क्या
न्यायपालिका ने वेतन--
भत्तो
के लिए सरकार का दबाव मानकर
--जजो
के चयन मे बार और बेंच का अनुपात उलट दिया ???
सुप्रीमकोर्ट
और हाईकोर्ट के जजो के वेतन
भत्ते अब कैबिनेट सचिव -
चुनाव
आयुक्त तथा महालेखाकार के
समान हो जाएंगे |
इससे
तीन गुना बदोतरी हुई है |
परंतु
इसी के साथ ही कालेजियम ने
बेंच के जजो के लिए 58वर्ष
6माह
नियत की है ,,जबकि
बार अथवा वकीलो के जज बनाये
जाने के लिए यह आयु 45
वर्ष
से 55
वर्ष
रखी गयी है |
इस
अंतर का अर्थ हुआ की सरकार के
चहेते वकील दस से -
पंद्रह
साल बेंच पर रह कर अपने लोगो
को उपक्रत कर सकेंगे |
वनही
बेंच या ज़िला अदालतों के जज
उच्च न्यायालय मे प्रोन्नत
किए जाने के लिए 58
वर्ष
6माह
की आयु होने का अर्थ हुआ की वे
अधिकतम कार्यकाल 60
वर्ष
होगा |
बेंच
से प्रोन्नत हुए जज राजनीतिक
दबाव को नकारने का साहस रखते
है |
जबकि
वकालत से जज बनने वाले लोगो
का वास्ता भांति --भांति
के लोगो से होता है |
जो
उन्हे अदालत मे न्ययाधीश
बनने के बाद भी बांधे रहती है
|
इस
से ज्यादा अपमानजनक उत्तर तो
केंद्र सरकार ने कालेजियम
के उस प्रस्ताव पर दिया -जो
जज के नाम को मंजूर करने की
सलाह पर दिया |
केंद्र
ने कहा की सरकार
प्रस्तावित जजो के नाम पर
जांच को "
राष्ट्रीय
सुरक्षा"”
के
नाम पर वीटो करने का अधिकार
चाहती है |
जिस
पर कालेजियम ने कहा की सीबीआई
या आईबी से जांच के परिणाम को
किसी स्वतंत्र निकाय से भी
कराया जा सकता है |
सरकार
की यह पहल उसकी नीयत को स्पष्ट
करती है की वे हाईकोर्ट और
सुप्रीम कोर्ट मे नियुक्ति
के लिये यौग्यता से अधिक
स्वामी भक्ति को महत्व देना
चाहती है |
क्या
इस से न्यायपालिका की निसपक्षता
बरकरार रह पाएगी ?
शायद
ऐसी सरकार के गलत फैसलो पर
न्याय नहीं दे सकेगी |
सरकार
"”राष्ट्रिय
सुरक्षा "””को
ऐसा आधार बनाना चाहती है --जिस
से उसे अपने किए गए फैसलो का
कारण को "”गोपनीय
"”
की
परिभाषा मे लाकर सार्वजनिक
रूप से असली मंशा को छुपा लेने
मे समर्थ हो सके |संविधान
की कसम को बेअसर बनाने मे यह
तरकीब कारगर होने की संभावना
है |
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