लात
मारना या फांसी देना किस धारा
मे किया जा सकता है ??
लोकसभा
चुनावो को दौरान सार्वजनिक
सभाओ मे नरेंद्र मोदी जी
''मंहगाई
डायन"” को
तीन महीने मे क़ाबू करने का
आश्वासन जनता को देते थे |
एवं
वादा पूरा ना होने की दशा मे
फांसी देने का प्रस्ताव देते
थे | आज
दो साल बाद जून 2016
मे
खुदरा मंहगाई दर विगत वर्षो
की तुलना मे सर्वाधिक है |
हालांकि
कुछ "”भक्त
गण "” अभी
भी इस तथ्य को "”दुष्प्रचार
"”ही
निरूपित कर रहे है |
परंतु
वस्तुओ के दामो के बारे मे वे
मौन रहते है |
तब
मोदी जी ने बुलंद आवाज मे कहा
था की अगर मंहगाई पर "”मै
काबू ना कर सका तो "”आप
"” लोग
मुझे फांसी पर चढा देना |
पर
सवाल है कौन और किस जुर्म मे
किस धारा के अंतर्गत उनके कहे
को पूरा कर सकता है ??
चुनावो
मे जिस प्रकार की बतोलेबाजी
और झूठे वादे नेताओ द्वारा
किए जाते है उनको अमल मे लाने
की उनकी ज़िम्मेदारी कौन निश्चित
कर सकता है ??
निर्वाचन
आयोग ने एक परिपत्र मे राजनीतिक
दलो को आगाह किया था की वे "”ऐसे
वादे ना करे जिनहे पूरा करना
संभव नहीं हो "”
परंतु
यह दिशा निर्देश भी संविधान
के नीति निर्देशक तत्वो की
भांति बन गया ---मतलब
सरकार चाहे तो करे अथवा नहीं
करे |
फिर
दुबारा उन्होने वाराणसी मे
भी कुछ ऐसी ही पूरी ना हो सक्ने
वाली बात कही |
जनहा
वे उत्तर प्रदेश मे विधान सभा
चुनावो का शंख नाद कर रहे थे
| “””उन्होने
कहा की आप बीजेपी को प्रदेश
मे सत्ता मे लाओ ,और
अगर वे प्रदेश की "”दशा"”
नहीं
सुधारे तो मुझे और पार्टी को
लात मार कर उतार देना |
पुनः
वही प्रश्न की उनके कहे को
कौन पूरा करेगा और किस धारा
और कानून के तहत ??
अब
यानहा दो सवाल है ----प्रथम
दशा सुधारने का कौन सा पैमाना
उनके पास है "
? क्या
वह उनका पुराना गुजरात माडल
है -जिसकी
बहुत बड़ी -बड़ी
बाते हुई थी |
परंतु
आज तक उस "”माडल
"” का
विवरण देश के सामने कभी नहीं
आया | इसलिए
ज़रूरी है की पहले देश के सामने
प्रधान मंत्री जी अपने सपने
की रूप रेखा ब्योरा पेश करे
---फिर
जनता को मौका दे की वह किसका
चुनाव करती है |
चुनाव
सभाओ मे असंभव वादो को करने
और बाद मे जब उनके बारे मे सवाल
जवाब हो तो उसे "”अपने
सहयोगीयो "”
से
"” जुमलेबाजी
"” करार
करा देना – देश की जनता के सामने
है | इसलिए
2014 के
लोकसभा की चुनावी तकनीक 2016
के
विधान सभा निर्वचनों मे कितना
काम आएगी --यह
तो समय ही बताएगा |
परंतु
इतना तो प्र्मणित है की मोदी
जी की जुमलेबाजी का असर दिल्ली
विधान सभा के चुनावो मे ""पैदली
मात "” खा
चुका है | दूसरी
पराजय मोदी जी को बिहार मे
मिली जंहा उनकी पार्टी को
मात्र दहाई मे सीटे मिली है
| वनहा
भी दिल्ली की भांति सरकार
बनाने के लिए ताल ठोंकी थी |
परिणाम
पराजय के रूप मे मिली |
मोदी
जी ने अपनी प्रथम सफलता को
चुनावी जीत का पैमाना मान लिया
था | जिसको
लेकर उन्होने काँग्रेस को
लोकसभा मे प्रतिपक्ष का ओहदा
तक देने से इंकार किया |वनही
दिल्ली मे अरविंद केजरीवाल
ने 70 सदस्यीय
विधान सभा मे मात्र 03
सीट
पाने वाली भारतीय जनता पार्टी
को प्रतिपक्ष का ओहदा भी देने
का प्रस्ताव दिया |
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