क्या
मोदी सरकार
वर्तमान
दलाई लामा के उत्तराधिकारी
को निर्वासित सरकार प्रमुख
मानेगी ?
हाल
ही मैं चीन के एक अधिकारी ने
दावा जाते हैं की वर्तमान
दलाई लामा के उत्तराधिकारी
की खोज चीन सरकार द्वरा की
जाये ----
वही
तिब्बति समुदाय के धार्मिक
प्रमुख का स्थान लेगा !
अब
मोदी सरकार द्वरा चीन की धम्की
को कितना गंभीरता से लेती
हैं ,इस
बात पर सम्पूर्ण विश्व की
निगहे लगी हैं |
खासकर
भारत मैं बसे तिब्बती समुदाय
के लोगो के लिए चीन यह धम्की
उनकी आस्था और देश मैं उनके
भविष्य को संकट मैं डालने
वाली हैं |
विशेस
बात यह हैं की भारत सरकार ने
14वे
दलाई लामा और उनकी सरकार को
कूटनीतिक मान्यता दी हुई है
|
अब
तिब्बत से आने के 60
साल
बाद चीन की यह धम्की चिंताजनक
हैं |
1959
मै
मार्च माह मैं तिब्बत मैं चीन
की लाल सेना द्वरा वनहा के
धार्मिक और राजनीतिक प्रमुख
14
वे
दलाई लामा की हत्या के षड्यंत्र
के चलते उन्हे अपने खमपा
सैनिको के साथ भारत मैं शरण
लेनी पड़ी थी |
उस
घटना को हिमाचल प्रदेश के
धर्मशाला मैं स्थित तिब्बत
की निर्वासित सरकार के लोग
आज भी याद करते हैं |
दलाई
लामा ने अप्रैल 1959
मैं
आसाम के तेज़पुर से संयुक्त
राष्ट्र संघ से तिब्बत की
जनता की सुरक्षा और उनकी
संसक्राति की रक्षा की गुहार
लगाई थी |
जो
आजतक भी अनसुनी ही रह गयी हैं
|
दलाई
लामा के तिब्बत छोड़ जाने और
भारत सरकार द्वरा उन्हे शरण
दिये जाने पर उनके कजरों अनुयाई
भी धीरे -
धीरे
भारत आने लगे |
वे
वर्तमान के अरुनञ्चल प्रदेश
से लेकर कुमायूं और गढ़वाल
से लेकर लद्दाख तथा हिमाचल
की सीमाओं से भारत पहुंचे |
तत्कालीन
सरकार के प्रधान मंत्री पंडित
जवाहर लाल नेहरू ने विश्व की
महा शक्तियों से तिब्बती
शरणार्थियो को न्याय दिलाने
की अपील की |
परंतु
अंततः उन्होने तिब्बत की
निर्वासित सरकार को भारत
द्वरा राजनयिक मान्यता प्रदान
की |
इस
सरकार का मुख्यालय हिमाचल
प्रदेश के धर्मशाला मैं रखा
गया |
आज
भी दुनिया भर मैं फैले तिब्बती
समुदाय के लोग इस स्थान को
दलाई लामा के कारण पूजनीय
मानते हैं |
निर्वासित
सरकार के दूत संयुक्त राष्ट्र
संघ मैं समय समय पर अपनी आवाज़
उठाते हैं |
परंतु
चीन जैसी महा शक्ति के "”कोप"”
का
भजन बनने से बचते हैं |
इस
निर्वासित सरकार का काम तिब्बती
समुदाय के लोगो द्वरा दिये
गए दान और विदेशो से मिलने
वाली सहायता पर निर्भर हैं |
जाड़े
के मौसम मैं देश के उत्तरी
भागो मैं ये लोग गरम कपड़े और
-उनी
स्वेटर -मफ़लर
आदि की दूकान लगते हैं |
ये
लोग गरम कालीन भी बनाते हैं
-और
बेचते हैं |
84
साल
के दलाई लामा को दुनिया मैं
बौद्ध धर्म मानने वाले बहुत
श्र्धा से देखते हैं |
साथ
के दशक मैं चीन ने दलाई लामा
के मुक़ाबले "”पणछेन
लामा "”
बने
था |
जिसे
बौद्ध लोगो ने नकार दिया था
|
तब
से अनेक बार चीन दलाई लामा
की छ्वी को खतम करने का उपाय
कर चुका हैं |
अभी
सप्ताह भर पहले चीन सरकार की
ओर से एक बयान जारी किया गया
की आगामी याही की 15व
दलाई लामा चीन से हो ,
भारत
से नहीं !
जबकि
दलाई लामा की खोज की पारंपरिक
विधि अब संभव नहीं हैं |
क्योंकि
उस के अनुसार नए दलाई लामा
को पुराने दलाई लामा की सामाग्री
को बालक को पहचानना होता हैं
|
इसके
लिए तिब्बत के अनेक छेत्रों
मैं लामाओ को भेजा जाता था |
चूंकि
दलाई लामा को दैवीय गुणो से
युक्त माना जाता हैं ,
इसलिए
उनके पुनर्जन्म की पुष्टि के
लिए उनके वस्त्र और अन्य वस्तुवे
संभावित बालक को दिखाई जाती
हैं |
परंतु
अब दलाई लामा के उत्तराधिकारी
की खोज उस प्र्कृय से नहीं की
जा सकती |
इसलिए
ऐसा माना जाता हैं की निर्वासित
सरकार कोई अन्य रास्ता खोजेगी
|
परंतु
चीन की मांग यह हैं की अगला
दलाई लामा चीन मैं खोजा जाये
----जिसे
चीन की साम्यवादी सरकार मानन्यता
दे !!
सवाल
है की जिस सरकार मैं ऊईगर
मुसलमानो की मस्जिड़े गिराई
जाये ,
और
उनके नमाज पड़ने पर सज़ा दी जाए
,
उस
सरकार को किसी भी धर्म के प्राति
यह मोह क्यों ?
चीन
मैं साम्यवादी सरकार के गठन
के पूर्व वनहा पर बौद्ध धरम
मानने
वालो
की संख्या सर्वधिक थी |
इसीलिए
साठ के दशक मैं दुनिया मैं
बौद्ध धरम मानने वालो की संख्या
सर्वाधिक थी |
ईसाई
और इस्लाम मतावलंबियों का
नंबर उसके बाद आता था |
परंतु
चीन के साम्यवादी शासन ने धरम
को समाज का जहर बताते हुए सभी
धर्मो के उपासना ग्रहो को
नष्ट कर दिया |
इसमैं
शिंतो -कन्फूसियास
भी थे ,
जो
मूलतः चीन मैं ही जन्मे और
पनपे थे |
आज
भी चीन मैं धरम को बड़ी हेय नज़र
से देखा जाता हैं |
चीन
हाङ्कांग मै उपजे अहिंसक जन
आंदोलन से परेशान हैं |
वह
वनहा की उन्नति और समराधि को
तो चाहता है ,
परंतु
अपनी शिक्स्ञ्जा नीति को नहीं
छोडना चाहता हैं |
इस
परिप्रेक्ष्य मैं अगर हम चीन
की मांग को देखे तो पाएंगे की
वह दलाई लामा के माध्यम से
दुनिया मैं बसे प्रवासी चीनी
समुदाय की धार्मिकता को भुनाना
चाहता हैं |
यद्यपि
प्रावासी चीनी समुदाय के लोग
भगवान बुद्ध की मूर्ति की पूजा
करते है |
जबकि
दुनिया के अधिकतर बौदध् ,भले
ही वे किसी भी शाखा के हों
----दलाई
लामा को पूज्य मानते हैं |
अब
चीन अपनी गिरती हुई अर्थ
व्यवस्था “” को सम्मान “”
दिलाने के लिए यह चाल चल रहा
हैं |
साथ
ही वह तिब्बतियों को चीनी मूल
का बता कर अपना अधिकार चाहता
हैं |
गौर
तलब हैं की चीन की अर्थ व्यवस्था
मैं प्रवासी लोगो द्वरा भेजी
गयी विदेशी मुद्रा एक अहम
स्थान रखती हैं |
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