आखिरकार
प्रधानमंत्री के मन की बात
सुप्रीम कोर्ट मे केंद्र की
दलील के रूप मे
आ
ही गयी !
दिल्ली
विधान सभा के चुनावो मे --''देश
विजेता को मिली पैदली मात "”ही
अरविंद
केजरीवाल सरकार को ''बिजूका
''बना
कर रख देना चाहती है
दिल्ली
सरकार को कार्यकारी शाक्तिया
देना राष्ट्रीय हित मे नहीं
!!
अर्थात
दिल्ली
सरकार सिर्फ एक बिजूका भर ही
है --राज़
तो केंद्र ही करेगा ??
जबकि
केंद्र को '''सीधे
शासन '''
करने
का अधिकार ही नहीं है ???
कहावत
है की '''खैर
--खून
– खांसी --खुशी
'''
कभी
छिपती नहीं है |
2014 मे
हुए लोकसभा चुनावो मे "”दिग्विजयी
"”
परचम
फहराने के बाद – ही दिल्ली
विधान सभा के सम्पन्न चुनावो
मे भारतीय जनता पार्टी के
अश्वमेघ घोड़े को दिल्ली विधान
सभा चुनावो मे आप पार्टी के
अरविंद केजरीवाल ने ना केवल
रोका --वरन
बांध भी लिया |
नरेंद्र
मोदी को अपने "”प्रचार
तंत्र और साधनो की प्रचुरता
"”
पर
पूरा भरोसा था ---
की
इस पिद्दी से इलाके को तो मुट्ठी
मे करना कोई चुनौती नहीं है
|
हालांकि
इस सोच के बाद भी उन्होने
"”धुआधार
"”
प्रचार
और रोड शो तथा रैली मे भीड़
जुटाकर लोगो को ''यह
एहसास दिलाने मे सफल रहे की
मैदान -उनका
ही है |
परंतु
मतदान की पेटी से निकले परिणाम
ने उनके गुरूर को चूर -चूर
कर दिया |
यहा
तक की बीजेपी को मात्र तीन
सीट ही मिली !!
जो
की सदन नेता प्रतिपक्ष के लिए
भी नाकाफी था |
उसके
लिए उन्हे 9
सीट
ज़रूरी थी !!
जिससे
बीजेपी 6
सीट
कम थी |
बस
उस दिन इस भयंकर पराजय ने ना
केवल उनके '''दिग्विजयी
'''
होने
के भ्रम को तोड़ दिया -वरन
पार्टी मे यह कहा जाने लगा -की
लोकसभा की जीत '''संघ
और बीजेपी '''
की
सम्मिलित परसो का परिणाम है
-----नरेंद्र
मोदी का "”अकेले
का नहीं "”
|
बस
उसी दिन से अरविंद केजरीवाल
की सरकार को गिराने के लिए
"”कानूनी
और राजनीतिक शिकंजो "”
की
शुरुआत हो गयी |
जो
इस सीमा तक जी गयी की देश को
लगने लगा की दिल्ली मे जनता
की चुनी हुई सरकार नहीं है |
बल्कि
वह केंद्र शासित एक "”परगना
''मात्र
भर है |
जनहा
जनता की चुनी हुई सरकार का
"”हुकुम
'''
नहीं
लेफ्टिनेंट गवेर्नर का राज़
है !!!!
आखिरकार
दिल्ली सरकार ने अपने अधिकारो
की लड़ाई के लिए अदालत का दरवाजा
खटखटाया |
सुप्रीम
कोर्ट मे जब लेफ्टिनेंट गवर्नर
और निर्वाचित सरकार के अधिकारो
की सीमा रेखा पर सरकार से जवाब
मांगा गया --तब
अतिरिक्त सलिसीटर जनरल मानिंदर
सिंह ने अदालत को बताया दिल्ली
सरकार के पास विशिष्ट
कार्यकारी शाक्तिया नहीं है
!!
उन्होने
लेफ़्टि गवर्नर को राज्यपाल
समान नहीं हो सकते |
उन्होने
दलील दी की "”ओहदे
से दर्जे मे बदलाव नहीं हो
जाता है "”
||संघ
शासित छेत्र राष्ट्रपति के
अधीन होता है !!
इन
शक्तियों को दिल्ली के संदर्भ
मे कम नहीं किया जा सकता !!
दिल्ली
सरकार के पास विशिष्ट कार्यकारी
शक्तिया नहीं है ---
इस
तरह की शक्तिया प्रदान करना
राष्ट्रिय हित मे नहीं है !!!
केंद्र
की इस दलील मे एक बड़ी खामी है
---की
दिल्ली की विधान सभा को संवैधानिक
दर्जा प्राप्त है |
दिल्ली
को विधान सभा का दर्जा देते
समय "””केंद्र
और राज्य "”के
अधिकारो मे बंटवारा हुआ था |
जिसके
अनुसार ---दिल्ली
पुलिस --दिल्ली
के राजस्व मामले पर विधान सभा
कानून नहीं बना सकेगी |
शेष
मामलो मे राजय सरकार स्वतंत्र
होगी |
केंद्र
के इशारो पर एलजी ने केजरीवाल
सरकार के फैसलो पर अड़ंगे लगाना
शुरू कर दिया |
हालत
इतनी बिगड़ी की जो अधिकार शीला
दीक्षित या सुषमा स्वराज अथवा
बीजेपी सरकारो को थी वे भी
केजरीवाल सरकार को नहीं दी
गयी |
यहा
तक शिक्षा और स्वास्थ्य तथा
पेयजल के मामले भी एलजी लटकाने
लगे |
तब
इस विवाद को सुप्रीम कोर्ट
की पाँच जजो वाली संवैधानिक
पीठ मे पहुंचा |
जनहा
मोदी सरकार ने अपना पुराना
कवच "””राष्ट्रीय
हित"””
का
नारा बुलंद किया |
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