अपनी
हदों मे रहे -कौन
न्यायपालिका या सरकार ??
एक
समाचार पत्र मे संपादकीय
प्रष्ठ पर वारिस्थ पत्रकार
शंकर शरण ने लिखा है की न्यायपालिका
अपनी हदों मे रहे |
उनके
आलेख मे जज़ो की नियुक्ति के
बाबत प्रश्न उठाया गया है |
लिखा
गया है की जज खुद ही अपनी
नियुक्ति कर लेते है ,,सरकार
का उन पर कोई नियंत्रण नहीं
है | कालेजियम
सिस्टम के पूर्व जजो की नियुक्ति
मे सरकार नियुक्ति की सिफ़ारिश
किया करती थी |
वह
आज भी किया जाता है |
तब
भी सरकार द्वारा सिफ़ारिश पाये
अधिवक्ताओ पर सुप्रीम कोर्ट
आपति जताता था ,,
और
सरकार उनकी आपति का सम्मान
करती थी | परंतु
वित्त मंत्री अरुण जेटली जो
खुद भी वकील रहे है और उनके
मन मे जजो के प्रति "”आसक्ति
और द्वेष "”
की
भावना है |
इसीलिए
वे ऐसा तंत्र बनाना चाहते है
जिसमे "”केवल
सरकार की सिफ़ारिश "”पाये
लोग न्यायिक पीठ मे बैठे |
एवं
ऐसे लोगो को कोई अवसर नहीं
दिया जाये जो उनकी विचारधारा
अथवा उनके अनुसरणकर्ता ना
हो |
सेवा
शर्तो आदि के बारे मे भी उन्होने
उल्लेख किया है की वे भी सुप्रीम
कोर्ट द्वारा स्वयं ही निर्धारित
किए जाते है |
इन
आपतियों के उत्तर मे केवल कुछ
टाठी रखना ही समीचीन होगा |
संसद
स्वयं ही अपने सदस्यो के वेतन
- भत्ते
और सुविधाओ का निर्धारण करती
है | स्वयं
के बारे मे नियम बनाती है |
अभी
हाल मे जब सांसदो के वेतन भत्ते
बड़ाये गए तब प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी के हवाले से खबर
आई थी की उन्होने भी इस प्रयास
का पुनरीक्षण करने का सुझाव
दिया था | परंतु
उस पर संबन्धित लोगो ने शायद
ध्यान ही नहीं दिया |
उनका
कहना था की वेतन व्रधी का कोई
पुख्ता आधार होना चाहिए ---बस
यू नहीं एक प्रस्ताव लाकर
सदस्यो से "”हाँ
"”' की
जीत करा कर कानून नहीं बनान
चाहिए |
न्यायपालिका
के सदस्यो और सांसदो द्वारा
स्वयम के नियम बनाए जाने मे
यह समानता है |
अंतर
है तो उनकी नियुक्ति को लेकर-----
लोकसभा
और विधान सभा के सदस्य वयस्क
मताधिकार के आधार पर निर्वाचित
होते है |
जबकि
न्यायपालिका के सदस्य प्रांतीय
न्यायिक सेवाओ से तथा अन्य
"”
बार"”
यानि
की वकीलो से नियुक्त होते है
|
सांसदो
की पदासीन रहने की अवधि संविधान
के अनुच्छेद 83
[2] द्वारा
पाँच वर्ष की नियत है |
विधानमंडलों
की भी अवधि इसी के अनुरूप पाँच
वर्ष है |
सर्वोच्च
न्यायालय के जजो के वेतन के
बारे मे अनुच्छेद 125
मे
सपष्ट किया गया है की उनके
वेतन भाती संसद दावरा निश्चित
किए जाएँगे |
पर
संविधान ने व्यसथा की थी जब
तक नियम नहीं बनते तब तक सुप्रीम
कोर्ट के प्रधान न्यायधीश को
10,000 रुपये
प्रतिमाह और अन्य भत्ते तथा
सुविधाए प्रपट होंगी |
अन्य
न्यायाधीशो को 9,000
प्रति
माह तथा राज्यो के मुख्य
न्यायाधीशो को भी 9,000
प्रति
माह तथा अन्य न्यायाधीशो को
8,000रुपये
प्रति माह एवं अन्य भत्ते और
सुविधाए सुलभ होंगी |
बाद
मे सातवे संविधान संशोधन
द्वारा इन वेतन भटू मे व्रधी
की गयी |
प्रथम
लोक सभा के सदस्यो को संभवतः
पाँच सौ रुपये प्रतिमाह और
बैठक होने पर पचास रुपये
प्रतिदिन का भत्ता देय था |
निशुल्क
आवास और सीमित फोन सुविधा के
साथ मुफ्त रेल यात्रा की सुविधा
भी थी |
तत्कालीन
संसद सदस्यो के मुक़ाबले उस
समय के न्यायाधीशो को बीस गुना
वेतन मिलता था आज वह अनुपात
कितना रह गया देखा जा सकता है
\ इस
लिए लेखक महोदय को "”हद
मे रहने की सलाह किसे देनी
चाहिए वे ही निश्चित करे ?
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