मोदी
की लाहौर यात्रा --माधव
का अखंड भारत का सपना ?
जमीनी
और हवाई हक़ीक़त
प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी की अचानक
लाहौर यात्रा को लेकर चंद लोग
''अति
उत्साहित "”
दिखाई
पड रहे है | संघ
के प्रवक्ता रहे और मौजूदा
संगठन महा मंत्री राम माधव
ने तो "”त्वरित
टिप्पणी "” की
तरह इसे अखंड भारत का आरंभ ही
घोषित कर दिया |
वे
राजनीतिक प्रष्ठ भूमि के नेता
नहीं है ---- संघ
से आए है , जनहा
एक सीमित विषयो पर ही विमर्श
होता है | विदेश
नीति के तहत संघ का मानना है
की "”हम
सर्व श्रेष्ठ है "”
विश्व
गुरु है , | अब
इन अभिलाषाओ से आकांछा तो
प्रश्फ़ुटित होती है ,,परंतु
वह "” शतायु
भाव "”” के
आशीर्वाद की भाति है जो संभव
होता नहीं है |
परंतु
हजारो वर्षो से परंपरा का
निर्वाह आज भी होता चला आ रहा
है |
इस
संदर्भ मे पूर्व प्रधान मंत्री
अटल बिहारी वाजपेई की लाहौर
बस यात्रा की विवेचना करना
होगा | तभी
हम यथार्थ जान पाएंगे अटल जी
दोनों देशो के अधिकारियों की
विस्तारित चर्चा के बाद बस
से 19 फ़रवरी
1999 को
लाहौर गए थे |
उम्मीद
हुई थी की पड़ोसी को |
भरोसा
होगा --हमारी
सदिच्छा पर |
परंतु
मई मे ही पाकिस्तानी सेना ने
कारगिल मे मोर्चा खोला |
बात
यही तक नहीं थी सन 2001
मे
संसद मे आतंकवादी हमले के बाद
पाकिस्तान से वार्ता भंग हो
गयी थी | उस
समय लोगो को अटल जी के प्रयास
पर संदेह नहीं हुआ था ----क्योंकि
तैयारी के बाद वार्ता हुई थी
|
परंतु
मोदी की इस यात्रा का सारा
दारोमदार सुरक्षा सलाहकार
अजीत डोवाल और पाकिस्तान के
सलाहकार के मध्य बैगकाक मे
हुई '''चर्चा
''' ही
आधार बनी है | उस
बैठक के बाद ही अचानक विदेश
मंत्री सुषमा स्वराज की
पाकिस्तान यात्रा हुई ,,जिस
पर देश मे बहुत असमंजस था |
उसके
बाद अफगानिस्तान मे ''यारी
मेरे यार ''' गाने
के बाद अचानक तो नहीं पर अघोषित
इस हवाई यात्रा से बहुत ज्यादा
उम्मीद करना समझदारी तो नहीं
होगी | विगत
साठ वर्षो मे जिस काश्मीर के
मुद्दे को सभी प्रकार की
''''वार्ताओ
'''' से
अलग रखा गया --उसे
आज की सरकार एजेंडे पर लाना
चाहती है |जिस
विषय को भारत की संसद ने
सार्वभौमिकता से जोड़ दिया
है -उसको
भी विचारणीय बनाए जाने का
अर्थ क्या घुटने टेकना नहीं
है ???
अब
बात अखंड भारत की ले -
राष्ट्रिय
स्वयं सेवक संघ के नक्शे मे
''अफगानिस्तान
से लेकर वर्तमान पाकिस्तान
तथा बंगला देश म्यांमार और
इन्डोनेशिया द्वीपो तक फैला
है | “ अब
आज की अंतराष्ट्रीय परिस्थिति
मे क्या ऐसी बात कहना या मांग
रखना "”खतरनाक
"””नहीं
होगा | दूसरा
महा युद्ध ऐसी ही सान्स्क्रतिक
एकता को लेकर आर्क ड्यूक की
हत्या हुई थी -बाद
मे जिसने सारे विश्व को युद्ध
की विभीषिका का कारण बना |
जिस
आर्य संसक्राति के आधार पर
अखंड भारत की कल्पना संघ द्वारा
की गयी है ----नाजी
संसक्राति भी आर्य समूह को
विश्व का शासक बनाने की बात
करती थी | परंतु
वे एशिया के आर्यों को "
शुद्ध
आर्य नस्ल"”नहीं
मानते थे | अब
ईरान के सम्राट की उपाधि भी
"” अरियामेहर
"” थी
| जिसका
अर्थ था आर्य श्रेष्ठ -
परंतु
आज हक़ीक़त क्या है ?
खोमइनी
का इस्लामिक राज्य !
अफगानिस्तान
मे सान्स्क्रतिक रूप से तीन
भाग है ,,वहा
ताजिक --उज़्बेक
और मुगल तथा पठान है ,
उनमे
आपस मे इतना बैर है की ज़ाहिर
शाह की बादशाहत खतम करने के
बाद से सभी अपने -
अपने
क़बीलो की "”शुरा"”
के
फैसलो से चलते है |
इन
बैठको मे भी जंगजू नेताओ का
बोलबाला रहता है |
फलस्वरूप
पिछले तीस सालो से वंहा बमो
के धमाके और बंदूक की गोली ही
'राज़'
कर रही
है | ये
कबीले आपस मे भी लड़ते है और
अमरोकी फौजों के खिलाफ भी
युद्ध घोषित किए हुए है |
पाकिस्तान
का फाटा इलाका भी कबयालियों
के कानून से चलता है |
पाकिस्तानी
फौज कभी - कभी
हस्तक्षेप करती है |
वरना
अपनी छावनियों मे क़ैद रहते
है |
अखंड
भारत का सपना संघ कैसे मंजूर
कर रहा है ---जबकि
उसका मुस्लिम विरोध जग ज़ाहिर
है |
एका
ऐतिहासिक तथ्य है की आज की
दुनिया मे ''देशो
का विभाजन सन्स्क्रातियों
के आधार पर हुआ है ----परंतु
दो देश का कोई गठबंधन बना हो
ऐसा नहीं हुआ |
मलाया
और सिंगापूर मिलकर मलेशिया
बना था --परंतु
कुछ समय उपरांत ही अलग हो गया
| मिश्र
ने नासिर के समय इस तरकीब से
अरब एकता को मजबूत करना चाहा
था -परंतु
वह भी बिखर गया |
मार्शल
टीटो ने युगोस्लाविया बने
और उनके अंत केसाथ ही उनका
गठबंधन भी बिखर गया |
तीन
हिस्सो मे बटे देश आज की हक़ीक़त
है | भारतीय
जनता पार्टी सपने देखने और
उन्हे प्रचारित करने मे जमीनी
हक़ीक़त भूल जाति है --यही
कारण है की विगत बीस महीनो मे
अनेक "”मुद्दो
"”” पर
उन्हे ''यू
टर्न ''लेना
पड़ा | वैसा
ही इस मामले भी होगा |
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