कहने
मे क्या जाता है ---
सरकार
-शासन
और न्यायालय
हाकिम
का कहना हुकुम हुआ करता है ,
ऐसा
इस देश की 90% जनता
का विश्वास है |
इस
श्रेणी मे तहसीलदार से लेकर
मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री
तक आते है | अदालतों
के जज भी आम लोगो के लिए माई
-बाप
की श्रेणी मे आते है |
जिनके
मुंह से निकले शब्दो को औसत
भारतीय हुकुम मानता है |
उस पर
विश्वास लाता है |
वैसे
तो इसी कतार मे डाक्टर भी आते
है जिनहे वह धरती पर भगवान के
दूत मानता है |
परंतु
जब हाकिम और धरती पर इन “”देव
दूतो “” के कथन को वह कोरा झूठ
और धोखा देने वाला पता है तब
उसकी रीढ और विश्वास दोनों
ही टूट जाते है |
लेकिन
यह आजकल होता रहता है |
पानी
की बिजली की या सरकारी अमले
की बेईमानी की बात जब की जाती
है तब ढपोर शंख की भांति नेता
-मंत्री
और अफसर कोरा आश्वासन ही जनता
को थमा देते है |
खास
कर चुनावी सभाओ मे कहे गए
"””वचनो
"””को
तो "”” जुमला
"""ही
बता दिया जाता है ,
जबकि
उनही वचनो पर ईमान ला कर भोली
- भली
जनता उन्हे सिंहासन पर बैठा
देती है | गलती
का एहसास होने पर उसके पास
पाँच वर्षो तक इंतज़ार करने
के अलावा कोई विकल्प नहीं होता
| क्योंकि
इन सामर्थ्यवान लोगो के लिए
तो "””कहने
मे क्या जाता है "””
देश
मे राज नेताओ द्वारा जनता
-जनार्दन
को भरोसे के रूप मे आश्वासन
बाँट देना आम आदत हो गयी है |
मंत्री
और नेता कभी भीड़ को निराश नहीं
करते है --- जब
वह कोई मांग करती है |
परंतु
उसे पूरा करने के इंतेजाम भी
''नहीं'''
करते
| क्योंकि
उनके पास '''पैसे
का इंतेजाम करने वाले की अनुमति
नहीं होती "”””
---अर्थात
सरकार मे खजाना किसी और के पास
तथा हुकूमत किसी और के पास |
मौजूदा
प्रजातंत्र मे सरकार --शासन
और प्रशासन के नए अर्थ रच दिये
गए है | सरकार
का मतलब है प्रधान मंत्री या
मुख्य मंत्री और मंत्री ---शासन
का द्योतक है बड़े -
बड़े
आला अफसर जो हक़ीक़त मे सरकार
मे बैठे मंत्रियो को भी चलाते
है | आलम
तो यह हो जाता है की मंत्री
को अपने विभाग के सचिव की
शिकायत मुख्य मंत्री से करनी
होती है |
क्योंकि
मुख्य मंत्री ने वह अधिकार
अपने पास रखे है |
अब
प्रशासन वह है जो ज़मीन पर दिखाई
पड़े --जैसे
पुलिस - नगर
निगम -पंचायत
या कलेक्टर और माथात |
वैसे
गावों मे तो पटवारी भी "”साहब
"”” कहे
जाते है | तब
इस तस्वीर को सहज मे समझा जा
सकता है |
अब
बात करते है की दौरे पर जाने
वाले मुख्य मंत्री तो हर स्थान
को स्कूल -अस्पताल
पानी और बिजली सभी कुछ देने
का वादा कर आते है |
जब
वनहा के लोग सरकारी दफ्तरो
मे व्हा के अमले के पास जाते
है तब जवाब मिलता है "””
ऐसा
कोई आदेश या फरमान अभी तक नहीं
आया है - मंत्री
जी ने भासन मे कहा था तो उनसे
पूछो "”” | अब
उस सरकारी बाबू को भी मालूम
है की ये निरीह ज्यादा से ज्यादा
अपने विधायक जी के पास जाएंगे
| वनहा
तो सारी चौहद्दी कसी हुई है
| मतलब
की आम जनो की मांग के जवाब मे
''नेता
जी ''' दो
बात कहेंगे -
सरकार
को बता दिया है जैसे ही पैसा
आयेगा इलाके मे काम हो जाएगा
"”” दूसरा
समाधान होगा की भाई जब मंत्री
-मुख्य
मंत्री कह गए है तब तो हो ही
जाएगा इसमे शककी कोई बात नहीं
"””| हक़ीक़त
मे दोनों मे से कोई भी बात सत्या
नहीं है | धोखा
देने वाली है |
हक़ीक़त
यह है की प्रदेश और केंद्र
सरकार की साथ से अधिक योजनाए
गावों के लोगो के लिए बनी है
-----परंतु
उनमे से एक का भी अनुपालन नहीं
हो रहा है ,, लेकिन
कागजो पर तो बल्ले -बल्ले
है |
अब
मुश्किल यह है की मंत्रियो
के भाषणो को अगर हम सनद माने
तो कोई भी फोरम उसे "””वादा"””
मानने
के लिए तैयार नहीं है |
अफसर
तो नेता की ओर लोगो को धकेल
देता है | जबकि
नेता के चाहने से भी काम तब तक
नहीं होता जब तक की वित्त विभाग
रकम न जुटाये |
अब धन
जुटाने की ज़िम्मेदारी किस की
? यह
शासन की है --परंतु
वास्तव मे अफसर नामक महान
आत्मा ही "”नियंता
"” होती
है समस्त सरकार की |
मंत्रियो
को गलत राह दिखा कर उनके नाम
से खुद मलाई उड़ाते है |
बदनाम
नेता होता है लेकिन भ्रष्टाचार
मे पकड़े अफसर जाते है |
जो की
वास्तव मे जिम्मेदार होते है
|
तो
यह हुआ सरकार और शासन -प्रशासन
के कहने और आसवासनों का हाल
| अब
इस नाइंसाफी की शिकायत तो
अदालतों से ही हो सकती है |
या
किसी ऐसे निकाय से इस उद्देस्य
के लिए बना हो |
जैसे
लोकयुक्त |
अदालतों
की कितनी इज्ज़त प्रदेश या
केंद्र सरकरे करती है ---
इसका
सबूत इस तथ्य मे है की अदालतों
के फैसले के बाद भी सरकार मे
बैठे "””बड़े
बाबुओ "””
ने
उनको लागू नहीं किया|
बार
-बार
अदालती "””निमंत्रण"””
को
अनदेखा कर यह जताने की कोशिस
हुई की – "””तुम
क्या कर लोगे "””
| मध्य
प्रदेश सरकार के वीरुध उच्च
न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय
के हजारो ''निर्णय
''' ठंडे
बस्ते मे है "””
| हाल
का संविदा कर्मियों को नियमित
करत्ने के आदेश के बाद चार
माह बाद भी कोई कारवाई नहीं
हुई | वित्त
की कमी बताकर उसे लागू करने
की मजबूरी व्यक्त की गयी है
| परंतु
सिंहासस्थ के लिए सभी कायदे
- कानून
को एक तरफ कर दिया गया है |
वास्तविकता
है की हज़ार करोड़ से ज्यादा के
खर्चे मे तीन चौथाई अफसरो और
भ्रष्ट नेताओ की जेब मे पहुँच
गया | इन
अदालतों की एक कमजोरी भी है
की वे शायद अपने फैसले को न्याय
पूर्ण तो बनाते है |
परंतु
उस न्याय को अमली जमा पहनाने
मे इच्छा नहीं रखते |
उतराखंड
मे राष्ट्रपति शासन लगाने की
वैधानिकता को नैनीताल उच्च
न्यायालय ने व्यंग्य किया है
की "””प्रेम
और ज़ंग "””मे
सब जायज है |
अब
देखना होगा की इसे वे कैसे
पालन कराते है |
या
फिर वही की "”””कहने
मे क्या जाता है कह दो "””
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