भाग
एक
इन्फोसिस
या संस्थान या कारपोरेट
कृष्णमूर्ति और सिक्का
कौन
लाभ दायक विकास मे या मुनाफा
-कमाने
मे ??
मुख्य
कार्यकारी अधिकारी विशाल
सिक्का द्वारा इस्तीफा दिये
जाने के बाद इन्फोसिस के शेयर
मे गिरावट हुई और स्टॉक मार्केट
के अनुसार 35
हज़ार
करोड़ की "””
हानि'''
का
अनुमान लगाया गया है |
संस्थापक
कृष्णमूर्ति सिक्का द्वरा
अपनी और अपने चार अधिकारियों
के वेतन -भत्ते
अंतराष्ट्रीय पैमाने के सीईओ
के बराबर कर लेने पर एतराज
जताया |
जिस
पर बाज़ार के लोगो ने मुनाफा
खोने की उम्मीद जताई |
ऐसा
हुआ भी |
पर
सवाल यह था की क्या संस्थान
के स्वरूप को कायम रखना ज़रूरी
था अथवा रिलायंस की भांति
एक मुनाफा देने वाली कंपनी
बनाना ??
अगर
हम इन्फोसिस की स्थापना को
देखे --तो
पाएंगे की उनका यह प्रयास
देश को सॉफ्टवेयार के छेत्र
मे नौजवानो को अवसर देना |
उनके
समय जो प्रशिक्षु थे वे भी
संस्थान मे साइकल मे घूम कर
वैसा ही वातवरण पाते थे जैसा
कभी शांति निकेतन मे रहा होगा
|
यानहा
के करमचारी प्रोजेक्ट पर काम
करते थे – कुछ कर दिखने और कुछ
नया सीखने की ललक हुआ करती थी
|विशाल
सिक्का के पूर्व के कार्यकारी
अधिकारी गण ने इन्फोसिस की
आत्मा और 'कल्चर
''
को
कायम रखा |
कभी
भी इन्फोसिस के इतिहास वनहा
काम करने वालो के वेतन -भत्तो
मे असमानता नहीं देखी गयी
----जितनी
विशाल सिक्का के समय हुआ !!
सैकड़ो
गुना के अंतर ने ---
बेरोजगारी
से जूझ रहे इंजेनीयरो के मुंह
सी रखे थे |
अंतर--
विभागीय
संवाद का स्थान सिर्फ डेड
लाइन और प्रोजेक्ट पूरा करने
की चुनौती हुआ करती थी |
जबकि
कृष्णमूर्ति का उद्देसी और
व्यवहार एक गुरु की हुआ करती
थी |
करमचारी
उनसे डरते नहीं थे ---वरन
सम्मान करते थे |
इस
कारण नहीं की वे संस्थान के
मुखिया है ------वरन
इसलिए की वे सबसे "बड़े
थे "”
|
विशाल
के जमाने मे यह रिश्ता "”
अफसर
और मातहत का रह गया "”
| संस्थान
से बन गयी कंपनी अब सिर्फ
मुनाफा ही देखती थी --भले
ही उसके लिए कानून या नैतिकता
को बाइ -
बाइ
करना पड़े |
अमेरिका
मे इन्फोसिस पर कानूनों की
अवहेलना के मामले सामने आए
-वे
सभी विशाल सिक्का के समय के
ही है |
संस्थागत
निवेशको को छोड़ दे तो छोटे
-छोटे
निवेशको ने अपनी बचत और पूंजी
इसलिए लगाई थी क्योंकि उन्हे
क्रष्णमूर्ति पर वैसा ही
भरोसा था जैसा की शायद डॉ कलाम
पर था |
दोनों
ही ज्ञानी तथा निजी जीवन मे
नितांत सादगी और सहजता |
धन
के मद से कोसो दूर |
अमेरिका
के धनपति वारेन बफेट आज भी
पाँच कमरो के फ्लॅट मे रहते
है |
वैसे
ही कृष्णमूर्ति और उनकी पत्नी
सुधा भी छोटे से फ्लॅट मे रहते
है |
उनकी
जीवन शैली स्पष्ट कर देती है
की उन्होने इन्फोसिस
की शुरुआत एक उदयम के रूप की
थी जनहा देश के नौजवान काम
सीखे और करे ---उन्हे
अफसर और मातहत का या मालिक
और कर्मचारी का भाव नहीं आए
|
जबकि
विशाल सिक्का इसे मुनाफा
कमाने की मशीन बना चाहते थे
|
अंबानी
की रिलायंस की तरह धंधे वाली
कंपनी बनाना ही उनके लिए यथेष्ट
था |
क्योंकि
उनकी प्रष्ठभूमि इसी प्रकार
की थी --जनहा
मालिक को मुनाफा देना ही सफलता
होती है |
उन्होने
संस्थान के कल्चर को ही खतम
कर दिया |
यही
कारण है की उनके जाने के बाद
सिर्फ उच्च पद के ही एक आध अफसर
गए |
बाकी
लोगो ने संतोष की सांस ली |
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