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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 11, 2015

सती प्रथा के पश्चात संथारा को गैर कानूनी

 सती प्रथा  के पश्चात संथारा को गैर कानूनी बनाना उचित ?

   विलियम  बेनटिक ने ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर गेनरल के रूप मे 19वी सदी के प्रथम भाग मे “”” सती प्रथा “”” को गैर कानूनी घोषित किया था | राजा राम मोहन रॉय  ने 1820 मे कलकत्ता मे ब्रामहो समाज की स्थापना की थी | जिसका उद्देस्य  वेदिक धर्म मे पनपी कुरीतियो  को समाप्त करना था | उस समय जाति को लेकर ज्झूठी  शान और –अहंकार  से वहा  का ब्रामहण समाज  ओत – प्रोत था | ऊंची जाति मे पहचान बनाने के लिए  लोग बच्चियो की शादी उनके बाबा के उम्र वाले लोगो के साथ कर देते थे | जिसका परिणाम होता था की एक बुढऊ के परलोक गमन से तीन –चार स्तरीय विधवा हो जाती थी | परिवार वाले उन्हे ‘’अपशकुन ‘’’’मानने के कारण उन्हे काली घाट या बेनारस अथवा मथुरा ले जाकर छोड़ आते थे |  परिणाम यह होता था की इन धार्मिक स्थानो के पंडे - – पुजारी  इन महिलाओ का शोसन किया करते थे | अधिकान्स्तः  या तो भीख मांगने  अथवा वेश्यव्रती करने पर मजबूर होती थी |
                   अनेक स्थानो पर उच्च कुल के ब्रम्हाणो के साथ नयी पत्नी को सती भी करने की प्रथा थी | इस प्रथा का विरोध करने पर तत्कालीन पंडे-पुजारी  लोगो की धार्मिक भावना भड़काते थे |सुधार वादी लोग मारे पीते जाते थे और अधिकतर घटनाओ मे मौते भी हुई | विधवा स्त्री को ''भांग ''''पिलाकर""" सबके सामने सर हिला कर सती होने के लिए उसकी ''सहमति''' का प्रचार किया जाता | यद्यपि वेदिक धर्म मे सती परंपरा का कोई उल्लेख नहीं है  ना ही कोई प्रमाण |  हा मध्य काल मे  राजपूतो की महिलाओ ने  मुगलो से अपनी इज्ज़त बचाने के लिए  अग्नि मे समा कर जान देना अधिक उचित माना | पुराणो मे भी ''' अग्नि मे प्राण देने का उल्लेख नहीं है |महाभारत मे माद्री द्वारा  महाराज पांडु के देहावसान  पर सती होने का उल्लेख है | परंतु युद्ध मे वीरगति प्राप्त कौरव वीरों की पत्नियों द्वारा अग्नि  प्रवेश का उल्लेख नहीं मिलता |विदेशी हमलावरो से इज्ज़त की रक्षा सनातन धर्म मे अत्यंत महत्वपूर्ण कहा गया है | यही घुट्टी कन्याओ को पीटीआई की ज्यादतिया सहने पर मजबूर करती थी | फिर विधवा को असगुन और कलंक मानकर घर से बाहर करदेना सनातन धर्म मे मानने वालों मे आम धारणा थी |  परंतु क्या सती प्रथा ''धार्मिक'''' है ? इस पर आज 21वी सदी मे कोई भी सहमत नहीं होगा | सिवाय उनके जो आज भी ""धर्म """ के नाम पर दक़ियानूसी  रिवाजो को चलना छाते है |

            संथारा भी  जैन मत की एक परंपरा है जिसमे  आयु एवं रोग के कारण जर्जर  शरीर को उपवास करके छोड़ने की प्रक्रिया करता है | वैसे यह प्रत्येक व्यक्ति का निर्णय है की वह जीवन कैसे जिये ---परंतु जीवन को '''अंत'' करने की अनुमति  राज्य नहीं देता है | वह उसे ''अपराध की श्रेणी मे रखता है |  राजस्थान उच्च न्यायालय  द्वारा  के मुख्य न्यायाधीश  अंबवानी और जज  अजित सिंह द्वारा इस प्रथा को  भारतीय दंड संहिता  की धारा 306 के अंतर्गत ''आत्महत्या के लिए उकसाना माना है | चूंकि  इस फैसले से जैन समाज मे रोष है और वे इसे धार्मिक पारम्पराओ मे हस्तछेप मानते है | परंतु चाहे हिन्दू कोड बिल हो या --शहबानों  प्रकरण हो अथवा मौजूदा मामला हो  सुप्रीम कोर्ट  मे ही निपटारा होता है || इसलिए नहीं की ''वह सही होता है '''''''वरन इसलिए की सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अपील नहीं कोटी """|   

                  

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