सुख
-सुविधा
-सफलता
को जीती जवानी का बेसहारा
बुढापा
समाजवादी
पार्टी के संस्थापक मुलायम
सिंह -जिनहोने
जवानी मे अपने भाई शिवपाल सिंह
के साथ साइकिल चला चला कर उत्तर
प्रदेश मे सरकार बनाई ---
आज
वे अपनी ही संस्था से बाहर और
बेघर कर दिये गए |
कुछ
इसी प्रकार देश मे खादी और
चरखा को पहचान दिलाने वाले
महात्मा गांधी या बापू आज खड़ी
ग्रामोद्योग के कलेंडर और
डायरी से भी बाहर कर दिये गए
है |
अब
इसे समय की ही बलिहारी कह सकते
है |
ऐसा
क्यो हो रहा है की जो माता -पिता
पेट काट -काट
कर अपने लड़को को पढाते है ,,वे
ही ''सुपुत्र''
नौकरी
से अवकाश ग्रहण के पश्चात
उनके साथ रहना पसंद नहीं करते
---- वे
उन्हे व्रद्धाश्रम मे छोड़
जाते है |
क्या
यह आज की उपयोगिता आधारित
थियरि है अथवा युवाओ की
स्वतन्त्रता और बेरोक टोक
व्यवहार मे इन बुजुर्गो की
टोकाटोकी या फिर वे अपने
बुजुर्गो का खर्च उठाने मे
असमर्थ है
आज
हम दुनिया के सम्पन्न देशो
अम्रीका -
ब्रिटेन
-फ़्रांस
आदि को देखे तो वनहा शेलटर
होम है |
भारत
मे भी व्रध आश्रमो की संख्या
तेज़ी से बढ रही है |
जो
इंगित करता है की आज आदमी अकेले
रह कर कुत्ता या बिल्ली अथवा
घोडा के साथ वक़्त बिता सकता
है --पर
इंसान के साथ नहीं |
आखिर
ऐसा क्यो हो रहा है ?
प्र्क़्रती
ने स्त्री --पुरुष
मे '''काम''
{{सेक्स
}} की
भूख को शांत करने के लिए बनाया
| परंतु
इस आधुनिक सोच और सभ्यता ने
पुरुष को पुरुष और महिला को
महिला संग पति -
पत्नी
रहने की कानूनी इजाजत दी है
| अब
इस को विकास कहा जा सकता है ??
व्यक्ति
की निजता क्या प्र्क़्रती के
नियमो से भी ऊपर है ?
शायद
हाँ ---
क्योंकि
अब तो पुरुष भी “””जनने “” लगे
है | अब
मर्दाना और जनाना मे कोई अंतर
नहीं रह गया है |
क्योंकि
अब सहवास -संभोग
के लिए स्त्री -
पुरुष
का साथ -साथ
होना ज़रूरी नहीं है |
संपन्नता
सुख या आश्रय का प्रतिमान
विगत शताब्दी मे भले ही रहा
हो -पर
इक्कीसवी सदी मे मे ऐसा नहीं
है |
यानहा
विकसित और अर्ध विकसित देशो
मे यह सब बुराइया अथवा परिवर्तन
दिखाई देंगे |
परंतु
अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका
के कम विकसित देशो मे आज भी
पुरुष और स्त्री मिलकर ही
परिवार बनाते है |
संतति
आगे बदाते है |
परंतु
यूरोप के विकसित देशो मे संतान
को जीवन की गति का स्पीड ब्रेकर
समझा जाता है |
इसलिए
शादीशुदा जोड़े {
स्त्री
- पुरुष
] भी
संतानहीन रहना पसंद करते है
| इसी
सुविधा भोगी ड्राष्टिकोण ने
जापान के व्रद्धजनों को सर
पर छत और भोजन की निश्चितता
मिलने के कारण चोरी करने पर
मजबूर किया है |
फोरथम
यूनिवरसिटी की एसोसिएट प्रोफेसर
टीना मसाची के अध्ययन के अनुसार
2015 मे
जापान की जेलो मे बंद क़ैदियो
मे 20%
लोग
65 वर्ष
से ऊपर के थे |
अधिकतर
ऐसे लोग छोटे -
मोटे
अपराध जैसे चोरी या उठाई गिरि
के अपराधो के दोषी थे |
उनका
इतिहास उनके अपराध को आदत नहीं
''मजबूरी
'' की
ओर इंगित कर रहा है |
चूंकि
जापान मे नगरो मे रहना -
खाना
और कपड़ा बहुत महंगा हो गया है
| पारंपरिक
सभ्यता का औद्योगिक क्रांति
मे लोप हो गाय है |
अब
गाँव मे कोई रहना नहीं चाहता
और नगरो मे वे ही लोग रह सकते
है जो ''
काफी
कमाते हो "”
ऐसे
मे अगर औसत दर्जे का व्यक्ति
65 या
70 वर्ष
के बाद जेल मे भोजन और छट खोजे
तो कोई आश्चर्य नहीं होना
चाहिए |
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