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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 14, 2013

क्या हिंदी के लिए फिर लोहिया को जन्म लेना होगा ?

   क्या  हिंदी के लिए फिर  लोहिया को जन्म लेना होगा ?
                                                             साठ  के दशक में राष्ट्र  भाषा हिंदी के सार्वजनिक  रूप से प्रयोग की मांग को लेकर समाजवादी नेता डोक्टर  राम मनोहर लोहिया  ने राष्ट्र व्यापी आन्दोलन किया था । लेखक उस समय विश्व  विद्यालय का छात्र था , एवं समाजवादी युव जन सभा का सदस्य था । उस समय अंग्रेजी में लिखे साइन बोर्ड और सरकारी  सूचना पट  पर कालिख पोतने का काम छात्रो के जिम्मे था । आन्दोलन का सूत्रपात हिंदी में सरकारी विभागों के प्रतियोगिता  में जवाब लिखने की आज़ादी की मांग से हुई थी । आन्दोलन  का ही नतीजा था की स्तम्भ लेखक और पत्रकार डोक्टर  वेद प्रताप वैदिक  ने   जवाहर लाल नेहरु  विश्व  विद्यालय  में अपनी थीसिस  हिंदी में लिखी ,और डाक्टरेट  की उपाधि प्राप्त की । 
                             उसके बाद हिंदी को  राष्ट्र भाषा  का  दर्ज़ा  तो मिला .लेकिन इस प्राविधान के साथ की केंद्र सरकार पत्र व्यवहार  करते समय गैर हिंदी भाषी प्रान्तों की भाषा  में उसका अनुवाद भी भेजेगी । दक्षिण भारत के राज्यों में हिंदी आन्दोलन की प्रतिक्रिया में हिंसक आन्दोलन हुए ।  जिसमें जन- धन की काफी हानि हुई थी , रेल गाड़िया  जलाई गयी पोस्ट ऑफिस फूंके गये   थे । उनकी मांग थी की हिंदी को उन पर  थोपा नहीं जाए । परिणाम स्वरुप  संविधान में उल्लिखित  सभी भाषाओ में सरकारी प्रतियोगिताओ  में उत्तर देने  की आज़ादी दी गयी । तब गैर हिंदीभाषी  राज्यों के लोगो को संतोष हुआ । 
                                                            आज संघ लोक सेवा आयोग ने अंग्रेजी के पर्चे को  अनिवार्य करके फिर एक विवाद खड़ा कर दिया हैं । उस समय  भी प्रांतीय  भाषाओ की  अनदेखी  नौकर शाहों की हरक़त का परिणाम था , जिसका खामियाजा तत्कालीन कांग्रेस सरकारों को भुगतना पड़ा था ।  आज फिर उसी  शासन तंत्र के हिस्से ने षड़यंत्र पूर्वक अखिल भारतीय  सेवाओ की प्रतियोगिताओ न केवल छेत्रिय  भाषाओ  की  अवहेलना की हैं वरन हिंदी जो की राष्ट्र भाषा हैं , उसका अपमान खुले आम किया हैं ।   
                       भाषा का यह विवाद फिर राजनितिक रूप लेगा , तमिलनाडु  में  इस मुद्दे पर डी एम् के  और अन्ना  डी एम् के    के सुर एक हो गए हैं  । दोनों ने ही केंद्र सरकार के इस निर्णय की भर्त्सना की हैं । देखना हैं की भाषा का यह विवाद कंही गटबंधन की सरकार को खतरे में न ड़ाल  दे   , तब नौकर का   किया  मालिक भोगेगा  । 
                  

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