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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 22, 2017

अमित शाह का तीन दिनी दौरा – क्या कहा व क्या समझाया पार्टी
को एक समीक्षा

अगस्त के अंतिम सप्ताह मे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की भोपाल यात्रा सरकार और संगठन को हिला कर गयी है | बड़े -बड़े दिग्गजों के मंसूबे चूर हुए वनही सरकार ने उनके भव्य स्वागत और लगातार कार्यक्रम कराकर बिलकुल व्यस्त रखा | | उनके कुछ कथन जो उन्होने कहा अथवा उनके हवाले से छपा {{ क्योंकी उन्होने साफ कहा था की मुझे से पूछो की मैंने काया कहा -वरना सब झूठ }} उस पर एक समीक्षा::--


  • पत्रकार वार्ता – अपनी यात्रा और सामयिक विषयो पर टिप्पणी के लिए बुलाई गयी प्रैस कोन्फ्रेंस मे सर्वाधिक उत्तर जो चर्चित हुआ - वह था सारे पत्रकारो को "”मूर्ख "” कहने का | आज तक 70 वर्षो मे भी किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता के मुखारबिंद से ऐसे शब्द पहली बार मीडिया के लिए इस्तेमाल किए गए | अब इसके लिए भाजपा को या शाह को साधुवाद देना होगा की – आज के मीडिया मालिको ने पत्रकार को एक वेतनभोगी बना कर रख दिया है | ऐसा नहीं है की आज का युवा कम समझदार है अथवा घटनाओ को समझ नहीं पता ----वरन उसकी कठिनाई यह है की जो वह समझता है उसे लिखने की संस्थान "”इजाजत '' नहीं देता | उसे तो बस "”नख- दंत विहीन होकर "” एक दर्शक की भांति ही रेपोर्टिंग करना है !! पत्रकार वार्ता मे अमित शाह का व्यव्हार शालिन पर भाषा और तरीका काफी तानशाह पूर्ण था | पूरक प्रश्नो को हतोत्साहित करना भी एक कारण था | उनके जवाबो से प्रतिद्वंदी राजनीतिक दलोके लिए केवल असम्मान और विद्रुप ही था ! ऐसे मे लोकतान्त्रिक परम्पराओ का ''हनन '' अवस्यंभावी ही है |
  • सूत्रो के हवाले से छपी "”झूठी खबर "” के अनुसार उन्होने अपने विधायकों और सांसदो तथा आँय पदाधिकारियों को ''आश्वस्त किया की हम 50 साल राज़ करने आए है ! अब हर पाँच साल मे होने वाले चुनावो से प्रदेश और केंद्र मे बनने वाली सरकार को "” दस चुनावो की सफलता "” खतरनाक है | क्योंकि इस प्रकार चुनाव की भविष्य वाणी करना यह साफ इंगित करता है की ---या तो चुनाव के नतीजे मनोनुकूल पाने की कोई चाभी हाथ लग गयी है या फिर चुनाव के होने पर ही संदेह है ! दोनों ही स्थितिया दुनिया मे छोटे देशो मे चरमराती प्रजातन्त्र की जड़े -वनहा या तो हिनशा को जनम दे रही अथवा विखंडन को | अंगर्जों द्वरा विभाजित किए गए इस भूखंड मे ऐसी घटना भयावह है | चुनावो की निसपक्षता पहले से ही डगमगा रही है ,, अगर कुछ और ज्यादा हुआ तो संतुलन बिगड़ ही जाएगा | जो देश की अखंडता और विविधता को अखंड नहीं रहने देगी |
  • चुनाव आयोग द्वरा राजनीतिक दलो द्वरा "” किसी भी कीमत पर जीत "” की भवन ने मानी नियम और कानून के प्रविधानों को नपुंसक तो बना ही दिया है ---अब तो उनकी भी निस्पछ्ता संदेह मे हो रही है | चुनाव आयुक्त ॐ प्रकाश रावत द्वरा दलो मे नैतिकता के अभवा के बारे मे सार्वजनिक टिप्पणी करके बहरे कानो को संदेश देने की कोशिस तो की है | परंतु उससे सट्टधारी नेत्रत्व के रुख मे बदलाव की संभावना तो नहीं लगती |
  • न्यायालयीन मामलो के परिणामो के बारे मे जिस दमदारी से अमित शाह जी ने कहा [[ झूठ खबर क्योंकि उनसे नहीं पूछ गया ]]] की तीन तलाक और अयोध्या मंदिर के फैसले माफिक होने की "”आशा "” मन कुछ संदेह ही व्यक्त करती है | तीन तलाक वाले मामले पर मोदी सरकार के तर्को को पाँच सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बहुमत से मान लिया है | इस बेंच का गठन भी बहुत समझबूझ कर किया गया था – प्रधान न्यायाधीश सिख- एक पारसी -एक मुस्लिम -एक ईसाई और एक हिन्दू ! यह फैसला भी बहुमत से ही हुआ है | ऐसा लगता है की अयोध्या मामले -बाबरी विध्वंश का अभी ट्रायल कोर्ट मे मुकदमा चल रहा है | लोगो का कहना है की आडवाणी - मुरली मनोहर जोशी - उमा भारती आदि बिसरे वक़्त के नेता शायद इस जुर्म मे दोषी सिद्ध हो सकते है |
  • अमित शाह द्वरा ''राज़'' किए जाने की बात उनकी मानसिकता को उजागर करती है – की सरकरे '''लोक कल्याण ''के या केन्द्रीय मंत्री तोमर के शब्दो मे "””सेवा "” के लिए नहीं है | वरन शासन के लिए है !! अर्थात संविधान के "”कलयाणकारी राज्य की स्थापना '' के उद्देश्य को तो नकार ही दिया है | अथवा यू कहे concept of a welfare state has been given a farewell अब यह ना केवल संविधान की आत्मा के विपरीत होगा वरन 125 करोड़ लोगो के साथ विश्वासघात भी होगा |
  • आखिर मे यह कहना होगा की अमित शाह से सवाल -जवाब के दौरान यह तो स्पष्ट हो गया की "”भले ही वे योग्य वकील नहीं हो परंतु वे सफल वकील है ''जो जज को ज़ेब मे रखता है |

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