ऐसा क्यों होता हैं की कुछ लोग ""खुद को ही राष्ट्र ""मान लेते हैं ?
राज्यो मे विधान सभा चुनावो की घोसणा होने के बाद तो अनेक समस्याए 'राष्ट्रिय''' बन जाती हैं | भले ही वे प्रश्न स्थानीय अथवा प्रादेशिक स्तर पर समाधान किए जाने की पात्रता वाले हो | परंतु टीवी शो मे भाग ले ने वाले वक्ता ,जो विभिन्न राजनीतिक दलो अथवा संगठनो से आते हैं , अक्सर यह जुमला ज़रूर कहते हैं की"" देश इसका जवाब चाहता हैं ""अथवा"' राष्ट्र को इसका जवाब चाहिए ""? सवाल यह उठता हैं की राष्ट्र ''कुछ व्यक्तियों ''' अथवा किसी '''व्यक्ति'' तक ही सीमित हो गया हैं ?या फिर इन लोगो ने ही राष्ट्र की ज़िम्मेदारीसम्हालने की ''हैसियत''' पा ली हैं ? ऐसा एक बार न्यायपालिका के जज साहेबन ने भी किया था ,जब एक मामले मे उन्होने लिख दिया था "" की वे राष्ट्र को बताएं """ जब की वे राष्ट्र के एक प्रदेश के उच्च न्यायालय के जज ही थे |
राष्ट्र या देश का प्रत्येक नागरिक उसका वैधानिक अंग हैं ,परंतु क्या वह सम्पूर्ण देश की ओर से ''बोलने या पूछने "का वैधानिक रूप से अधिकारी हैं ? ऐसा माना जाता हैं की जहा ' 'देश ''का कोई वैधानिक रूप से प्रतिनिधि नहीं हो वहा देश का कोई भी ''वयस्क नागरिक "" ज़रूरत पड़ने पर अत्यंत सीमित दायरे तक ही नुमायान्द्गी कर सकता हैं | ऐसा केवल विदेश मे ही संभव हैं |अथवा ऐसे आयोजनो मे हो सकता हैं जहा देश का कोई अधिक्रत नुमायान्द्गि नहीं कर रहा हो , और भारतीय नागरिक के रूप मे आप हाथ उठाए | परंतु इस से अधिक तो कुछ भी नहीं किया जा सकता क्योंकि ""कुछ करने का ""का अधिकार आप के पास नहीं होता हैं | अन्तराष्ट्रिय स्तर पर इसीलिए देश का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार वंहा स्थित दूतावास को ही होता हैं |देश की सीमाओ के भीतर तो यह अधिकार तो केंद्र शासन के पास ही हैं |
क्योंकि देश की प्रभुसत्ता केंद्र के निकायो मे निहित हैं | सर्व प्रथम राष्ट्रपति फिर कार्यपालिका मे निहित हैं | क्योंकि वे ही ''राष्ट्र''' की ओर से आधिकारिक रूप से बोल सकते हैं कोई वादा भी कर सकते हैं | जो कोई अन्य व्यक्ति या निकाय नहीं कर सकता |
ऐसे मे जब कोई भी व्यक्ति राष्ट्र की नुमायान्द्गी करता हैं तो , हक़ीक़त मे वह '''पूरे देश या राष्ट्र'''' के लिए नहीं होता हैं |वह तो सिर्फ उस व्यक्ति की निजी रॉय या प्रश्न होता हैं अथवा जिस संगठन या पार्टी का वह प्रतिनिधि हैं उसकी रॉय या सवाल होता हैं | परंतु जिस ज़ोर और ठसके से यह कहा जाता हैं ---तो लगता हैं सारा राष्ट्र या देश उनमे ''उतर ''आया हो | जैसे नवरात्रि मे लोगो को देवी का ''आवेश'' होता हैं वैसा ही कुछ |
इस सब को देख समझ कर लगता हैं की क्या राष्ट्र या देश का इतना लघु रूप हो गया हैं की 120 करोड़ मे हर कोई उसका ''चाहे - अनचाहे ''' नुमायान्द्गी कर सकता हैं ? अथवा यह सिर्फ बोलने भर की बात हैं , बाक़ी तो कायदे - कानून से सब होता हैं | सोचिए ............
प.प.प.प.श्री विजय कुमार तिवारी जी महाराज ! आप शब्दों पर चले गए हैं। यह एक प्रभावशाली शैली है। 'राष्ट्र जवाब चाहता है' या 'राष्ट्र यह बरदास्त नहीं करेगा ' जैसे वाक्य बोलने का यह अर्थ कतई नहीं लगाया जाना चाहिए कि वह राष्ट्र की ओर से बोल रहा है या राष्ट्र का प्रतिनिधि बनकर बोल रहा है। पंडित जी ! मैंने बहुत सोचा, पर मेरी समझ मेन नहीं आया कि इस राष्ट्र ने आपको भी यह अधिकार नहीं दिया कि राष्ट्र कि इच्छा / अनिच्छा पर सबाल करें । समझे या समझाऊँ ? ह:ह:ह:ह:ह:
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