पेट्रोल हुआ सस्ता फिर भी मंहगाई डायन जाये नाही काहे ?
आखिर सरकार ने पेट्रोल के दाम कम किए जब विदेशी बाज़ार मे कच्चे तेल के दाम गिर गए , पर दिल्ली मे उसी दिन टॅक्सी के किराए मे बदोतरी हो गयी | पेट्रोल के दामो मे गिरावट से जो फर्क परिवहन और अन्य छेत्रों मे होना था , वह नहीं हुआ | पर ऐसा क्यो हुआ इस सवाल का जवाब उन लोगो के पास भी नहीं हे जिनहोने दामो के बड़ाये जाने पर काफी हो - हल्ला मचाया था | मज़े की बात हे की सोना और चाँदी के दामो मे भी लगातार गिरावट देखी जा रही हे पर रोज़मर्रा की वस्तुओ के दामो मे कोई कमी नहीं आ रही हे , आखिर इसका क्या कारण हे , यह अर्थ शास्त्रियों के शोध का विषय है |
बाज़ार मे चीनी के दाम और सीमा पर चीनियों का अतिक्रमण चिंता का कारण बना हुआ है , सवाल यह है की जब दाम बदते है तब दुकानदार कभी पेट्रोल कभी तक्ष का बहाना बनाते है पर जब डरो मे कमी आती है तब वे अपने दाम कम नहीं करते , और सड़क पर लोग गाना गाते है की "मंहगाई डायन खाये जात है " पर इसके उलट जब होता है तब कोई पैरोडी नहीं बनती | क्या इसका कारण यह है की आम जनता के कष्टो का कारण तो सरकार की नीतियाँ है| पर क्या यह तस्वीर सही है ?
बाज़ार पूरी तरह से मांग - आपूर्ति {गडकरी वाली नहीं } पर नहीं चलता है , कई स्थानो पर सरकारी नियंत्रण या हस्तछेप बाज़ार भावो मे प्रभाव डालता है | परंतु क्या बात है की दाम मे सरकारी कदम के कारण बड़ी हुई कीमत , तब कम नहीं होती जब यह नियंत्रण ढीला होता है | इसे व्यापारियो की मुनाफा कमाने की मानसिकता कहे या कुछ और संज्ञा दे ? हवाई जहाज़ के ईंधन के दामो मे कमी हो गयी पर उनके किराए की दरो मे यह नहीं दिखाई पड़ता ,जब की मुसाफिर के टिकिट मे ईंधन के नाम पर अलग वसूली होती है | आज भी उसी दर पर यह वसूली जारी है जबकि उसके दामो मे कमी हो गयी है , यह कुछ ऐसे प्रश्न है जिनके उत्तर हुमे खोजने होंगे , और जबर्दस्ती सड़क पर धारणा -प्रदर्शन करने के पहले इन स्थितियो पर विचार करना होगा |
आखिर सरकार ने पेट्रोल के दाम कम किए जब विदेशी बाज़ार मे कच्चे तेल के दाम गिर गए , पर दिल्ली मे उसी दिन टॅक्सी के किराए मे बदोतरी हो गयी | पेट्रोल के दामो मे गिरावट से जो फर्क परिवहन और अन्य छेत्रों मे होना था , वह नहीं हुआ | पर ऐसा क्यो हुआ इस सवाल का जवाब उन लोगो के पास भी नहीं हे जिनहोने दामो के बड़ाये जाने पर काफी हो - हल्ला मचाया था | मज़े की बात हे की सोना और चाँदी के दामो मे भी लगातार गिरावट देखी जा रही हे पर रोज़मर्रा की वस्तुओ के दामो मे कोई कमी नहीं आ रही हे , आखिर इसका क्या कारण हे , यह अर्थ शास्त्रियों के शोध का विषय है |
बाज़ार मे चीनी के दाम और सीमा पर चीनियों का अतिक्रमण चिंता का कारण बना हुआ है , सवाल यह है की जब दाम बदते है तब दुकानदार कभी पेट्रोल कभी तक्ष का बहाना बनाते है पर जब डरो मे कमी आती है तब वे अपने दाम कम नहीं करते , और सड़क पर लोग गाना गाते है की "मंहगाई डायन खाये जात है " पर इसके उलट जब होता है तब कोई पैरोडी नहीं बनती | क्या इसका कारण यह है की आम जनता के कष्टो का कारण तो सरकार की नीतियाँ है| पर क्या यह तस्वीर सही है ?
बाज़ार पूरी तरह से मांग - आपूर्ति {गडकरी वाली नहीं } पर नहीं चलता है , कई स्थानो पर सरकारी नियंत्रण या हस्तछेप बाज़ार भावो मे प्रभाव डालता है | परंतु क्या बात है की दाम मे सरकारी कदम के कारण बड़ी हुई कीमत , तब कम नहीं होती जब यह नियंत्रण ढीला होता है | इसे व्यापारियो की मुनाफा कमाने की मानसिकता कहे या कुछ और संज्ञा दे ? हवाई जहाज़ के ईंधन के दामो मे कमी हो गयी पर उनके किराए की दरो मे यह नहीं दिखाई पड़ता ,जब की मुसाफिर के टिकिट मे ईंधन के नाम पर अलग वसूली होती है | आज भी उसी दर पर यह वसूली जारी है जबकि उसके दामो मे कमी हो गयी है , यह कुछ ऐसे प्रश्न है जिनके उत्तर हुमे खोजने होंगे , और जबर्दस्ती सड़क पर धारणा -प्रदर्शन करने के पहले इन स्थितियो पर विचार करना होगा |
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