भीड़
का प्रजातब्न्त्र अथवा कुछ
लोगो की गिरोहबंदी ?
एक
अङ्ग्रेज़ी दैनिक की खबर के
अनुसार KFC फूड
चेन के वीरुध कुछ हिन्दू और
मुस्लिम लोगो ने एकत्र हो कर
इकबाल मैदान मे कंपनी को देश
मे बंद किए जाने की मांग की
है | ताज्जुब
की बात है की इस हस्ताक्षर
अभियान मे शहर क़ाज़ी मुश्ताक़
अली नदवी ने तथा मस्जिद कमिटी
के यासीर अराफात तथा हिन्दुओ
की ओर से अरुण छावरिया से इस
अभियान को केएफ़सी मुक्त भारत
अभियान का नाम दिया |वजह
यह बताई की केएफ़सी को बताना
चाहिए की वे हलाल का बेचते है
या झटके का मांस बेचते है |
उन्होने
पुलिस मे शिकायत भी दर्ज़ कराई
है की इस कंपनी के व्यापार से
उनके "”धार्मिक
भावनाओ "”” को
आघात पहुंचा है |
वैसे
दूकान पर जाना वैसे ही है जैसे
शराब की दूकान पर जाना |
इस्लाम
मे शराब भी हराम कही गयी है ,,
पर उस
पर कोई मांग या आंदोलन नहीं
है | जो
झटके या हलाल से ज्यादा ज़रूरी
है ,, घर
- घर
मे झगड़े और मारपीट का मूल है
|
जंहा
मुस्लिमो का एतराज़ केएफ़सी
मे मिलने वाले मांस के "”हलाल"”
का ना
होने की थी वनहा छावरिया का
कहना था के वे "”गौ
संरक्षण "” की
मांग करते है |
क़ाज़ी
के अनुसार केएफ़सी को बताना
चाहिए की वे जो बेच रहे है वह
" हलाल
" का
गोष्त है झटके का नहीं |
इन
दो परस्पर विरोधी मांगो के
लिए "”एक
साथ "” हस्ताक्षर
अभियान कुछ समझ मे नहीं आती
है | अभी
तक गाय को बचाने के लिए उनको
ट्रको मे ले जाने वाले मुस्लिम
व्यापारियो को अनेक स्थानो
पर बहुसंख्यक समुदाय के आक्रोश
का सामना करना पड़ा था |
दूसरा
केएफ़सी मे "”बीफ
"”” का
इस्तेमाल नहीं होता है ,
ऐसा
उनके प्रबंधन का कहना है |
फिर
गाय संरक्षण की इस अवसर पर
ज़रूरत नहीं समझ आ रही है |
मुस्लिम
समुदाय के लिए हलाल ही जायज
है ,, उनका
विरोध
तो समझ मे आता है |
परंतु
प्रपट रिपोर्टों के अनुसार
कंपनी अपने लिए मुर्गो की
खरीद गोदरेज और वेनन्की से
खरीदती है | जो
हलाल का सर्टिफिकेट बॉम्बे
के एक मुफ़्ती द्वारा दिया
गया है | अब
क़ाज़ी नादवी का कहना है की वह
सर्टिफिकेट केएफ़सी को नहीं
दिया है | वे
इस बात को नहीं समझना चाहते
है की केएफ़सी कोई मुर्गी पालन
केंद्र नहीं चलती है --जहा
से वे अपने वितरण केन्द्रो
पर चिक़ेंन बेचते है |
क़ाज़ी
साहब का कहना है की केएफ़सी इस
बात की सार्वजनिक घोसणा करे
की वे झटका बेचते है या हलाल
? इस
मांग से धर्म गुरु की कमजोरी
साफ झलकती है |
इस्लाम
मे हलाल को ही जायज कहा गया है
--तब
यह हर बंदे का फर्ज़ बंता है की
वह यह तसदीक़ करे की जो गोष्त
वह ले रहा है वह वाजिब है या
नहीं | शहर
मे बहुत से मांस बेचने वाली
दूकानों पर लिखा होता है की
यानहा झटके का मीट मिलता है
| अब
यह लेने वाले की मर्ज़ी वह कान्हा
से ले | पर
यह कहना की हर होटल या रेस्टुरेंट
इस बात को बाहर लिखवा दे की
यानहा हलाल का मांस मिलता है
या झटके का --यह
तो बहुत '''गैर
वाजिब "”बात
है | अगर
आदमी को अपने उसूलो से इतना
महत्व है तो वह ''ऐसी
''जगह
पर ना जाये | वैसे
तो इस्लाम मे शराब भी "””हराम
"” है
तो क्या शहर की सभी शराब की
दूकानों को बंद कर दिया जाएगा
?? यही
है भीड़ या गिरोह की राजनीति
|
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