कराहते
श्रमिकों को बेहाली में -
राज्यारोहण
की वर्षगांठ -कितना
क्रूर हैं !
घर
वापसी के लिए उत्तर प्रदेश -
बिहार
-झारखंड
और मध्य प्रदेश
के
मजदूरो से भरी श्रमिक ट्रेनों
की बदहाली और बदइंतजामी शायद
मोदी सरकार के दूसरी पाली का
सबसे दुखद अनुभव होगा -
अगर
उन्हे लगा तब !
अन्यथा
रेल मंत्री पीयूष गोयल के
खोखले कथन ट्विटर पर आते ही
हैं |
जिनमें
वे अपने को पूरी तरह से पाक
साफ और बेदाग होने का दावा
करते ह हैं !
हालांकि
देश के लोकतन्त्र के इतिहास
में सत्ता का सच से मुंह मोड़ने
के कई अनुभव हुए हैं |
परंतु
कोरोना के आतंक ने तो केंद्र
और -राज्य
सरकारो के हाथ -पैर
ही सुन्न कर दिये हैं ,
इसीलिए
शायद उन्हे बसो से 43
डिग्री
की लू और गर्मी में भी बिना
खाना और -पानी
के अपने -
अपने
जनम स्थान की ओर आस की डोर लगाए
सब कुछ सह रहे हैं |
उनका
कष्ट उनका हैं ,
वे
शायद उस जनता के भाग नहीं हैं
---जो
सरकारो को {सत्ता
सिंहासन }
बनाती
हैं !
कान्हा
तो कोरोना के हमले के मुक़ाबले
के लिए सरकारो ने बड़े -
बड़े
सार्वजनिक बयान दिये ,
फिर
क्या हुआ जो भारत आज नागरिकों
के टेस्ट और उनके परिणामो को
"”गोपनीय"”
रख
रहा हैं ?
क्यो
नहीं संक्रमितों और भर्ती
होने वालो की अस्पताल वार
गिनती बताने का कोई आधिकारिक
श्रोत नहीं हैं ?
केंद्र
ने भी अपने संयुक्त सचिव को
प्रैस से मिलने औए सवाल पुछने
की सुविधा बंद कर दी ~!राज्यो
में भी सावलों के के उत्तर
देने के लिए भटकना पड़ता हैं
? क्यू
नहीं केरल की भांति मुख्य
मंत्री प्रतिदिन कोरोना के
आतंक और उससे लड़ने की कारवाई
तथा मजदूरो के राहत के लिए किए
जा रहे कार्य सार्वजनिक नहीं
किए जा रहे हैं ?
क्यू
आम विधियो के अंतर्गत राहत
कार्यो के स्थानो और कितने
लोगो को क्या भोजन -
पानी
दिया ,
इसकी
जानकारी नहीं सुलभ कराई जा
रही ?
निजी
पथोलोजिकल लैब को निर्देश
हैं की कोरोना की जांच की
रिपोर्ट उस व्यक्ति को ना
देकर सरकार को दें ?
क्या
बात हैं की निजी अस्पतालो में
कोरोना मरीजो से इलाज के लिए
लाखो रुपये के बिल दिये जा
रहे हैं ?
जबकि
सरकार ने कोरोना के इलाज के
लिए नियत फीस घोषित कर रखी
हैं ?
इंदौर
के एक अस्पताल के वीरुध तो
कारवाई क मांग भी हुई ---जिसने
एक अवकाश प्राप्त सरकारी
करमचारी के शव को देने से इंकार
कर दिया था -जब
तक की उसके बिल्लो का भुगतान
नहीं हो जाता !!
एक
पुलिस अधिकारी के साथ भी ऐसा
हुआ तब वारिस्थ लोगो के बीच
-बचाव
से मामला सुल्टा !
इलाज
और मेडिकल सामानो की खरीद में
बहुत ज्यादा भ्र्स्तचार की
शिकायते आ रही हैं ,
राजनीतिक
संरक्षण प्रापत फ़रमो और अस्पतालो
को गैर जरूरी भुगतान किए जा
रहे हैं |
अभी
गुजरात की एक कंपनी द्वरा बनाए
गए वेंटीलेटरो की गुणवतता
रद्दी होने के कारण अनेक
प्रदेशों ने उनकी सप्लाइ वापस
कर दी |
कमीशन
बाज़ी के कारण सामानो की गुणवत्ता
खराब मिल रही हैं |
भोपाल
मेडिकल कालेज में तीन दिनो
से सफाई करामचरि और नरसो को
किट पहनने के बाद तबीयत खराब
हुई हैं |
अब
तो बात यानहा तक बिगड़ गयी हैं
की एक बड़े दैनिक अखबार को प्रथम
पन्ने पर इन तत्वो के खिलाफ
चेतावनी स्वरूप एडिट सा लिखना
पड़ा |
सरकारो
की बयानबाजी और मजदूरो की
हालत की हक़ीक़त :-
लाक
डाउन
चौथे
चरण में जब सड्कों पर लाइन
बना कर तप्ति धूप में पैदल जा
रहे स्त्री -
पुरुषो
और बच्चो की तस्वीरे सार्वजनिक
हुई --तब
केंद्र को लगा की अब तो रेल
चलनी ही पड़ेगी |
परंतु
इस विपदा काल में भी केंद्र
सरकार और रेल मंत्रालय ने कहा
की राज्य सरकारे मजदूरो की
जांच और गंतव्य बता कर दे
-----क्योंकि
ट्रेन के डब्बो में "”
देह
की दूरी "”
के
लिए 70
यात्री
के डब्बे में सिर्फ 50
लोग
ही भेजे जाएँगे ,
वह
भी बिना महसूल -किराया
के !
परंतु
मुंबई से कहलाने वाली पहली
ट्रेन के यात्रियो ने जब 758
/- का
टिकट और टिकट देने वाले द्वरा
100/-
प्रति
यात्री वसूले जाने का तथ्य
सामने आया ,
तब
रेल्वे ने पल्ला झाड़ते हुए
कहा ---
हमने
तो राज्य सरकार को टिकट दिये
हैं !
महा
राष्ट्र सरकार ने रेल्वे के
इस दावे का खंडन किया |
पर
रेल मंत्री पीयूष गोयल के
अफसरो ने अपने झूठ को बार -बार
बोला |
तब
केंद्र सरकार की ओर से बयान
आया की ट्रेन के खर्चे का 85%
भारत
सरकार वहाँ करेगी और 15%
संबन्धित
राज्य सरकार करेंगी |
लगा
लूटे -पिटे
मजदूरो को कुछ राहत मिली !
परंतु
वह भी आश्वाशान भी जीवन की
भांति "”छणभंगुर
ही सिद्ध हुआ |
क्योंकि
महा राष्ट्र और गुजरात तथा
कर्नाटक से चलने वाली "”श्रमिक
स्पेशल ट्रेन "”
के
यात्रियो को टिकट लेकर ही
यात्रा करना पड़ा --और
उसका किराया भी चुकाना पड़ा !
सूरत
में तो बाकायदे मजदूरो की
लिस्ट को जिला प्रशासन अनुमति
देता था --तब
बीस -
बीस
की टोली बना कर उनसे किरे वसूला
जाता था फिर उन्हे टिकट स्टेशन
पर दिये जाते थे !
सवाल
हैं की कान्हा ज्ञ केंद्र
सरकार का हिस्सा और कान्हा
गया राज्य सरकार का हिस्सा
----लूटा
तो गया बेचारा मज़दूर !!!
आज
भी यू पी बिहार झारखंड जाने
वाली श्रमिक ट्रेन कभी -
कभी
यहूदियो को आश्विट्ज़ ले जाने
वाली ट्रेन के डिब्बो में जैसा
भरा जाता था ,
कुछ
- कुछ
वैसा ही द्र्श्य इन गाड़ियो
के डिब्बो का हैं |
ना
खाने का नाही पीने के पानी का
इंतेज़ाम हैं |
इन
गाड़ियो के शुरू होने से लेकर
अभी तक एक दर्जन से अधिक लोगो
की मौत हो चुकी हैं ---पर
जिम्मेदार तो कोई नहीं !!!!
एक
भक्त बोले अरे जब मना करने के
बावजूद घर जाने की ज़िद्द लगाए
बैठे हैं ---तो
जाये मरे !
वे
यह नहीं मानना चाहते थे की
बेरोजगारी के कारण जब कमाई
नहीं हुई तो --कैसे
घर का किराया चुकाए अथवा खान
कैसे खाये !!!
जब
उन्हे सुझाव दिया गया की उन्हे
वनही मर जाना चाहिए था क्या
? तब
वे झेपने लगे |
लेकिन
सवाल अभी भी वनही अटका हुआ हैं
की आखिर ट्राइनो में सबसिडी
देने का वादा किस मंत्रालय
ने किया था ?
और
फिर उसे क्यो नहीं निभाया ?
क्या
वह भी चुनावी जुमला था !
राज्य
सरकारो के मुख्य मंत्रियो ने
भी एक स्वर में अपना हिस्सा
देने की बात की थी ----
तब
वह धन राशि कान्हा गयी ?
क्योंकि
मजदूरो को तो पूरा किराया देना
पड़ा |
रेल
मंत्रालय की कारगुजारी -यानही
नहीं थमी ,
बल्कि
जब रेल सेवाओ के शुरू करने
की बात आई तब---
थर्ड
वातानुकूलित डिब्बो के बीच
की भी बर्थ के रिज़र्व किए जाने
का ऐलान हुआ !!
थोड़ा
आश्चर्य हुआ की जिस केंद्र
सरकार ने सार्वजनिक स्थानो
पर तो "”देह
की दूरी "”
के
लिए गोले तक पेंट कराये ----वही
सरकार अब लगभग 8
फीट
के डब्बे में तीनों बर्थ रिज़र्व
कर रही हैं !!!!
आज
तक रेल विभाग इस तथ्य को नकारता
रहा हैं की उसने मजदूरो से
किराया नहीं लिया ---तब
सवाल हैं की रेल्वे के टिकट
किसने जारी किए और पैसा किसने
लिया ?
सुख
-सुविधा
और सम्मान से उत्तर प्रदेश
के मजदूर लाये जाएंगे !!
उत्तर
प्रदेश के भगवा धारी मुख्य
मंत्री योगी आदित्यनाथ ने
प्रैस में बहुत ज़ोर देकर यह
ऐलान किया था |
पर
हक़ीक़त क्या हैं आज भी गाजियाबाद
होकर राजस्थान -हरियाणा
से आने वाले मजदूरो को पुलिस
के डंडे पद रहे हैं |
योगी
जी को पुलिस पर बहुत भरोसा हैं
--क्योंकि
वे जानते हैं की उनके कहे बिना
भी पुलिस अधिकारी ,उनके
मन की बात को समझ कर काम करते
हैं |
इलाहाबाद
के चकघट पर और झाँसी की सीमा
पर इटावा की मुरैना से लगती
सीमा से जब उत्तर प्रदेश के
मैराथन पैदल यात्री अपने घर
जाना कहते हैं तब -राज्य
की सीमा पर तैनात पुलिस अधिकारी
कहता हैं "”हमे
आर्डर हैं क किसी को भी राज्य
में घुसने नहीं दिया जाए !””
इन
सवालो को पूछने के लिए प्रैस
को मौका ही नहीं मिलता ,क्योंकि
वे भी अपने बड़े भाई मोदी जी की
भांति पत्रकारो से दूर ही रहते
हैं |
कभी
-कभार
पत्रकार सम्मेलन बुलाया तो
अपनी बात कह कर उठ जाते हैं बस
!
उन्होने
तो महा राष्ट्र सरकार पर आरोप
लगाया की अगर वे सौतेली मटा
की भांति भी इन मजदूरो से
व्यवहार करते तो ---शायद
ये लोग नहीं भागते |
इस
बात में सच्चाई तो है पट थोड़ी
|
महा
राष्ट्र सरकार ने मजदूरो की
जांच के लिए इतना कम अमला दिया
की ट्रेन का फोरम भर्ना हो
अथवा डाकटरी जांच करवानी हो
------इन
सबमें लोगो को कई -
कई
दिन लग रहे थे |
रेल्वे
स्टेशन पर भीड़ के बावजूद ना
कोई पानी का इंतेज़ाम था ना ही
कोई शामियाना -जिसमें
बैठ कर लोग विश्राम कर सके |
तप्ति
धूप में ही सभी बालक -
युवा
और व्रधों को इंतज़ार के लिए
खड़ा रहन पड़ा था |
लोकमान्य
तिलक स्टेशन हो अथवा बसई हो
जनहा हजारो -हजारो
की तादाद में लोग तप्ति धूप
में इंतज़ार कर रहे थे |
कम
से कम अगर प्रदेश सरकार खाने
को कुछ नहीं दे सकती थी ---तब
कम से कम पानी के टैंकरो को
तो वनहा तैनात कर सकती थी ?
पर
ऐसा भी नहीं हुआ !
क्या
ठाकरे सरकार सिर्फ मंत्रालय
तक ही सीमित हो गयी --उसे
इन लाखो मजदूरो का दर्द नहीं
दिखाई पड़ा ---जिनहोने
आज मुंबई को वर्तमान रूप दिया
!
लेकिन
योगी जी ने एक बयान और दिया
---
की
अब से प्रदेशों को मजदूर के
लिए सरकार से अनुमति लेनी
पड़ेगी ?
वे
भूल गए की भारत का संविधान हर
नागरिक को देश की सीमा में
कनही जा कर रोजी कमाने का अधिकार
देता हैं ?
उन्होने
परवासी मजदूरो के लिए एक आयोग
गठित करने की भी घोषणा की |
सवाल
हैं की कुशल और अर्ध कुशल अधिकतर
रोजगार कारयालयों में पंजीबद्ध
हैं ---वनहा
से इनकी पहचान किजा सकती हैं
!
परंतु
हमने ये किया का दंभ तो फिर
बेकार हो जाएगा |
दूसरा
रास्ता हैं की हर गाव में पंचायत
के पास जनगणना का रजिस्टर होता
हैं |
उसमें
से परदेश जा कर रोजी कमाने
वालो की पहचान और संख्या मालूम
की जा सकती हैं |
योगी
जी के बयान पर प्रतिकृया देते
हुए महा राष्ट्र नव निर्माण
समिति के राज ठाकरे ने जवाब
दिया की यानहा आने वालो को
हमसे इजाजत लेनी होगी ,
तभी
वे काम कर सकेंगे !
अगर
योगी जी यूपी के मजदूरो को
"””पासपोर्ट
"”
देंगे
तब राज ठाकरे उन्हे "”वीसा
"”
देंगे
!
लगता
हैं राजनीतिक बदले की भावना
कनही देश को नुकसान न पहुंचाए
|
अंत
में बस इतना ही की क्या सत्ता
इतनी किम कर्तव्यविमुड़ हो
गयी है जो उसे इन हो रही घटनाओ
की रोकने की ताक़त नहीं --अथवा
अभी भी कोरोना और परवासी मजदूरो
के कष्टो के बीच शहनाई ही सुनना
हैं |
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