कल्याण
सिंह के राज़ मे अयोध्या मे तोड़
-
फोड़
और ,आदित्यनाथ
के समय"सौंदर्यीकरण
के नाम पर काशी की युगो की
परंपरा को धुल-धूसरित
''
करने
का अभियान !
अब
माणिकर्णिका घाट और "डोम
राजा "
की
वैदिक उपस्थिती को सरकारी
नियमो मे बांधने की "”सरकार
की सनक "
भारत
माता के मंदिर और संगीत तथा
साहित्य की गलिया तोड़ी जाएंगी
-और
बनेगी चौड़ी सड़क !!!
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वैदिक
कालीन काशी फिर वाराणसी
तत्पश्चात बेनारस बाद मे बनारस
की पहचान हमेशा से "बाबा
विश्वनाथ -
गंगा
एवं माणिकर्णिका घाट ''
रहा
है |
अंग्रेज़ो
के पहले से शिव के त्रिशूल पर
स्थित इस नगरी मे साहित्य और
संगीत फला फूला था |
राजा
शिव प्रसाद ''सितारे
हिन्द "”
भारतेन्दु
एवं जयशंकर प्रसाद तथा विदेशियों
, को
हिन्दी सीखने पर मजबूर करने
वाले बाबू देवकी नन्दन खत्री
के उपन्यास "
चंद्रकांता
संतति और भूतनाथ "
के
रहस्यो भरे पात्रो को लोग भूल
नहीं पाते है |
इसी
नगरी मे देश का पहला '''भारत
माता का मंदिर बना था ,जो
आज घायल पड़ा है |कारण
है सरकारी सनक :-
जो
वाराणसी को चौड़ी सड्को और साफ
-सफाई
वाला "”
शहर
''
बनाने
पर तुली है |
सतयुग
के राजा हरिश्चंद्र की मणिकर्णिका
शमशान घाट के डोम राजा के यंहा
की नौकरी से लेकर अनेकों किस्से
काशी मे गूँजते है |
जब
देश के बड़े -बड़े
शहरो की सुबह आठ बजे की चाय के
प्याले से होती है ,,
तब
काशी मे "”बाबा"”
की
शान मे भारत रत्न बिस्मिल्ला
खान की शहनाई के स्वर उषा काल
से सुनाई पड़ा करते थे |
छोटी
-
छोटी
गलियो से गंगा नहाकर आए भक्त
विश्वनाथ पर जल अर्पण करते
है ----
देश
विदेश से आए श्रद्धालु भी इनहि
संकरी गलियो से आते रहे है |
पर
बस अब यह सब नहीं बचेगा ----क्योंकि
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी
के निर्वाचन छेत्र होने के
कारण वे अपने विदेशी मित्रो
को लेकर कई बार बनारस की प्राचीन
नगरी तक आए परंतु उन्हे '''
अंदर
नहीं लाये '””
| कारण
शहर की संकरी गलियो मे बिखरी
-अस्तव्यस्त
दशा ,
तथा
गलियो के दोनों ओर बहती नाली
----
भले
ही खाँटी बनारसी को ना अखरे
जो अंगौछा बांध के बनियाइन
पहने चार -
छह
मील का चक्कर लगा आने को रोज़मर्रा
की बात माने |
परंतु
प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री
को इस बनारशी अंदाज़ से सख्त
एतराज़ है -ऐसा
लगता है |
क्योंकि
वे अपने विदेशी मेहमानो को
अपने साथ बाबा के दर्शन नहीं
करा सकते !
अधनंगे
मर्द -औरत
की कतारे उनकी शान मे बट्टा
लगा देती है |
संदर्यीकरण
योजना के अधिकारी कोई सिंह
साहब है – जिनहोने कहा की नगर
मे लोगो ने '''
अतिक्रमण
करके अवैध निर्माण कर लिए है
'''
!! बाद
मे उन्हे शायद समझ आगया की
--यह
नगरी तब से है '''''जब
अतिक्रमण और नक्शा पास करा
कर निर्माण नहीं हुआ करते थे
!!””इन
साहेबन को नहीं मालूम की अंतर
राष्ट्रीय जगत मे मिश्र के
पिरामिड या एथेंस और स्पार्टा
की तरह ही काशी -बनारस
और सरकार के लिये वाराणसी भी
एक सतत इतिहास की जीवित धारा
है |
मोदी
जी और आदित्यनाथ जी गंगा की
गंदगी को साफ करने मे असफल
रहने पर लगता है अब विद्वेष
के कारण इस नगरी के बाशिंदों
को कटु अनुभव करा कर ही छोड़ेंगे
|
इतना
ही नहीं सरकार के "”इस
तुगलकी फरमान से लाखो लोग
प्रभावित होंगे |
मिली
खबर के अनुसार देश मे भारत
माता का पहला मंदिर इसी नगर
मे बना था -----वह
भी "”सौंदर्यीकरण
"”
का
शिकार हो गया है |
देवकी
नन्दन खत्री का छापा खाना
सिटी पुस्तकालय जिसमे नयी
---पुरातन,,
चालीस
हज़ार से अधिक पुस्तके अल्मारियों
से झाकती हुई पूछ रही है --की
अब हमको भी गट्ठर मे बांध कर
सरकार के तोशाखाने के अंधेरे
मे पटक दिये जाएँगे |हमारे
पन्ने अब फिर नहीं पलटे ----कुछ
जाएँगे |
यद्यपि
बनारसी लोगो ने अपनी "”
विशेस
संसक्राति और पूरा धरोहर को
बचाने के लिये मुहिम तो चला
रहे है -------परंतु
जिद्दी शासक और नादान अफसरो
की अगुवाई जब इतिहास की धारा
को मोड़ने पर जुटी है !
जिन
धरोहरों को विदेशी भी महत्वपूर्ण
मानते है उनको उत्तर प्रदेश
सरकार के लोग इस्लामिक कट्टर
वादियो की भांति जैसे उन्होने
अफगानिस्तान मे बामियान स्थित
हजारो साल की गौतम बुद्ध की
मूर्ति को धराशायी कर दिया
कुछ वैसा ही यंहा हो रहा है |
अभी
तक शायद 45
छोटे
मंदिर और सैकड़ो शिवलिंग -जलहरी
के साथ अपने ''''स्थान
से हटा दिये गए है |
हालांकि
सौंदर्यीकरण योजना के करता
-
धर्ता
मीडिया को आश्वासन दे रहे है
की '''''
मंदिर
की मूर्तियो को वेदिक विधान
से ही हटाया जाएगा !!
हालांकि
अभी तक ऐसा हुआ नहीं है |
लगता
है नोटबंदी और जी एस टी की
मानिंद "”
सुंदर
दिखने की और कुछ अलग दिखने की
सनक ही इस नए प्रयोग का कारण
है |
जिस
काशी के नरेश की वेश भूषा भी
आज के लोगो को '''कुछ
अजीब लगे ''''
जनहा
धोती और बंडी शरीफाना पहनावा
हो वनहा पश्चिमी सूट भले ही
वह बंद गले का हो लोगो की निगाह
मे अजनबीपन भर देता है |
इस
योजना मे जिन हजारो निवासियो
का घर और व्यापार छीना जा रहा
है ---उनको
कितना धनराशि मिलेगी ?
तथा
कान्हा उनका नया ठिकाना होगा
,,इसका
अभी तक कोई पुख्ता इंतिज़ाम
नहीं है |
इन
सभी करीब लाख लोगो के सामने
सबसे बड़ा संकट आजीविका का है
|
क्योंकि
अभी तक चले आ रहे निज़ाम मे घर
और दुकान एक ही जगह होने से
कोई दिक्कत नहीं थी |
लेकिन
अब इन "”
विस्थापितों
का भविष्य भी नर्मदा परियोजना
के हजारो किसानो जैसा ही लग
रहा है ---जिनकी
ज़मीन को तो बांध मे डूबा दिया
गया ----और
साथ ही उन के भविष्य को भी डूबा
दिया |
“”
परंतु
राम मंदिर यही बनाएँगे की
किलकारी गाहे -
बगाहे
भरने वाले ---
क्यो
सोमनाथ को उजड़ने वाले गजनी
बन रहे है ?
अरे
नदी की सफाई मे असफल होने और
अरबों रुपये फूँक देने के बाद
भी जब कुछ "”
हाथ
नहीं लगा जिसे दिखा कर वोट
लिया जाये --तब
काशी का ही जीर्णोद्धार करने
पर उतारू हो गए |
बिना
इसका विचार किए हुए की यंहा
का फक्कड़ पना -
और
सादगी ----संगीत
तथा साहित्य के "”
अड्डे
या चौगड़े "”
ऐसे
स्थान होते है ---जो
बरसो की लोगो की साधने से
''जीवित
'''
हो
पाते है ---उन्मे
ईंट गारे से नहीं वरन एहसास
से जान आती है |
अब
चलते हुए केदारनाथ सिंह की
कविता बनारस ही याद आ रही है
----वे
भी आकाश से अपनी प्रिय नगरी
की आत्मा को '''कंक्रीट
मे बदलने के प्रयास पर आशीर्वाद
तो कतई नहीं दे रहे होंगे |
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