सूत न कपास जुलाहे से लठम लट्ठा - सहमती से सहवास
क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट बिल में सर्वाधिक विवाद का मुद्दा था लड़की की सहमती की आयु -- सरकार के अध्यादेश में यह १८ वर्ष थी , जिसे मंत्रियो के ग्रुप ने सोलह वर्ष किये जाने की सिफारिश की थी । इस सिफारिश को ही राजनितिक और सामाजिक संगठनो ने आपतिज़नक बताते हुए देश में "सांकेतिक " धरना -प्रदर्शन किये । मज़े की बात यह की सरकार ने भी यह बताने का प्रयास नहीं किया की , ऑर्डिनेंस में अठारह वर्ष ही हैं । केवल मंत्री समूह ने इसे सोलह वर्ष किये जाने की सम्मति दी थी । अध्यादेश को विधि बन ने के लिए संसद की मंज़ूरी ज़रूरी थी । अब किस रूप में यह पारित हो इस पर तो संसद ही फाइनल मुहर लगाती । तो हुआ य़ू की सडको पर प्रदर्शन और धरने हुए कमरों में बैठ कर निंदा के प्रस्ताव भी पारित हुए कंही कलेक्टर तो कंही कमिश्नर को ज्ञापन दिए गए । पर पक्ष -विपक्ष में कोई तर्क नहीं दिया गया ।
और सरकार ने सहमती की आयु को बरक़रार रखते हुए अठारह वर्ष ही रखा । सहमती से सहवास की उम्र , लडकी के लियुए विभिन्न काल में अलग -अलग रही हैं ।
अंग्रेजो के समय में सनातनी समाज में लड़की का विवाह दस वर्ष की उम्र में कर दिया जाता था । इसे धर्म सम्मत कहा जाता था । वैदिक निर्देशों में कहा गया हैं की "कन्या के रज़स्वला होने के पूर्व ही विवाह करना उत्तम हैं "" १८९१ में एक कानून बनाया जिसे '' एज़ ऑफ़ कन्सेंट " नाम दिया इसमें उन्होने सहवास के लिए बारह वर्ष की आयु नियत की गयी थी । जिसे १९८३ में संशोधन द्वारा सोलह वर्ष की गयी , जो अभी तक प्रभावशाली हैं । मज़े की बात हैं की विगास्त तीस सालो में किसी राजनितिक दल या संगठन अथवा मंच द्वारा यह आवाज़ नहीं उठाई गयी की सहमती की उम्र में वृधि की जाए ? बल्कि यह काम सरकार ने किया । हाँ विरोधी दल यह श्रेय ले सकते हैं की ""उन्होंने शासन को ऐसा करने पर मजबूर किया . "" हालाँकि मणिपुर राज्य में अभी भी सहवास के लिए चौदह साल की ही उम्र रहेगी , अब वंहा कोई चैनल नहीं जायेगा न ही कोई प्रिंट मीडिया .
अब एक और मुद्दा हैं जिसमें यह कहावत चरितार्थ होती हैं की ""करे कोई ,भरे कोई ""वह हैं दो इटालियन नौसैनिकों का , जिसमें ज़बरदस्ती केंद्र सरकार को निशाने पर लिया जा रहा हैं । जबकि उन दोनों की"पैरोल "
सर्वोच्च न्यायलय द्वारा मंज़ूर की गयी थी । अब सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध तो कोई आन्दोलन -प्रदर्शन - भरना नहीं किया जा सकता , क्योंकि वह "अवमानना ' का मामला बन जायेगा । इसलिए धुनों सरकार को चाहे दायें से या बाएं से , इसी को कहते हैं सूत न कपास जुलाहे से लट्ठम लट्ठा ...........
क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट बिल में सर्वाधिक विवाद का मुद्दा था लड़की की सहमती की आयु -- सरकार के अध्यादेश में यह १८ वर्ष थी , जिसे मंत्रियो के ग्रुप ने सोलह वर्ष किये जाने की सिफारिश की थी । इस सिफारिश को ही राजनितिक और सामाजिक संगठनो ने आपतिज़नक बताते हुए देश में "सांकेतिक " धरना -प्रदर्शन किये । मज़े की बात यह की सरकार ने भी यह बताने का प्रयास नहीं किया की , ऑर्डिनेंस में अठारह वर्ष ही हैं । केवल मंत्री समूह ने इसे सोलह वर्ष किये जाने की सम्मति दी थी । अध्यादेश को विधि बन ने के लिए संसद की मंज़ूरी ज़रूरी थी । अब किस रूप में यह पारित हो इस पर तो संसद ही फाइनल मुहर लगाती । तो हुआ य़ू की सडको पर प्रदर्शन और धरने हुए कमरों में बैठ कर निंदा के प्रस्ताव भी पारित हुए कंही कलेक्टर तो कंही कमिश्नर को ज्ञापन दिए गए । पर पक्ष -विपक्ष में कोई तर्क नहीं दिया गया ।
और सरकार ने सहमती की आयु को बरक़रार रखते हुए अठारह वर्ष ही रखा । सहमती से सहवास की उम्र , लडकी के लियुए विभिन्न काल में अलग -अलग रही हैं ।
अंग्रेजो के समय में सनातनी समाज में लड़की का विवाह दस वर्ष की उम्र में कर दिया जाता था । इसे धर्म सम्मत कहा जाता था । वैदिक निर्देशों में कहा गया हैं की "कन्या के रज़स्वला होने के पूर्व ही विवाह करना उत्तम हैं "" १८९१ में एक कानून बनाया जिसे '' एज़ ऑफ़ कन्सेंट " नाम दिया इसमें उन्होने सहवास के लिए बारह वर्ष की आयु नियत की गयी थी । जिसे १९८३ में संशोधन द्वारा सोलह वर्ष की गयी , जो अभी तक प्रभावशाली हैं । मज़े की बात हैं की विगास्त तीस सालो में किसी राजनितिक दल या संगठन अथवा मंच द्वारा यह आवाज़ नहीं उठाई गयी की सहमती की उम्र में वृधि की जाए ? बल्कि यह काम सरकार ने किया । हाँ विरोधी दल यह श्रेय ले सकते हैं की ""उन्होंने शासन को ऐसा करने पर मजबूर किया . "" हालाँकि मणिपुर राज्य में अभी भी सहवास के लिए चौदह साल की ही उम्र रहेगी , अब वंहा कोई चैनल नहीं जायेगा न ही कोई प्रिंट मीडिया .
अब एक और मुद्दा हैं जिसमें यह कहावत चरितार्थ होती हैं की ""करे कोई ,भरे कोई ""वह हैं दो इटालियन नौसैनिकों का , जिसमें ज़बरदस्ती केंद्र सरकार को निशाने पर लिया जा रहा हैं । जबकि उन दोनों की"पैरोल "
सर्वोच्च न्यायलय द्वारा मंज़ूर की गयी थी । अब सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध तो कोई आन्दोलन -प्रदर्शन - भरना नहीं किया जा सकता , क्योंकि वह "अवमानना ' का मामला बन जायेगा । इसलिए धुनों सरकार को चाहे दायें से या बाएं से , इसी को कहते हैं सूत न कपास जुलाहे से लट्ठम लट्ठा ...........
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