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Jun 10, 2016

न्यायपालिका --कार्यपालिका का काम ना करे --जेटली

न्यायपालिका -कार्यपालिका का काम ना करे --अरुण जेटली !

वित्त मंत्री जेटली ने एक बयान मे न्यायपालिका को नसीहत दी है की वो कार्यपालिका का काम नहीं करें | उनके इस बयान को पढ कर उनकी विद्वता पर शक होना स्वाभाविक है | खुद सालो तक सुप्रीम कोर्ट मे वकालत करने वाले व्यक्ति से ऐसा ऊटपटाँग बयान की उम्मीद नहीं थी | संविधान मे शासन का अधिकार कार्यपालिका को दिया गया है | न्यायपालिका को सरकार के कार्यो की समीक्षा का अधिकार दिया गया है | अर्थात सरकार के कार्य संविधान और विधि सम्मत है अथवा नहीं इसका निर्णय न्यायपालिका को दिया गया है | अब ऐसे मे क्या जेटली जी कोई भी एका कार्य बता सकते है जो कार्य पालिका के छेत्र मे आता हो और उसे न्यायपालिका ने अंजाम दिया हो ?

वस्तुतः आज तक जेटली जी कभी भी जनता द्वरा निर्वाचित नहीं हुए है | उन्हे जनता के कार्यो की मालूमात भी नहीं है | वे शायद नगर निगम और राज्य सरकार के कामो से भी अपरिचित हो सकते है | वास्तव मे उत्तराखंड विधान सभा के मामले मे जिस प्रकार केंद्र ने "”मनमाने तरीके से "”राष्ट्रपति शासन की उद्घोस्णा की थी और उसके बाद उच्च न्यायालया ने उसको चुनौती दी थी ,,और सदन तथा स्पीकर की सत्ता को बरकरार रखा उस से वे बहुत खिन्न है | जेटली के दुर्भाग्य से सुप्रीम कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को यथावत रक्खा |
बस वही फांस जेटली के मन मे फसी हुई है | वे भूल जाते है की न्यायपालिका को अधिकार है की वह कार्यपालिका या उसके किसी भी अंग को याचिका के अधिकार के अंतर्गत निर्देश दे सकती है | अधिकार बंदी प्रत्यक्षी कारण अथवा परमादेश तथा प्रतिषेध द्वारा संविधान के अनुछेद 139 के तहत सुप्रीम कोर्ट आदेश दे सकती है जो सरकार या उसके अंग पर अंतिम होगा | अब इन न्यायिक अधिकारो को वे कार्यपालिका के कार्य मानते है अथवा उसके अधिकार छेत्र मे दखल मानते है तो उनकी अक़ल की बलिहारी है |


जिस प्रकार केन्द्रीय मंत्रियो द्वरा न्यायपालिका पर आछेप लगाए जा रहे है वह मोदी सरकार की मानसिकता को इंगित करता है की ----हमे मनमानी करने की छूट क्यो नहीं है ,,हम जनता द्वरा चुने गए है , न्यायपलिका कौन होती है हमारे काम मे मीनमेख निकालने वाली ? हम तो पाँच साल के लिए शासक है | वे प्रजातन्त्र मे रोक एवं संतुलन के सिधान्त को समझ नहीं पा रहे है की उनकी सत्ता अंतिम नहीं है

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