मिडियाक्रिटि और
संस्थानो के मुखियाओ की नियुक्ति
सरकारे बनती है
चुनाव मे बहुमत पाने के उपरांत ,, और हर
सरकार किसी न किसी दल या दलो के गठबंधन की बनती है | परंतु
गणतन्त्र के साठ वर्षो
मे निर्मित कुछ संस्थानो की
निसपछता और योग्यता पर कभी “”छिछलते”” हुए वार तो हुए है
,परंतु कभी
भी ‘’बंटाढार “”” नहीं हुआ | जो शायद अब हो रहा है |सवाल
किसी की ‘’अपूर्णता अथवा अनुपयकता से नहीं है | परंतु अगर डी आर डी ओ मे ऐरो डायनामिक्स के सफल इंजीनियर के स्थान पर
‘’’’जलीय
जीवन’’’ के डाकटरेट को मुखिया बनाना क्या सिद्ध करता है ?? यही
की हमारे लिए नियुक्ति मे योग्यता से ज्यादा “”निर्णायक”” हमारे साठ
समबद्ध होना है | इतिहास परिषद
मे अब ऐसे लोगो को नामित करना जो
“”पौराणिक “” तथ्यो को वैज्ञानिक सिद्ध करने की असफल कोशिस कर रहे है | साइंस काँग्रेस मे “”पुष्पक विमान”” की अवधारणा को वैज्ञानिक और ‘’वायु शास्त्र’’ पर आधारित कर के एक दिनी सनसनी तो पूना के एक व्यक्ति ने पैदा कर दी थी | परंतु तीन
दिन के सत्रह के बाद इस अवधारणा को कपोल कल्पित ही सिद्ध किया गया | इतेफाक से साइन्स काँग्रेस का
उदघाटन भी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने
ही किया था ,और अपने भासण मे अपने वेदिक ज्ञान को वैज्ञानिक आधार देने का आग्रह भी किया था ||
योजना आयोग जो देश और प्रदेशों के लिए योजनाओ का
नियोजन और वित्तीय सहायता का
प्रबंध करने का था | जो
संस्था पिछले पचास सालो से यह काम
कर रही थी ---उसे मोदी सरकार ने “”निरर्थक’””’ घोषित कर
दिया | उसकी जगह पर नीति आयोग बना दिया | जिसमे राज्यो
को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा ---क्या योजना आयोग मे
राज्यो को अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं मिलता था ?? मेरे अपने अनुभव से यह कह सकता हूँ की विभाग
के सचिव योजनाओ के लिए वित्तीय
पोषण के लिए योजना आयोग के सामने जाना
होता था –इसके लिए बहुत तैयारी भी होती थी | केंद्र समर्थित
योजनाओ मे अपने हिस्से के लिए भी आकडे
एकत्रित किए जाते थे | जनसंख्या और पिछड़ापन अक्सर
वित्तीय पोषण का आधार होता था | इस प्रकार से केंद्र को राज्यो के विकास का अंदाज़ भी रहता था | परंतु नीति आयोग मे अभी तक उप
समितीय ही काम कर रही है –प्राथमिकता और वित्तीय पोषण की व्यसथा का अभी स्वरूप नियत नहीं हुआ है |
फिल्म ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट ऑफ
इंडिया फिल्मों की दुनिया मे एक “” सम्मान
“” का स्थान रखता है | इस संस्थान
से निकले अभिनेता और अभिनेत्री और
निर्देशक आज देश ही नहीं विदेशो मे भी जाने
जाते है | फिल्म एक शासक्त माधयम है और उद्योग भी है | जिसमे अरबों रुपये
का निवेश है और अरबों रुपये का राजस्व भी
राज्यो को मिलता है |सेंसर बोर्ड के सदस्यो के रवैये को लेकर भी हाल मे विवाद हुआ था | कारण था की कुछ नए सदस्यो को कुछ फिल्मों के द्राशयों को “भारतीय संसक्राति’’ की भावना के विपरीत पाया ,और उस फिल्म मे काट – छाँट कर दी | मामला अदालत तक पहुंचा –अखबारबाजी
भी हुई | तब सेंसर बोर्ड का एक अधिकारी रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया | फिर बोर्ड का पुनर्गठन हुआ , पर कोई नामची कलाकार
नहीं मिला | वही एफटी टी आई के निर्देशक
के रूप मे गजेंद्र चौहान की
नियुक्ति ने पुनः कॅम्पस मे हलचल मचा रखी है , वहा
के छात्र जंतर – मंत्र पर धरना दे रहे है | गजेन्द्र की योग्यता सिर्फ इतनी
है की वे महाभारत मे युधिस्टर बने थे वही
उनकी सबसे बड़ी पहचान है फिल्मी दुनिया मे | मुंबई की फिल्म सिटी मे सम्पूर्ण फिल्मे बनती
है और टीवी के लिए सीरियल
भी बनते है | दोनों का बाज़ार और दर्शक अलग है | टी वी
के लिए बनाने वाले निर्माता और
अभिनेता सदैव फिल्म की ओर मुंह करते है | क्योंकि टी वी उन्हे दर्शको तक पहुंचाए भले ही परंतु स्टार
की पहचान नहीं दिला सकता | इस श्रेणी मे भीष्म पितामह
और शक्तिमान का रोल निभा चुके मुकेश खन्ना चर्चित तो हुए परंतु फिल्मों मे उनकी भी
चौहान की तरह “””नो एंट्री “””” रही | यही तथ्य स्पष्ट करता
है की चौहान निर्देशक पद के लिए “”” उपयुक्त’’ नहीं है |
अब सवाल उठता है की फिर सरकार के
लोगो ने क्या देख कर उन्हे इस पद के योग्य समझा ?? जवाब है की राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की संबद्धता –क्योकि संघ मे
“””सदस्य:””” का कोई कालम है ही नहीं | इस लिए कोई भी फिल्मी दुनिया का आदमी जिसकी इज्ज़त
हो और मान्यता हो वही सही व्यक्ति हो सकता है |
रही बात की क्या काँग्रेस के जमाने मे ऐसी नियुक्तीय
नहीं हुई ?? यह नहीं कहा जा सकता की शत
प्रतिशत योग्यता का मान दंड निर्णायक रहा हो
| परंतु यह भी उतना ही सही है की डॉ एय पी जे कलाम जैसा वैज्ञानिक डी आर डी ओ का निर्देशक रह चुका हो उस कुर्सी पर एक ऐसे व्यक्ति
को बैठा देना जिसे रॉकेट प्रणाली और ऐरो डायनामिक्स का ज्ञान नहीं हो वह मूर्खता की हद तक अनुपयुक्तता है |
No comments:
Post a Comment