
अदालत से वह उस आरोप मे बरी हो
चुका हो ?
वनही
अदालत से सजायाफ्ता व्यक्ति
लाखो मतदाताओ का प्रतिनिधि
बन जाये ??
पहली
नजर मे लगेगा की ऐसे तर्क और
जवाब क्या नरेंद्र मोदी की
सरकार की ओर से अदालत मे दिये
जा सकते है ?
विश्वास
नहीं होगा --परंतु
यह विचित्र भले ही हो पर -सत्य
है !
जिस
देश मे पाँच हज़ार रुपया प्रति
माह की तंनख़्वाह चपरासी को
मिलती हो ,और
उसके लिए भी बारहवी क्लास पास
होना और सदचरित्र का प्रमाणपत्र
अनिवार्य हो वनहा एक हज़ार और
दो हज़ार रुपया प्रतिदिन का
भत्ता लेने वाले जन प्रतिनिधियों
को इन शर्तो से छूट मिले भला
क्यो ?|
सरकार
की इस मजबूरी का एक ही कारण
संभव है --की
चरित्रवान और शिक्षित लोगो
का राजनीतिक दलो मे नितांत
अभाव हो ?
जब
बाहुबली और आपराधिक मामलो के
- आरोपी
और कम पड़े लिखे लोग विधायी
सदन मे जाएँगे -तब
वे केवल और केवल हाथ ही उठाने
लायक होंगे --चाहे
पक्ष की ओर से या विपक्ष की ओर
से ! है
न अद्भुत सत्य ?
मजे
की बात है की इस मांग का समर्थन
सभी राजनीतिक दल करेंगे |
चाहे
वे एक दूसरे को सार्वजनिक रूप
से कितनी ही लानत -
मलानत
करे परंतु लाभ के अवसरो
पर सब एक हो जाते है जैसे वेतन
और भत्ते के निर्धारण की बात
हो अथवा चरित्र और शिक्षा की
अनिवार्यता की बात हो |
तब
उन्हे शुचिता और न्याय की बात
नहीं सूझती है |
देश
मे भूख -अशिक्षा
- पेयजल
ऐसी समस्याओ पर दोनों ही पक्ष
एक -दूसरे
की छीछालेदार भले करे ,
परंतु
कोई ठोस हल निकालने की कोशिस
नहीं होती है |
सिर्फ
"”
मुझ
से अच्छा कौन है "”
की
आतम मुग्धता से ग्रसित देश
के राजनीतिक दल अपने -अपने
वोट बैंक को सम्हालने के लिए
जनता के हितो की कुर्बानी देते
है |
परंतु
कोई भी दल नौकरशाही या अफसरशाही
के तंत्र से नहीं बच पाता है
|
चुनाव
के दौरान सफलता का श्रेय और
असफलता का दोष पार्टिया एक
-दूसरे
पर लगाती है |
परंतु
कोई भी इस ओर प्रयास नहीं करता
की जिस तंत्र के कारण जन कल्याण
की योजनाए धरातल पर असफल हो
रही---
वह
सिर्फ "”बाबूतन्त्र
"”
के
भ्रष्टाचार के कारण लोगो तक
नहीं पहुँच पाता |
उसका
समाधान खोजा जाये |
इस
भ्रष्ट तंत्र से निरीह किसान
और और गरीब जनता को कैसे बचाया
जाये |
सोवियत
यूनियन -जिसकी
स्थापना मजदूर हितो को लेकर
जन सघर्ष किया गया ---उस
ऐतिहासिक जन क्रांति को 70
{सत्तर
}
साल
मे नौकरशाही ने ध्वष्त कर
दिया |
ऐसे
मे अशिक्षित और आपराधिक
प्रष्ठ भूमि के जन प्रतिनिधि
क्या जन कल्याण कारी कार्य
कर सकेंगे ??
ऐसे
मे केंद्र सरकार की ओर से
महान्यायवादी रोहतगी द्वरा
दी गयी यह दलील कितनी सही है
--इसका
मूल्यांकन करना और --होना
जरूरी है |
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