सरकार की संवेदन् शीलता सिर्फ अपनों के लिए --सबके लिए नहीं !
जिस प्रकार कंगना राणावत के मामले में केंद्र सरकार द्वरा "सुरक्षा " मुहैया करने में तत्परता दिखाई गयी -वह अद्भुत ही काही जाएगी ! क्योंकि उनके मुँहफट अंदाज़ से शिवसेना के संजय राऊत को जवाब भले ही मिला हों , पर जिस प्रकार उन्होने मुख्यमंत्री ठाकरे को गुस्सायी महिला के अंदाज़ में अंगुली तोड़ कर श्राप दिया हैं -वह बहुत दार्शनिक अंदाज़ में हैं , खास कर की मेरा घर तोड़ने वाले -तेरा घमंड भी टूटेगा ! पर केंद्र ने सिर्फ वाई श्रेणी की सुरक्षा कवच ही नहीं उपलब्ध कराया , वरन अपने संवैधानिक प्रतिनिधि उर्फ राज्यपाल शी कोशियारी जी को भी सचेत किया की वे भी ,इस मामले में दिलचस्पी ले ! सो उन्होने कंगना के आफिस के अवैध निर्माण को महापालिका द्वरा तोड़े जाने पर --संबन्धित अफसरो को तलब कर लिया | इतना ही नहीं उन्होने मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव को भी राज्यपाल निवास बुला कर सवाल - जवाब किए ! इतनी तत्परता शायद कोशियारी जी ने तब भी दिखाई थी जब उन्होने बीजेपी के नेता फड्नविस को भोर के धुंधलके में सरकार को शपथ दिलाई थ ! जिस ताबड़तोड़ तरीके से तब राज्य से राष्ट्रपति शासन हत्या गया और मुख्यमंत्री फड्नविस और अजित पवार को कसम दिलाई थी ---वह भी तीव्र कारवाई का एक उदाहरण था ! तब भी राज्यपाल की कारवाई पर विवाद हुआ था की "आखिर इतनी जल्दी भी क्या थी "सरकार बनवाने की ! हालांकि सभी यह समझ रहे थे की ,जो कुछ भी हुआ वह "”दिल्ली "” के कहने पर ही हुआ | इस बार भी ऐसा ही हुआ शायद , क्यूंकी राज्यपाल जी ने मुंबई से लाखो मजदूरो के जाने पर प्रदेश सरकार से कभी नहीं पूछा की -इन लोगो को राहत के अथवा आने -जाने का क्या बंदोबस्त किया हैं ! उन लाखो बेसहारा मजदूरो की कहानिया बाद में प्रकाशित होती रही की कैसे लोग ट्रको में तिपहिया वाहनो से और साइकल से सैकड़ो मील की दूरी तय करने निकाल पड़े थे | शायद तब संवैधानिक प्रमुख का मन नहीं पसीजा -क्योंकि दिल्ली भी निरुपाय थी और सिवाय बयानबाजी के कोई भी राहत सुलभ कराने में "” असमर्थ थी शायद "” ! अब गैर बीजेपी शासित राज्यो में राज्यपाल की भूमिका काफी विवादो में रही हैं , मसलन राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा जी , जिस प्रकार उन्होने गहलौत सरकार के आग्रह पर विधान सभा की बैठक बुलाने में "”आनाकानी "” कर के सरकार की स्थिति को आम लोगो की नजरों में अस्थिर बनाने की कोशिस की थी | जबकि संविधान के अनुसार मंत्रिमंडल की सलाह पर विधान सभा का सत्र आहूत करने के लिए वे बाध्य हैं | उन्होने अनेक कारणो में -एका कारण "” करोना "महामारी भी बताया था की ,ऐसे अवसर पर सदन की बैठक उचित नहीं हैं ? जबकि उनही के साथी राज्यपाल स्वर्गीय लालजी टंडन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वरा कोरोना महामारी के कारण सदन को स्थगित किए जाने की प्रार्थना की थी ! तब उन्होने अपने विशेसाधिकार का प्रयोग करते हुए विधान सभा की बैठक आहूत कर मुख्यमंत्री को विश्वास अर्जित करने का निर्देश दिया था | मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार ने इस्तीफा दे दिया था | परिणाम स्वरूप 22 विधान सभा स्थानो के लिए उप चुनाव होने वाले हैं |
यानहा एक घटना याद आती हैं की जब केरल के कुनुर जिले में आपसी झगड़े में आरएसएस के एक स्वयंसेवक की मौत हो गयी थी , तब भी केंद्र सरकार के तत्कालीन ग्र्हमंत्रि राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री विजयन से फोन पर ही प्रदेश की शांति - व्यवस्था की शिकायत की थी | तब वनहा के राज्यपाल पूर्व के न्यायाधिपति थे | उन्होने भी उस सेवक की हत्या के कारणो की जानकारी गृह सचिव और पुलिस के मुखिया को तलब करके मांगी थी | क्योंकि आरएसएस ने उस मौत को राजनीतिक हत्या बताया था | इन सभी घटनाओ से एक बात साफ नजर आती हैं केंद्र सरकार को अपनों की अर्थात आरएसएस या बीजेपी अथवा गौ रक्षक या बजरंग दल के किसी सदस्य को चोट पहुंचे ----तो दर्द दिल्ली तक होता हैं |
लेकिन उनके संगठन अथवा दल से जिंका संबंध नहीं हो अथवा जो विरोधी दल के हो उनकी सुरक्षा की परवाह नहीं हैं | राजीव गांधी की हत्या के बाद उनके परिवार को एनएसजी का सुरक्षा घेरा दिये जाने के लिए कानून में प्रविधान किया गया था | इसी कारण उन्हे आवास ऐसा सुलभ कराया जाता था जनहा सुरक्षा के माकूल बंदोबस्त किए जा सके | विचारणीय हैं की जिसके पिता और दादी {इन्दिरा गांधी } देस सेवा करते हुए हत्यारो के निशाना बने ---उनसे ज्यादा सुरक्षा किसे होगी ? कंगना राणावत को सुरक्षा घेरा सुलभ कराने से यह साफ हो जाता हैं -की सरकार निर्लज्जता से पक्षपात पूर्ण काम कर रही हैं | जबकि प्रधान मंत्री समेत सभी ने शपथ ली हैं की "” बिना किसी भेद भाव अथवा दुराग्रह के सबके साथ विधि के अनुरूप काम करेंगे "” | कितना बड़ा मज़ाक है की जिस दल के लोग आरोप लगाते हैं की कांग्रेस के राज में गांधी परिवार "”राजवंश "” बन गया था | यह कोई नहीं बताता की इस परिवार के दो सदस्य देश की सेवा में हत्यारो के शिकार हुए !! खालिस्तानी और तमिल लिट्टे के निशाना बने ये लोग किसी देशवासी के वीरुध अथवा अपने हित में काम नहीं कर रहे थे | जैसा आज सत्तरूद दल और उससे जुड़े संगठन के लोग कर रहे हैं | बुलंदशहर में पुलिस इंस्पेक्टर की बजरंग दल के गौ रक्षको द्वरा हत्या में आज तक उस परिवार को न्याय नहीं मिला | जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री आदित्यनाथ ने अपने वीरुध चल रहे गंभीर अपराधो के मुकदमों को अदालतों से वापस करा दिया हैं | जबकि नागरिकता संशोधन कानून का शांतिपूर्ण विरोध करने वाले पूर्व पुलिस महानिरीक्षक दारापुरी पर मुकदमा लंबित हैं ! धरने पर बैठी सैकड़ो महिलाओ पर दर्ज़ मुकदमें आज भी लंबित हैं |
केंद्र सरकार की नेक नीयती पर एक और घटना प्रश्न चिन्ह लगाती हैं ---वह हैं महाराष्ट्र के "”भीमा -कोरेगाव्न "” का मामला | इस स्थान पर एतिहासिक रूप से पेशवा कि सेना को ईस्ट इंडिया कंपनी ने दलितो की फौज से पराजित किया था | दलित इसे अपने स्वाभिमान का स्थान मानते हैं | वर्षो से इस स्थान पर दलित लोग एकत्र होकर अपनी सफलता के किस्से सुनते थे | परंतु फड्नविस की बीजेपी सरकार ने इसे पेशवा की सेना के पराजय को कलंक के रूप में लिया | और कुछ कट्टर पंथी लोगो और संगठनो के विरोध से इस आयोजन को बंद करा दिया ,तथा विरोध करने वालो को बंदी बना कर मुकदमें चलाये | इस आंदोलन के पाँच परमुख लोगो में डॉ तलपड़े और पाँच और लोगो को जेल में डाल दिया गया | विधान सभा चुनावो के दौरान शिव सेना तथा अन्य राजनीतिक दलो ने इस मुकदमें को वापस लेकर बंदी लोगो को रिहा करने का वादा किया | ठाकरे सरकार ने गठन के पश्चात इस मामले को वापस लेने की घोसना की | तब बीजेपी की ब्रामहन लॉबी ने केंद्र पर दबाव बनाया | जिससे की केंद्र सरकार इस मामले को एन आई ए से जांच कराने का फैसला किया | परिणाम उन पाँच समाजसेवियों -लेखक -कवि लोगो को जेल की सलाखों के पीछे ही रहना पद रहा हैं | 6 माह से ज्यादा समय हो जाने के बाद ना तो मुकदमा चलाया जा रहा हैं अथवा ना ही बंदियो को जमानत दी जा रही हैं | कोरोना महामारी के समय भी इन 60 साल से ऊपर की आयु के लोगो को अस्पताल में इलाज भी नहीं कराया जा रहा हैं !
ऐसा इसलिए हो रहा हैं क्योंकि वे केंद्र की सत्ता और उससे जुड़े संगठनो के जी हूजिरिये नहीं हैं | वरना इन पाँच लोगो से देश की सुरक्षा को कैसा खतरा हैं ????
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