भूखा
और गरीब मजदूर ---फिर
एक बार हारा ,
सरकार
से
|
24 मार्च
को कोरोना के कारण राष्ट्रीय
तालाबंदी की अचानक मुनादी
ने तो --उद्योग
-
व्यापार
आदि सभी पर पूर्ण विराम "”जैसा
लगा दिया "”
| सरकार
की मुनादी के 24
घंटे
में ही दिल्ली – अहमदाबाद
--सूरत
आदि अनेक नगरो में फंसे लाखो
मजदूरो पर तो मानो आसमान ही
फट पड़ा !
जिसके
पास जो कुछ भी था उसे लेकर वह
अपने "”मुलुक
'’
या
घर जाने के लिए उतावला हो उठा
|
कारण
भी था की जिस नौकरी या काम के
सिलसिले में घर छोड़ा -परिवार
छोड़ा ,
जब
वही बंद हो गया तब किसलिए रुकना
!
और
दूसरी ओर यह भी शंका थी की कब
तक यह तालाबंदी रहेगी यह भी
बताने वाला "””सरकार
में कोई नहीं "”
| तब
निराशा में जो जैसा पड़ा निकाल
पड़ा |
उत्तर
प्रदेश के बांदा जिले की एक
गर्भवती महिला 700
किलो
मीटर पदयात्रा कर पहुंची !
हजारो
लोग पैदल कानपुर -
फारुखबाद
-
कन्नौज
-बुलंदशर
-
अलीगद
तक गए |
कुछ
साइकल से तो कुछ रिक्शा से
बिहार तक पहुंचे |
परंतु
मुंबई -महाराष्ट्र
-
सूरत
-अहमदाबाद
-
दिल्ली
आदि के लाखो मजदूरो को कोटा
के सैकड़ो छत्रों ने मात दे दी
|
जिन
मजदूरो को घर नहीं जाने दिया
-
निकलने
पर पुलिस ने लाठी भांजी – वनही
सरकार की कृपा श्रीमंतों के
चिर्ञ्जिवियों पर हुई |
और
सारे कानून धरे रह गए |
तालबंदी
मुनादी --की
जो जनहा पर हैं -वनही
रहे के सरकारी हुकुम के बावजूद
प्रावासी मजदूरो की घर वापसी
की जद्दो जेहद मार्च अंत तक
रही |
लगभग
लाखो लोग ने घर वापसी की |
तब
सरकार ने कोरोना संक्रामण को
लेकर नागरिको के आवागमन पर
पुलिस की लाठी गरजने लगी |
चाहे
वह दिल्ली -
यू
पी बार्डर हो या दिल्ली---
मुरैना
का गलियारा हो अथवा धौलपुर -
भिंड
की सीमा हो सभी पर ऐसी निगरानी
शुरू हो गयी --मानो
कोई विदेशी घुस रहा हो !
फिर
शुरू हुई "
दमदारों
"
और
"”
बेदम"”
हुए
मजदूरो में सौतेले व्यवहार
की !
बात
शुरू हुई राजस्थान के कोचिंग
केंद्र कोटा से |
जनहा
बीस-बीस
लाख फीस भर कर छात्र आते हैं
|
जब
उन्होने अपने माता -पिता
को अपनी तकलीफ़े बताई तो ----
शासन
का उदार चेहरा सामने आ गया |
कहते
है की तुम शक्ल दिखाओ मैं कानून
बता दूँगा !
बस
फिर क्या था चार सौ बसे आग्रा
से 100
बसे
झाँसी से कोटा को रवाना की गयी
-----तालाबंदी
को ठेंगा दिखते हुए !
इसे
ही कहते है अपनों का बेगाना
हो जाना !
मुसीबत
के मारो को उनके राज्यो की
सरकारे मदद तो नहीं कर रही थी
,पर
मदद के विज्ञापन खूब हो रहे
थे |चैनलो
पर बड़े -
बड़े
नेता इन लाखो भूखे -
तंगहाल
लोगो के लिए ना तो खाने -पीने
और रहने का बंदोबस्त हो रहा
था ,ना
ही इन्हे जाने दिया जा रहा था
!
बिहार
और उत्तर प्रदेश झारखंड ओरिसा
छतीसगढ़ मध्य प्रदेश के आदिवासी
भील --------जेल
से भी बुरी यंत्रणा भुगत रहे
थे |
14
अप्रैल
को तालाबंदी खुलने की उम्मीद
---और
ट्रेन सेवा के शुरू होने की
\
उम्मीद
कहो अफवाह कहो – के कारण बांद्रा
पर जैसी आप्रवासी मजदूरो की
भीड़ एकत्रित हुई थी -----वह
मोदी जी की तलबंदी की घोसना
के अगले दिन [24
मार्च
]
दिल्ली
के आनंद पर्वत पर हुई थी |
वही
तालाबंदी की पहली असफलता थी
|
फिर
उसे ही बांद्रा में 14
अप्रैल
को दुहराया गया |
क्यू
?
बेकाबू
हुई अधीरता ?
सरकार
अभी भी भी केवल महानगरो की
समस्याओ और वनहा इलाज पर
केन्द्रित हैं |
परंतु
जेल से भी ज्यड़ा बुरी यंत्रणा
भुगत रहे इन मजदूरो को कब इनके
घर वापसी होगी -
कैसे
होगी कोई नहीं बता रहा ___सरकरे
मौन हैं
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