तलाक
तलाक तलाक का मामला --आधी
आबादी का नहीं वरन
फकत
9 करोड़
मुस्लिम महिलाओ के लिए राहत
है _- अभी
और भी मुकाम बाक़ी है
सुप्रीम
कोर्ट द्वरा पाँच सदस्यीय
बेंच ने एक सांस मे अथवा एक
बार मे बोल कर या लिख कर तलाक
देने की रवायत को खतम करके 9
करोड़
मुस्लिम महिलाओ के एक भाग को
बड़ी राहत दी है |
अमूमन
ऐसे तलाक के मामले हर साल कुछ
सैकड़ा ही सामने आते थे |
परंतु
फिर भी इस प्रथा से औरतों को
जो दोयम दर्जे की हैसियत दी
गयी थी ---
वह
गुलामी से कम नही थी |
इस्लाम
मे निकाह एक क़रार है जिसमे दो
पक्ष शामिल होते है |
जिसमे
गवाह भी होते है |
क़ाज़ी
की भूमिका एक जज की मानिन्दा
होती है |
जो
दोनों ही फरीकैन को इंसाफ
मिले इसके लिए पाबंद होता है
|
पर
इस एकतरफा फैसले के मामले मे
वह भी मजबूर हो जाता था वह शौहर
के फैसले को "”दीनी
या शरीयत "”
के
किसी उसूल को तोड़ने का जिम्मेदार
नहीं करार दे सकता था |
वह
बस एक बेबस तमाशबीन की हैसियत
इन मामलो मे रखता था |
वह
किसी भी प्रकार की राहत ऐसी
तलाक शुदा औरत को नहीं मुहैया
करा सकता था |
निकाह
के दीगर मसलो मे भले ही वह किसी
को भी पाबंद कर सकता था |
क़ाज़ियत
की इस सीमित हालत के लिए इतने
बरसो मे कोई पुख्ता पर्सनल
ला बोर्ड द्वारा नहीं की गयी
|
वरन
इस मसले से उन्होने अपने को
अलग ही रखना ठीक समझा |
इस
हिसाब से मुस्लिम औरतों को
जो ज़िल्लत इस कायदे से उठानी
पड़ती थी ---वह
अब खतम हो गयी |
बाक़ी
तलाक के रास्तो मे दोनों ही
तरफ के लोग अपनी -
अपनी
बात कहने का हक़ रखते है |
कुछ
लोग अब चार शादी के हक़ और हालला
को भी खतम करने की आवाज़ उठा
रहे है |
गौर
करने की बात है की यहूदी और
ईसाई धर्म मे भी यह प्रथा नहीं
है |
फिर
किस वजह से इस्लाम मे यह ज़रूरत
आन पड़ी ??
कैथोलिक
संप्रदाय मे तो तलाक की इजाजत
ही नहीं है |
ब्रिटेन
मे एलीज़ाबेथ प्रथम ने जब
प्रोटेस्टेंट संप्रदाय की
स्थापना की और स्वयं ही उसकी
प्रधान पुजारी या मठाधीश बनी
तब वनहा तलाक जायज हुआ |
इसी
प्रकार वेदिक धर्म मे भी आज़ादी
के पहले एक से ज़्यादा विवाह
जायज था |
हमारे
अवतारो मे से एक ने कई शादिया
की थी |
परंतु
उनसे पहले के अवतार मे "”एक
विवाह "”
को
ही सर्वोतम बताया गया था |
परंतु
बाद मे परंपरा हो गयी की जमींदार
और बड़े -बड़े
लोग कई -
कई
विवाह करते थे |
इसी
के चलते बेमेल विवाह भी होने
लगे कूलीन परिवारों मे बेटियाँ
देना इज्ज़त की बात समझी जाती
थी |
भले
ही वर और वधू की आयू मे बीस से
जादा वर्ष का अंतर हो |
राजपूताना
और बंगाल मे यह बीमारी बहुत
ज्यादा फ़ेल गयी थी |
इसी
लिए वनहा संपाती मे हिस्सा
ना ना देना पड़े इसलिए विधवा
को सती करने की प्रथा चल निकली
|
जिसे
ईस्ट इंडिया कंपनी के समय मे
ही 1829
विलियम
बेनटिक ने राजा राम मोहन रॉय
के आंदोलन के कारण समाप्त किया
|
विधवा
विवाह तब तक वेदिक धर्म मे
व्यसथा ही नहीं थी |
जैसे
धर्मांतरण की कोई विधि धर्म
मे है ही नहीं |
इसी
प्रकार सदियो की रिवयतों को
मौजूदा हालत के मद्दे नज़र
बदलना पड़ता है |
इतना
ही नहीं -दूसरे
धर्मो के मर्दो के दिल जलते
थे |
जलते
है \
के
बाद जवाहरलाल नेहरू ने
हिआज़ादीन्दू कोड बिल के लिए
परंपरवादियों – साधु और -महंतो
की आलोचना सही |
उनके
अनुसार जाति प्रथा -
छूआछूत
-
सभी
को मंदिर मे प्रवेश आदि सुधारो
के लिए समय आ गया है |
अब
हिन्दू मैरिज एक्ट मे पहले
की आठ पद्धतियों को खतम कर एक
ही को कानूनी दर्जा दिया |
इसमे
यह भी बताया गया की कौन सी शादी
जायज होगी कौन नहीं |
दो
-
चार
साल सफ़ेद और भगवा धारी संत और
महात्माओ ने हो -हल्ला
किया |
फिर
सभी शांत हो गए |
मेरा
मानना है की भोपाल मे मुस्लिम
पर्सनल ला बोर्ड की होने वाली
बैठक मे भी इस अदालती फैसले
को मंजूरी मिल जाएगी |
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