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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jun 8, 2016

मथुरा कांड की जांच सीबीआई से कराने की बीजेपी की टेक

मथुरा कांड की जांच सी बी आई से करने की बीजेपी की टेक !!

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मथुरा के जवाहर बाग मे जय गुरुदेव के चेले राम व्रक्ष यादव द्वारा 2014 से गैर कानूनी क़ब्ज़े को हटाने पहुंची पुलिस पर की गयी गोलाबारी की घटना की न्यायिक जांच के प्रदेश सरकार के निर्णय से भारतीय जनता पार्टी असहमत है | उनकी मांग है की इस घटना की जांच केन्द्रीय जांच एजन्सि
सी बी आई से या वर्तमान जज से कराई जाये | इस घटना मे पुलिस के कप्तान मुकुल द्वेदी और थानेदार संतोष की मौत हो गयी और अनेक पुलिस जन गंभीर रूप से घायल हुए | अतिक्रमांकारियों मे 24 लोगो की मौत हुई |
प्रश्न यह है की जब सरकार ने न्यायिक जांच की घोसणा कर दी तब केन्द्रीय जांच एजेंसी से जांच की मांग के क्या अर्थ है ? क्या न्यायिक जांच सीबीआई से कमतर है ? विगत मे बीजेपी हमेशा से सरकारो से अदालती जांच करने की ही मांग करती थी | उनके अनुसार सीबीआई तो केन्द्रीय सरकार का "”तोता"” है | अब उसी तर्क के आधार पर क्या अब वह तोता स्वतंत्र हो गया है या वह सड़क पर बैठे ज्यतिषियों का तोता बन गाय है जो "”भविष्य "” भी बाँचता है ?
इस घटना को लेकर अखिलेश सरकार पर काफी गंभीर आरोप लगाए गए -----यानहा तक कहा गया की मुख्य मंत्री की चाचा शिवपाल यादव के राजनीतिक संरक्षण के कारण दो वर्षो से इन आसामाजिक तत्वो के वीरुध कोई कारवाई नहीं कर रही थी | जिसके कारण इन उपद्रवियों ने लोगो को मारना पीटना और धन वसूलने का क्र्त्य किया | यह तथ्य भी सामने आ रहा है की ज़िला प्रशासन द्वारा पुलिस को गोली चलाने का आदेश देने मे राजनीतिक दबाव के कारण विलंब किया | जिसके कारण ही पुलिस बल के दो अफसर वीरगति को प्रापत हुए |

चौतरफा निंदा होने के बाद पहले तो अखिलेश यादव ने इसे पुलिस की चूक बताया | उनके हिसाब से पुलिस को घटनास्थल पर पूरी तैयारी के साथ जाना चाहिए था | अब यह नहीं समझ मे आ रहा है की तैयारी थी या नहीं परंतु हमला होने के बाद भी पुलिस द्वरा गोली से उसका उत्तर नहीं देने का क्या कारण था ?? कहा जाता है की लखनऊ मे बैठे अधिकारी अपने आक़ाओ से सलाह -मशविरा कर रहे थे | इसी लिए पुलिस को गोली चलाने की अनुमति तुरंत नहीं मिल पायी | हालांकि जब पुलिस कप्तान मुकुल दिवेदी को उपद्रवी लाठीयों से मार रहे थे तब थानेदार संतोष ने अपने जवानो से कहा की अफसर को मार रहे है गोली चलाओ ,,कहते है इसी समय पेड़ पर बैठे किसी उपद्रवी ने थानेदार के माथे मे गोली मार दी | अब शासन की दुर्बलता दो कारणो से स्पष्ट है पहला की दो वर्षो से 260 एकड़ के बाघ पर कब्जा जमाये लोगो को खदेड़ने मे दो साल क्यो लगे ? कोई तो उनका रहनुमा सरकार मे होगा जिसने कारवाई को रोके रखा ? दूसरा पुलिस को गोली चलाने का आदेश क्यो देरी से दिया गया ? अब इनहि की जांच न्यायिक आयोग को करना होगा

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