बनना
ट्रप का राष्ट्रपति और होना
विरोध दुनिया भर मे --
महिलाओ
का विरोध क्या रंग लाएगा ??
बीस
जनवरी को पद की शपथ लेने के
समय वाशिंगटन के कैपिटल हिल
मे जितने ट्रम्प समर्थक एकत्रित
हुए थे ----उसके
दस गुना महिलाए चौबीस घंटे
बाद उसी स्थान पर नारे लगा
रही थी "””
ट्रम्प
मेरा राष्ट्रपति नहीं है और
ट्रम्प अमेरोका नहीं है "””
| किसी
भी अन्य 44
पूर्ववर्ती
राष्ट्रपतियों का ऐसा विरोध
कभी नहीं हुआ |
विरोध
की यह लहर समूचे यूरोप मे फ़ेल
गयी थी |
ब्रिटेन
मे हो अथवा फ्रांस या फिर जर्मनी
या सिडनी मे हो – महिलाओ का
ट्रम्प विरोध पूरी दुनिया
मे एक '''रेकार्ड
"”
बन
गया है |
शायद
ही कभी किसी अन्य उद्देस्य
के लिए दुनिया भर मे इतना जन
-
समर्थन
सड्को पर उमडा हो |
परंतु
इस विलंबित आक्रोश का क्या
फल होगा सकता है ?
किसी
को नहीं मालूम |
इतना
तो निश्चित है की डोनाल्ड
ट्रम्प इस विश्वव्यापी आक्रोश
से तनिक भी विचलित नहीं है |
फिर
क्या यह निस्वार्थ महिला
सम्मान बचाओ प्रयास निष्फल
हो गया ??
भले
ही पचास राज्यो की आधी आबादी
[महिलाए
]
उन्हे
नफरत की निगाह से देखती है
--उन्हे
एक स्त्री विरोधी और घटिया
इंसान मानती है |
पर
इन सब समवेदनाओ से क्या हुआ
अथवा क्या होगा --इसका
कोई निश्चित उत्तर नहीं |
ट्रम्प
ने चुनाव प्रचार के समय कहा
था -
उसकी
शुरुआत भी उन्होने पहले दिन
से करी
ओबामा हेल्थ केयर को खतम करने
का प्रशासनिक आदेश देकर |
परंतु
उनका यह आदेश भी निष्फल होगा
जब तक काँग्रेस उनके कदम को
मंजूरी ना दे |
फिलहाल
तो उनकी ही रिपब्लिकन पार्टी
के सीनेटर और लोवर हाउस के
सदस्य भी उनके विरोध मे है |
जिनहोने
कसमखुरानी की रष्म का बहिसकार
किया था |
इस
खींचातानी के माहौल मे वे एक
छत्र रूप से शासन तो नहीं कर
पाएंगे |
उनके
बड़बोलेपन ने उस पद की शालीनता
और गरिमा को तो खतम ही कर दिया
है |
जैसा
की भारत मे प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी ने पद के अनुरूप
देश के नेता की गरिमा को खो
कर एक राजनीतिक दल के भाकर -
भकर
नेता की हैसियत हासिल कर ली
है जो तीस महिने बाद भी गंभीर
नहीं हो पा रहे है |
लेकिन
ट्रम्प ने पहला वादा निभाया
--परंतु
मोदी जी ने तो किसी के भी खाते
मे एक रुपया नहीं डाला -यह
अंतर भी है |
दोनों
ने ही अपने -
अपने
देश के बेरोजगार और असंतुष्ट
महिला और यूवकों को "”अच्छे
दिन का सपना दिखाया है "”
अब
भारत मे तो तीस माह बाद उस सपने
की पदचाप भी नहीं सुनाई पद रही
है |
वैसे
महिला आन्दोलंकारियों को
विश्वास है की डोनाल्ड रोज़मर्रा
की ज़िंदगी मे कोई बदलाव नहीं
कर पाएंगे |
सिर्फ
खाने -
पेनेय
की वस्तुए महंगी हो सकती है
|
दुनिया
भर मे ट्रम्प के विरोध मे सड्को
पर उतरी महिलाओ के साथ कुछ
पुरुष भी थे |
इतना
तो तय माना जा रहा है की
जिस प्रकार भारत मे बड़े औद्योगिक
घरानो के हिट संवर्धन का काम
मोदी सरकार द्वरा किया जा रहा
है – वैसा ही ट्रम्प प्रशासान
भी करेगा |
उनके
मंत्रिमंडल मे महिला और वंचितों
की हाज़िरी भर है |
परंतु
कोई योजना नहीं |
उनके
पास भी आम आदमी को लुभाने वाले
भावूक नारे है अमेरिका फ़र्स्ट
और बंद कारखानो को चालू कर के
काम के नए अवसर देने ----वे
भी सैनिको के त्याग बलिदान
की बात करते है जैसे भारत मे
किया जा रहा है --परंतु
सैनिको की मांगे नहीं मानी
जा रही |
दोनों
नेताओ मे अहम और बड़ बोले पन का
फूल स्टाक है
अब
इन हालातो मे नारी आंदोलन की
विशालता और त्वरितता विश्व
के इतिहास मे एक मानक होगा-----
परंतु
इतने विशाल आंदोलन से जितने
महान उपलब्धि की संभावना थी
-वह
केवल वक़्त के बाद किए गए इस
प्रयास से हो गई |
का
वर्षा जब कृषि सुखाने ---
ट्रम्प
तो राष्ट्रपति बन ही गए भले
ही अब उमके निशाने पर मीडिया
और पूर्ववर्ती प्रशासन और
उसके काम है |
जिन
पर हमला कर के वे काफी समय निकाल
सकते है जैसे मोदी जी सत्तर
साल का हिसाब मांङ्ग मांग कर
निकाल रहे है |
अंत
मे भविष्य के सुनहरे सपने
दिखा कर भूतकाल के गहरे अंधेरे
का एहसास सबके लिए एक जैसा
नहीं होता |
प्रधान
मंत्री मोदी तो नोटबंदी करके
150
करोड़
जनता के मन मे तो है ----परंतु
किस रूप मे है यह तो वक़्त ही
बताएगा |
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