सिहस्स्थ
और राजनैतिक कर्मकांड का
शुभारंभ
उज्जैन
मे हो रहे "”महा
कुम्भ "” मे
विभिन्न सम्प्रदायो के साधु
और उनके महामंडलेस्वरो की
भीड़ के दौरान दीन दयाल विचार
संगठन द्वारा जारी एक परिपत्र
ने एक नयी देवी की पूजा -
अर्चना
करने की शुरुआत की है |
इनके
सहयोगी संगठन द्वारा बनाए
गए पंडाल मे "”भारत
माता"” की
मूर्ति बनाकर वनहा 108
कुंडी
यज्ञ करने का फैसला किया है
| पत्र
के अनुसार कुम्भ के दौरान
प्रतिदिन इस पंडाल मे 108
पति
- पत्नी
इन यज्ञ वेदियो मे आहुती डालकर
अपने - अपने
आराध्य की स्तुति -अर्चना
करेंगे | इस
सेवा के लिए उन्हे 250/-
रुपये
का दान देना होगा |
प्रतिदिन
इस प्रकार इन नए धरमावलंबियों
की आराध्य भारत माता को आहुती
मिलेगी |
अब
अगर पत्रकार डॉ वेद प्रताप
वेदिक के लिखे हुए को माने तो
"”भारत
माता "” कोई
मूर्ति नहीं है ,,जिससे
मुसलमान भारत माता की जय बोलने
को "”बुतफ़रोशी
"” मान
रहे है --वह
गलत है | अब
इस संदर्भ मे दीन दयाल संस्थान
द्वारा आयोजित इस ''यज्ञ''
समारोह
को क्या माना जाये ??
क्योंकि
बिना मूर्ति के यज्ञ नहीं
होता --क्योंकि
यज्ञ का कोई ना कोई आराध्य
होता है | उसमे
आहुतिया भी एक क्रम से सभी
देवताओ को प्रदान की जाती है
| अब
वेदिक संदर्भों मे कही भी
भारतमाता के देवी होने का
उल्लेख नहीं मिलता है |
अब
ऐसे मे मुसलमानो का एतराज़
वाजिब या सही लगता है |
क्योंकि
उनके अकीदे के अनुसार वे सिर्फ
खुदा की ही बंदगी करते है |
अब इस
परिस्थिति मे दारुल -
उलूम
का फतवा की "”मुसलमान
भारतमाता की जय नहीं बोले "””
भी
सही हो जाता है
इस
आयोजन का एक दूसरा पहलू भी है
की यज्ञ का आयोजन धार्मिक
जानो द्वरा ही किया जाता है
| अब
एक राजनैतिक दल का सहयोगी
संगठन इन धार्मिक आयोजनो को
करने की ज़िम्मेदारी लेता है
--तब
यह प्रश्न उठता है की क्या
"””वे
इस धार्मिक अनुष्ठान की "”
पेशवाई
"” करने
के "अधिकारी
है ?”” क्योंकि
ना तो वे कोई मांगलिक कार्य
करने के अधिकारी है |
वे
यजमान तो पा सकते है वे पुरोहितो
को भी बुला सकते है |
आखिर
सरकार और शासन का भरपूर समर्थन
तो उन्हे है ही |
परंतु
की देवता के नाम से विनियोग
करेंगे ? संकलप
तो देश की स्म्रधी का लिया जा
सकता है | परंतु
आहुति देने का कर्मकांड क्या
होगा --यह
भी नहीं मालूम है |
इसके
साथ ही अनुसूचित एवं जन जातियो
के लिए दो स्नान का आयोजन किया
है | यह
आयोजन मात्र एवं मात्र इनहि
दोनों जातियो के लिए किया
गया है | इन्हे
''समरस
और शबरी "स्नान
"” का
नाम दिया गया है |
इस
आयोजन के लिए इस वर्ग के सभी
अधिकारियों और प्रमुख
व्यक्तियों को आमंत्रित किया
गया है | अब
इस प्रयास से साफ हो जाता है
की ''आखिर
"”'इस
आयोजन का अर्थ या उद्देश्य
क्या है | धार्मिक
आयोजन के माध्यम से खास वर्ग
तक मे अपनी "””पार्टी
का वोट बैंक तैयार करना "””
| अब
इसे धर्म का सम्मान करना कहेंगे
या राजनीतिक इस्तेमाल करना
कहेंगे??
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