धर्माज्ञा
और राजज्ञा का अंतर --नीति
और कानून है
सरसंघ
चालक मोहन भागवत ने कहा की
देश का विकास धरम के मार्ग से
ही हो सकता है |
संघ
के ही पदाधिकारी होसबोले जी
ने बयान दिया की राम मंदिर पर
धरम संसद का फैसला ही राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ मानेगा
साध्वी
श्रतंभरा ने कहा की भगवान की
भूमि का बंटवारा नहीं होगा
देश
की सर्वोच न्यायालय ने सलाह
दी है रामजनम भूमि न्यास और
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी
आपस मे बात कर के मामले का
समाधान निकाले
इन
बयानो से देश मे काफी असमंजस
का माहौल बना है |
सर्वज्ञान
है की संघ भारतीय जनता पार्टी
के संरक्षक का ओहदा है |
अतः
उनके नेताओ के बयानो को "”कथन
"”
नहीं
माना जा सकता है |
वनही
सुप्रीम कोर्ट भी देश की सबसे
बड़ी अदालत है |
जो
अपने फैसलो से कानून की ना
केवल व्याख्या करता है -वरन
विधि बनाता भी है |
ऐसे
मे संघर्ष और समाधान दोनों
ही आशा है और शंका भी है |
बाबरी
मस्जिद ध्वंश के मामले मे
उत्तर प्रदेश से आयी एक क्रिमिनल
अपील की सुनवाई भी होनी है |
इस
मामले मे एल के आडवाणी और
केन्द्रीय मंत्री उमा भारती
के वीरुध आरोप है |
इन
हालातो मे देश का मन अशांत है
और दिग्भ्रमित है ,,ऐसे
मे आगे क्या होगा यही सवाल
सबके मन मे है |
लेकिन
कुछ शंकाये भी है ---
क्या
विकास का रास्ता वाकई धर्म
के रास्ते से जाता है ??
क्योंकि
दुनिया मे जीतने "”
धार्मिक
राष्ट्र "””
है
उन्हे विकसित तो नहीं कहा जा
सकता |
हम
एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र
है जनहा राष्ट्र के लिए उसके
नागरिक ही "”भाग्य
विधाता "”
है
|
कोई
धर्म गुरु ---संसद
-सरकार
या न्यायपालिका से ऊपर नहीं
है |
अब
ऐसे मे डॉ भागवत के बयान का
क्या अर्थ होगा उसे स्पष्ट
होना होगा |
वनही
होसबोले साहब की "”
धर्म
संसद "”
एक
मत के लोगो की कोई बैठक तो हो
सकती -----परंतु
देश के लिए सर्वमान्य
तो नहीं हो सकती और इस संसद की
कोई कानूनी हैसियत भी नहीं
है |
ऋतंभरा
जी का बयान तो और भी यथार्थ
से कोसो दूर है --क्योंकि
हम लोग तो कहते और मानते है
"”सबै
भूमि गोपाल की "”
तब
कोई एक जमीन का टुकड़ा ही भगवान
का हो सकता है ??
वैसे
भी सुलतानी समय मे मुनादी मे
कहा जाता था "””
ख़लक़
खुदा का ---””
फिर
अयोध्या मे "जमीन
का टुकड़ा तो ऐसा नहीं हो सकता
जो भगवान का हो ----फिर
शेष देश की भूमि किसके हवाले
है ??
अयोध्या
राम की जनम भूमि होने के कारण
ही क्या इतनी खून -खराबा
देखने को मजबूर है ??
इतनी
अशांति और शंकाए क्या उस
मर्यादा पुरुसोतम की जनमभूमि
को कलंकित तो नहीं करती ??क्योकि
उन्होने युद्ध तो रावण की
लंका मे लड़ा था ,
अयोध्या
मे नहीं ?
फिर
क्या द्वापर का बदला अब कलयुग
मे लिया जा रहा है ??
वेदिक
धर्मियों से ??
आखिर
पहले भी मस्जिद ध्वंस मे जो
लोग मारे गए वे सभी वेदिक धर्म
की सनातन परंपरा को मानने वाले
ही थे |
धरम
हमे निजी जीवन मे निष्कलंक
व्यवहार और मानवतावादी
ड्राष्टिकोण देता है |
परंतु
अगर ऐसा कोई नहीं है तब उसे
उस समय तक दंड नहीं दिया जा
सकता --जब
तक की उसने "”राज्य"”
की
किसी विधि के विपरीत कार्य
या व्यवहार ना किया हो |
यही
अंतर है धर्माज्ञा
और राजज्ञा का
|
भारत
का संविधान विधि के शासन को
स्थापित करने के लिए कटिबद्ध
है |
इसके
विपरीत कोई भी फैसला गैरकानूनी
ही होगा |
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