आतंकी विस्फोट का जिम्मेदार कौन और कौन करे कारवाई ?
विस्फोट के बाद एक बार फिर राजनीतिक दलों में ज़बानी जंग शुरू हो गयी हैं ,की ,यह किसकी गलती हैं और इस का जिम्मेदार कौन हैं -किसे कारवाई करनी थी ? इन प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए हमे शुरू से देखना होगा } एन सी टी सी क्या राज्यों के अधिकारों में हस्तछेप हैं -क्या हमे आतंकी घटनाओ के लिए अमेरिकी ढंग अपनाना चाहिए ? देखा गया हैं की जब -जब ऐसी घटनाये होती हैं तब - तब दलो के नेता टीवी और समाचार पत्रों में काफी कड़े बयां देते हैं । जो अमेरिकी ढंग अपनाने की बात करते हैं वे भी , केंद्र की सरकार को दोषी बताते हुए ""तबर्रा "" पड़ना शुरू कर देते हैं । पर उनमें कोई भी इस काम को कैसे अंजाम दिया जाए उस बारे में चुप रहते हैं । टीवी पर हनी वाली चर्चा में तो जीभ खुजाने के लिए बयां वीर काफी ऐसे सुझाव देते हैं , जिनको आमली जामा देना बहुत मुश्किल ही नहीं वरन नामुमकिन सा हैं । क्योंकि वे देश की सामर्थ्य - उसकी -सीमाए और कानून का बंधन के कारन आने वाली दिक्क़तो को नज़रंदाज़ कर देते हैं । आगे देखेंगे की उनके कहे या -उवाच को क्यों नहीं किया जा सका ।
हमारे संविधान में शांति - व्ययस्था का दायित्व राज्यों को दिया गया हैं , फलस्वरूप अपने- अपने इलाकों में उनकी अलग पुलिस हैं , , जिसका काम अपराधो रोकना और हुए अपराधो की विवेचना कर के अदालत में पेश करना हैं । यह एक सच्चाई हैं की देश की ज़मिन पर राज्यों का हुकुम चलता हैं ,उनका ही कब्जा हैं । अर्थात केंद्र के पास अपना कहने को कोई इलाका नहीं हैं -सिवाय उसके कार्यालयों के और वे भी बिजली -सड़क -पानी के लिए उस स्थान की नगर निगम और प्रदेश सरकार पर निर्भर हैं ।
इन तथ्यों के प्रकाश में अब हमे आतंकी घटनाओ की जांच और ज़िम्मेदारी की बात करनी हैं । हैदराबाद का बम विस्फोट दंड संहिता के अनुसार एक अपराध ही हैं ,और इसी लिए थाने में उसकी रिपोर्ट लिखी गयी हैं । अब कारवाई की शुरुआत भी आन्ध्र पुलिस ने कर दी हैं , लेकिन इस घटना को आतंकी कारवाई होने के कारन इसके सूत्र अनेक राज्यों तक फैले हुए हैं । चूँकि हर राज्य की पुलिस का काम करने का तरीका अलग हैं लिहाज़ा कठिनाई आ रही हैं । ऐसे में ज़रुरत हैं एक संस्था की जो देश के सभी भागो में एक साथ कारवाई कर सके -वह भी बिना किसी अडंगे के । जैसे इनकम टैक्स की कारवाई सारे देश में निर्विघ्न की जाती हैं । अब इसी चुनौती से निपटने के लिए ही केंद्र ने आतंक विरोधी केंद्र { N.C.T.C.} बनाने का फैसला किया हैं ।
इस फैसले का तथ्य यह हैं की ज़मीन भले ही राज्यों के अधीन हो परन्तु आतंकी हमले भारत की भूमि पर होता हैं , उसकी प्रभुसत्ता पर होता हैं अतः कारवाई भी केंद्र को करनी होगी । पर यह कैसे हो - प्रश्न यही हैं । अब इसी काम को अंजाम देने के लिए आतंक विरोधी केंद्र की स्थापना प्रस्तावित हैं । इस पहल के विरोध करने वाले भी मांग करते हैं की अमेरिका की भांति यंहा पर भी सुरक्षा बंदोबस्त होने चहिये , पर वे इस मांग केके विस्तार को नहीं समझते ।
सर्व प्रथम तो अमेरिका एक सुपर पॉवर हैं वह इंटरनेशनल दबावों को नकार सकता हैं , हम नहीं । भले ही हम टीवी पर संसद में बयां देकर वाह वाही लूट लें परन्तु हकीक़त में क्या हम पाकिस्तान पर हमला कर सकते हैं नहीं । क्योंकि अगर उसने एटॉमिक हथियारों का इस्तेमाल किया तो क्या हम उसके लिए तैयार हैं ? दूसरा सवाल हैं की जितना धन वह ख़ुफ़िया तंत्र पर खर्च करता हैं क्या हम कर सकते हैं ? कतई नहीं , जब हम आधार मज़बूत नहीं कर सकते तो हमे वंही सुझाव या मांग करनी चाहिए जो हमारी आर्थिक चादर के अनुरूप संभव हो । इस सन्दर्भ में एक ज्वलंत प्रश्न हैं राज्यों के अधिकारों का ।
अमेरिका में भी शांति व्यस्था स्थानीय निकायों और राज्यों का अधिकार हैं , परन्तु वंहा काउंटी में पुलिस होती हैं मगर गंभीर परिस्थितियों में स्टेट फाॅर्स और नेशनल गार्ड की भी मदद ली जाती हैं । ऐसे अपराध जिनके सूत्र राज्यों की सीमा के ,.बाहर हो उनकी छानबीन फेडरल ब्योरो करता हैं । इसके लिए वह स्थानीय पुलिस का मोहताज़ नहीं होता । वरन वह संदिग्ध व्यक्तियों को सीधे गिरफ्तार करता हैं । उनसे पूछताछ करता हैं ,बाद में मुक़दमा भी राज्य की नहीं वरन विशेस अदालतों में चलता हैं । वंहा यह अधिकार हैं ,और यंहा इसी अधिकार को राज्यों की प्रभुता का अतिक्रमण बताते हुए विरोध हो रहा हैं । ९/१ १ के बाद अमेरिकी केंद्रीय एजेंसी ने सैकड़ो लोगो नज़रबंद रखा --वंहा किसी राज्य ने न तो आपति जताई न ही विरोध किया ।
अगर एक साथ आतंकी गुटों के खिलाफ कारवाई करनी हैं तो वह केंद्रीय एजेंसी ही हो सकती हैं ,दूसरा कोई उपाय नहीं हैं । विरोध करने वाले स्वरों को यह सत्य जानना होगा ,और मंज़ूर करना होगा ।
विस्फोट के बाद एक बार फिर राजनीतिक दलों में ज़बानी जंग शुरू हो गयी हैं ,की ,यह किसकी गलती हैं और इस का जिम्मेदार कौन हैं -किसे कारवाई करनी थी ? इन प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए हमे शुरू से देखना होगा } एन सी टी सी क्या राज्यों के अधिकारों में हस्तछेप हैं -क्या हमे आतंकी घटनाओ के लिए अमेरिकी ढंग अपनाना चाहिए ? देखा गया हैं की जब -जब ऐसी घटनाये होती हैं तब - तब दलो के नेता टीवी और समाचार पत्रों में काफी कड़े बयां देते हैं । जो अमेरिकी ढंग अपनाने की बात करते हैं वे भी , केंद्र की सरकार को दोषी बताते हुए ""तबर्रा "" पड़ना शुरू कर देते हैं । पर उनमें कोई भी इस काम को कैसे अंजाम दिया जाए उस बारे में चुप रहते हैं । टीवी पर हनी वाली चर्चा में तो जीभ खुजाने के लिए बयां वीर काफी ऐसे सुझाव देते हैं , जिनको आमली जामा देना बहुत मुश्किल ही नहीं वरन नामुमकिन सा हैं । क्योंकि वे देश की सामर्थ्य - उसकी -सीमाए और कानून का बंधन के कारन आने वाली दिक्क़तो को नज़रंदाज़ कर देते हैं । आगे देखेंगे की उनके कहे या -उवाच को क्यों नहीं किया जा सका ।
हमारे संविधान में शांति - व्ययस्था का दायित्व राज्यों को दिया गया हैं , फलस्वरूप अपने- अपने इलाकों में उनकी अलग पुलिस हैं , , जिसका काम अपराधो रोकना और हुए अपराधो की विवेचना कर के अदालत में पेश करना हैं । यह एक सच्चाई हैं की देश की ज़मिन पर राज्यों का हुकुम चलता हैं ,उनका ही कब्जा हैं । अर्थात केंद्र के पास अपना कहने को कोई इलाका नहीं हैं -सिवाय उसके कार्यालयों के और वे भी बिजली -सड़क -पानी के लिए उस स्थान की नगर निगम और प्रदेश सरकार पर निर्भर हैं ।
इन तथ्यों के प्रकाश में अब हमे आतंकी घटनाओ की जांच और ज़िम्मेदारी की बात करनी हैं । हैदराबाद का बम विस्फोट दंड संहिता के अनुसार एक अपराध ही हैं ,और इसी लिए थाने में उसकी रिपोर्ट लिखी गयी हैं । अब कारवाई की शुरुआत भी आन्ध्र पुलिस ने कर दी हैं , लेकिन इस घटना को आतंकी कारवाई होने के कारन इसके सूत्र अनेक राज्यों तक फैले हुए हैं । चूँकि हर राज्य की पुलिस का काम करने का तरीका अलग हैं लिहाज़ा कठिनाई आ रही हैं । ऐसे में ज़रुरत हैं एक संस्था की जो देश के सभी भागो में एक साथ कारवाई कर सके -वह भी बिना किसी अडंगे के । जैसे इनकम टैक्स की कारवाई सारे देश में निर्विघ्न की जाती हैं । अब इसी चुनौती से निपटने के लिए ही केंद्र ने आतंक विरोधी केंद्र { N.C.T.C.} बनाने का फैसला किया हैं ।
इस फैसले का तथ्य यह हैं की ज़मीन भले ही राज्यों के अधीन हो परन्तु आतंकी हमले भारत की भूमि पर होता हैं , उसकी प्रभुसत्ता पर होता हैं अतः कारवाई भी केंद्र को करनी होगी । पर यह कैसे हो - प्रश्न यही हैं । अब इसी काम को अंजाम देने के लिए आतंक विरोधी केंद्र की स्थापना प्रस्तावित हैं । इस पहल के विरोध करने वाले भी मांग करते हैं की अमेरिका की भांति यंहा पर भी सुरक्षा बंदोबस्त होने चहिये , पर वे इस मांग केके विस्तार को नहीं समझते ।
सर्व प्रथम तो अमेरिका एक सुपर पॉवर हैं वह इंटरनेशनल दबावों को नकार सकता हैं , हम नहीं । भले ही हम टीवी पर संसद में बयां देकर वाह वाही लूट लें परन्तु हकीक़त में क्या हम पाकिस्तान पर हमला कर सकते हैं नहीं । क्योंकि अगर उसने एटॉमिक हथियारों का इस्तेमाल किया तो क्या हम उसके लिए तैयार हैं ? दूसरा सवाल हैं की जितना धन वह ख़ुफ़िया तंत्र पर खर्च करता हैं क्या हम कर सकते हैं ? कतई नहीं , जब हम आधार मज़बूत नहीं कर सकते तो हमे वंही सुझाव या मांग करनी चाहिए जो हमारी आर्थिक चादर के अनुरूप संभव हो । इस सन्दर्भ में एक ज्वलंत प्रश्न हैं राज्यों के अधिकारों का ।
अमेरिका में भी शांति व्यस्था स्थानीय निकायों और राज्यों का अधिकार हैं , परन्तु वंहा काउंटी में पुलिस होती हैं मगर गंभीर परिस्थितियों में स्टेट फाॅर्स और नेशनल गार्ड की भी मदद ली जाती हैं । ऐसे अपराध जिनके सूत्र राज्यों की सीमा के ,.बाहर हो उनकी छानबीन फेडरल ब्योरो करता हैं । इसके लिए वह स्थानीय पुलिस का मोहताज़ नहीं होता । वरन वह संदिग्ध व्यक्तियों को सीधे गिरफ्तार करता हैं । उनसे पूछताछ करता हैं ,बाद में मुक़दमा भी राज्य की नहीं वरन विशेस अदालतों में चलता हैं । वंहा यह अधिकार हैं ,और यंहा इसी अधिकार को राज्यों की प्रभुता का अतिक्रमण बताते हुए विरोध हो रहा हैं । ९/१ १ के बाद अमेरिकी केंद्रीय एजेंसी ने सैकड़ो लोगो नज़रबंद रखा --वंहा किसी राज्य ने न तो आपति जताई न ही विरोध किया ।
अगर एक साथ आतंकी गुटों के खिलाफ कारवाई करनी हैं तो वह केंद्रीय एजेंसी ही हो सकती हैं ,दूसरा कोई उपाय नहीं हैं । विरोध करने वाले स्वरों को यह सत्य जानना होगा ,और मंज़ूर करना होगा ।
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