अयोध्या
-चार
दिन की चाँदनी भी नहीं रह पा
रही !
मस्जिद
को जमीन और मंदिर के ट्रस्ट
पर अब हिन्दुओ में मचा महाभारत
!
अदालत
की "”आम
"”
परम्पराओ
के मुताबिक बड़े फैसले शनिवार
को नहीं सुनाये जाते --पर
सुप्रीम कोर्ट ने चारा सौ साल
से "अनसुलझे
'’
मुकदमे
को "निपटाने
"”
के
लिए यही दिन चुना !
जबकि
अदालत ने पहले नवंबर के दूसरे
सप्ताह में सुनाये जाने के
संकेत दिये थे ,पर
मालूम नहीं क्यो "
शनिवार
"”
को
चुना गया !!
खैर
जो भी कारण रहा हो पर --भारी
-भरकम
और भीषण बंदोबस्त के बाद सड़क
पर तो मरघट की शांति रही जो
अगले दिन भी दिखाई पड़ी |
परंतु
जिस प्रकार सरकार
से मधुर संबंध बनाने वाले
मीडिया ने न्यायपालिका के
कथन को पूरा किया की "”
न्यायपालिका
और सरकार में मधुर संबंध होना
चाहिए – भावी प्रधान न्यायाधीश
शरद बोवड़े के कथन का पूरा पालन
किया !
टीवी
चैनलो पर इस फैसलो को ऐतिहासिक
और अद्भुत तथा देश हित में
बताया गया !
परंतु
रविवार का सूरज चड़ने के साथ
ही पाँच जज़ो के सामूहिक और
संयुक्त फैसले पर सवाल उठने
लगे |
हालांकि
चैनलो में इन विचारो को जगह
नहीं मिली |
सर्वप्रथम
सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व
न्यायधीश अशोक गांगुली ने
कानूनी कसौटी पर इस फैसले को
रखा ---
उन्होने
कहा की अदालत द्वरा यह
तो कहा गया की सुन्नी वक्फ
बोर्ड यह नहीं साबित कर सका
की मस्जिद में 1526
के
बाद नमाज़ अदा की जाती थी ?
तब
यह सवाल हिन्दुओ से क्यो नहीं
पूछा गया की "”उसी
अवधि में क्या वनहा चबूतरे
पर पुजा की जाती थी क्या ?
उन्होने
कहा की एक फरिक के आस्था को
प्रमाण मान लिया गया – दूसरे
के सबूत को भी नहीं माना गया
!!
मालिकाना
हक़ के मुकदमे में आस्था या
परंपरा को आधार बनाएँगे तब
बहुत से धरम स्थान तोड़ने पड़ेंगे
!
ये
तो हुई एक जज की प्रतिकृया ,
अब
दूसरे पक्ष को देखे |
सुप्रीम
कोर्ट ने तीन महीने में मंदिर
निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने
और उसमे निर्मोही आखाडा को
सदस्य बनाने तथा सुन्नी वक्फ
बोर्ड को पाँच एकड़ भूमि देने
का आदेश दिया !!
अब
अयोध्या के बजरंगियों ने
स्थानीय प्रशासन से मांग की
हैं की ,
चूंकि
अयोध्या की पाँच कोशी और बारह
कोशी परिक्रमा होती हैं -----अतः
मुसलमानो को मस्जिद के लिए
भूमि का आवंटन -भी
बारह कोश के बाहर किया जाए !
एक
कोस में दो मील होते इस हिसाब
से 24
मिल
बाहर जमीन दे |
वैसे
भी स्थानीय प्रशासन ने अयोध्या
में "””
महत्व
पूर्ण स्थान पर 5
एकड़
भूमि की सुलभता पर असमर्थता
जताई हैं !
“” तब
कैसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला
लागू किया जा सकेगा ???
दूसरा
मसला मंदिर निर्माण के लिए
केंद्र सरकार द्वारा ट्रस्ट
बनाए जाने का निर्देश भी अदालत
ने दिया हैं ,
| परंतु
अभी केंद्रीय गृह मंत्रालय
और वितमंत्रालय इस ओर कवायद
कर ही रहे थे की -----
राम
जन्म भूमि न्यास के
नृत्य
गोपाल दास ने दो मुद्दे या
कहे आपतियों की "”कैवियट"”
लग
दी हैं |
पहला
तो सुप्रीम
कोर्ट के ट्रस्ट बनाने के आदेश
को हो अनावश्यक बता दिया हैं
--उनके
अनुसार राम जन्मभूमि न्यास
है -अतः
दूसरा न्यास निर्माण के लिए
क्यो ?
उन्होने
कहा की निर्मोही आखाडा अपना
न्यास विघटित कर हमारे न्यास
में आ जाये |
इस
पर निर्मोही आखाडा के महंत
दिनेन्द्र दास का बयान आया
हैं की "””
हम
शुरू से ही राम जन्मभूमि न्यास
के खिलाफ जमीन और अदालत में
लड़ाई लड़ते रहे हैं हम निर्मोही
हैं हम राम जन्म भूमि न्यास
का हिस्सा कभी नहीं बन सकते
!!
वे
चाहे तो न्यास को सरनडर हमारे
साथ आ सकते हैं !!
हम
निर्मोही हैं हम उनका हिस्सा
कभी नहीं बन सकते !
राम
जन्म भूमि न्यास के न्रत्य
गोपाल दास ने प्र्सतवित केंद्र
सरकार के ट्रस्ट के अध्यक्ष
का नाम भी सुझा दिया है -----
उन्होने
कहा की अगर राम जन्म भूमि न्यास
को मंदिर निर्माण की ज़िम्मेदारी
देने में कानूनी बाधा है तो
उत्तर प्रदेश मे मुख्य मंत्री
आदित्यनाथ योगी को केंद्र
सरकार ट्रस्ट का मुखिया बनाए
| उन्होने
कहा की वे "”
गोरक्ष
पीठ "”
के
अधिश्वर हैं !!
अब
महंत जी स्वार्थ वश कितना
असत्य भासन करते है यह उनके
कथन से साफ है |
वास्तव
में गोरखपुर स्थित गोरखनाथ
मठ है --जो
सिद्ध योगी परंपरा का ही |
इस
मठ का गोरक्षा से कोई लेना
देना नहीं है |
लेकिन
आजकल की राजनीति में गाय या
गौ राजनीति की वैतरणी पार
करने का "’सिद्ध
"”
तरीका
है "
तो
न्त्रया गोपाल दास जी नाच गए
- खेल
दिया दाव ,
क्योंकि
आबादी में कुछ ही इस पाखंड को
समझ पाएंगे |
दूसरे
धार्मिक ट्रस्ट आमतौर से
छ्तृयों की अधीनता में नहीं
होते |
परंतु
गोरख नाथ ज ने अपने पीठ को
छत्रीय को ही देने का निर्देश
दे गए थे |
अब
अगर ऐसा होता हैं तों ब्रामहन
जाती के लोग तो इस बात का पुर
ज़ोर विरोध करेंगे ------जैसा
की उत्तर परदेश की राजनित में
अभी हो रहा हैं |
तीसरी
आपति मंदिर निर्माण के लिए
बनने वाले ट्रस्ट के स्वरूप
के बारे में विश्व हिन्दू
परिषद के अध्यछ चंपत रॉय ने
की है |
उनका
कहना हैं की मंदिर निर्माण
में हमारी भूमिका निर्णायक
रही है हमारे कार सेवको ने
अपनी जान गवाई हैं ,
इसलिए
हमारी भावनाओ -त्याग
का ख्याल केंद्र को रखना चाहिए
|
उनकी
मांग हैं की प्रस्तावित ट्रस्ट
में ना
तो कोई सरकारी अधिकारी हो और
ना ही कोई नेता मंत्री हो ,
अर्थात
सरकार की ओर से कोई प्रतिनिधित्व
नहीं होना चाहिए !
उन्होने
प्रस्तावित मंदिर की पुजा
-अर्चना
की विधि तथा इसमें किन सम्प्रदायो
के लोगो को जगह मिले यह भी कहा
-----की
पुजारियो में वैष्णव -
शैव
और सगुण ब्रामह मानने वालो
को ही जगह मिले |
किसी
एक परिवार का पुजा अर्चना पर
एकधिकर ना हो इसलिए उन्होने
बद्रीनाथ मंदिर माडल अपनाए
जाने की वकालत की |
अब
चंपत रॉय जी की जानकारी को
संशोधित करना होगा ,
क्योंकि
बद्रीनाथ मंदिर में पुजा का
प्रथम अधिकार आदिगुरु शंकराचार्य
के समय से केरल के नंबुदरी
ब्रांहनों का ही चला आ रहा हैं
|
उन्हे
"”रावल
महराज "”
कह
जाता हैं !!
अब
इसे कहते हैं की शनिवार को
किए कामो में "”स्थायित्व"”
होता
हैं ----
परंतु
शनिश्चर यदि भरी हो कुंडली
में तो "””
होता
काम भी बिगड़ जाता हैं "|
सुप्रीम
कोर्ट के इस फैसले की सार्थकता
और प्रश्न चिन्ह तो लग रहा
हैं |
दूसरी
ओर संघ और सरकार समर्थक अभी
भी समाचार पत्रो के पन्नो में
आलोचना और फैसले पर सवाल उठाने
वाली आवाजों को जवाब नहीं दे
रहे है ----वे
अभी भी इस मुगालते में हैं की
जैसे काश्मीर में अनुचेद 370
को
खतम कर राज्य का विभाजन कर
दिया ---
कुछ
वैसा ही इस मम्म्ले में भी
मोदी और अमित शाह कर लेंगे !
परंतु
महाराष्ट्र में अपने सहयोगी
से दगाबाजी का परिणाम ही हैं
की "””परसी
थाली भी सरक गयी "”
| राजनीति
में नैतिकता का कोई स्थान
भारत में नहीं बचा हैं |
क्योंकि
कुर्सी ही धरम हैं ,
राजनीतिक
दलो का ,
परंतु
अदालत की इज्जत उसकी न्याया
के प्रति सच्चाई के व्यवहार
की हैं |
जो
इस मामले में संदिग्ध हो गयी
है |
बस
खतरा एक ही हैं की जिस सांप्रदायिक
वैमनष्य को बचाने के लिए
"””कानूनी
रूप में यह समझौते "”
का
रास्ता निकाला गया है ---कनही
वह असफल ना हो जाये <
सत्तधीशों
की कुर्सी की लोलुपता और येनकेन
प्रकारेंन अपनी चुनावी गोट
बिठाने की जुगत इस देश में बसे
लोगो को क दूसरे का खून का
प्यासा न बना दे |
जैसा
एक प्रदेश में हुआ --जब
सत्ता बदनीयत हु
________________________________________________________________________________________________________________________________________________बॉक्स
___-
भारतीय
जनता पार्टी की 27
साल
की राजनीतिक चाल ने अंततः
उनके मन्तव्य पर सर्वोच्च
न्यायालय की मुहर लगवा ही ली
!
अब
यह फैसला इसलिए मान्य करना
होगा -----चूंकि
इस फैसले के
खिलाफ कोई अपील तो नहीं हो
सकती और सुन्नी वक्फ बोर्ड
ने रिव्यू याचिका दायर करने
के फैसले को शाम को बदल दिया
!
टीवी
चैनलो की बहसो में भी एक ही
सुर निकल रहा हैं – की एक
शक्तिशाली नेत्रत्व की पहल
से इस फैसले को सभी देश वासियो
को स्वीकार करना चाहिए !!!
प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह
मंत्री अमित शह के ट्वीट
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प
की बरबस याद दिला देते हैं !
खैर
दिन भर शहरो में धारा 144
लगाने
की कानूनी कारवाई तो हुई ,
परंतु
पुलिस का बंदोबस्त करफू वाला
था – सब बाजार बंद --सभी
स्कूल और कालेज बंद दुकाने
बंद --गली
-गली
घूम कर छोटी छोटी चाय की दुकाने
भी पुलिस बंद करा रही थी |
सड़क
पर पुलिस की घूमती गाड़िया
साइरन बजा कर आम लोगो को किसी
अनहोनी के अंदेशे का ड्सर दिखा
रही थी |
धारा
144
में
कानूनी तौर पर पर चार आदमी से
ज्यादा एक स्थान पर इकथा होने
और अस्त्र शस्त्र लेकर चलने
पर प्रतिबंध होता हैं ,
परंतु
देव उठहनी एकादशी के दूसरे
दिन सुबह की सैर पर जाने वाले
लोगो को वापस भेज दिया गया –
शायद इसलिए की उनमे कुछ के हाथ
में छड़ी थी !!
__________________________-____________________________________________________________________________________________________________________________________
No comments:
Post a Comment