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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 10, 2020


नागरिकता संशोधन - शाहीन बाग़ और लखनऊ के आन्दोलंकारियों के पोस्टर !!



इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश माथुर की खंड पीठ द्वरा उत्तर प्रदेश शासान को शहर मे पुलिस द्वरा लगाए गए पोस्टर को तुरंत उतारने और 16 मार्च तक अदालत को बताने का हुकुमनामा योगी सरकार के कारकुनों पर तमाचा हैं | लखनऊ में नागरिकता विरोधी प्रदर्शन में भाग लेने वालो पर पुलिस ने रिपोर्ट लिख कर --उन 150 से अधिक बा शहरियों के पोस्टर नगर में लगवा कर उन्हे भी सुल्ताना डाकू और मानसिंह की श्रेणी में ला दिया | भले ही इस काम को अंजाम देने वाले जिलधिकारी और पोलिस कमिसनर हो , परंतु हुआ तो यह योगिराज आदित्यनाथ की कृपा से हुआ होगा ! क्योंकि जिस आक्रामक तेवर से वे विधान सभा में तलवार लहराने वालो की आरती उतारने वालो में हम नहीं ----कहते हैं , वह उनकी ज़िद्द और नफरत का परिचायक हैं ! वैसे लखनऊ के घंटाघर में 50 दिन से अधिक तक धरणे पर बैठने वाली फरीदा खातून शायद नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लड़ाई की पहली "”शहीद "” हैं |
भले ही फरीदा की मौत पर कोई शोक न मनाया गया हो -----परंतु उच्च न्यायालय द्वरा खुद आगे बड़ कर पुलिस प्रशासन द्वरा जिस प्रकार सरकार के विरोध में प्रदर्शन करने वालो को --””नीचा दिखने या फरार अपराधी जैसा बताने "”की गंदी हरकत की सुनवाई करना | यह दर्शाता हैं की अभी भी पुलिस के जूतो के बल पर चल रहा नागरिक प्रशासन कानून की कोई परवाह नहीं करता !! प्रधान अधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की मुख्य न्ययाधीश की अदालत में यह दलील देना की "” यह घटना लखनऊ की हैं इसे आप नहीं सुन सकते ! तब जुस्टिस माथुर को कहना पड़ा की मैं इलाहाबाद हाइ कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश हूँ - लखनऊ बेंच भी मेरे तहत हैं ! फिर अतिरिक्त मुखी अधिवक्ता त्रिपाठी ने कहा की आप को इस घटना का स्ंज्ञान नहीं लेना चाहिए था – जब अदालत ने प्रश्न किया की क्यो ? तब उनका तर्क { कुतर्क} था की सभी लोग जिनके फोटो और पते सहित पोस्टर शहर के अनेक हिस्सो में लगाए गये हैं , वे अपना मुकदमा लड़ने में सक्षम हैं ! परंतु जब मुख्य न्ययाधीश माथुर ने सवाल किया की प्रशासन ने किन कानूनी प्रावधानों के तहत यह कारवाई की है ? तब सरकार के आधे दर्जन वकीलो के मुंह पर टाका लग गया !! सरकार के वकीलो ने माना की पुलिस या प्रशासन के पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं हैं !! अदालत ने उन्हे बताया की आरोपियों के इश्तहार अदालत की आज्ञा से ही लगाए जाते हैं | पुलिस द्वरा नहीं |
हालांकि सरकारी वकील इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की फिराक में हैं | क्योकि उन्हे लगता हैं की अदालत की फैसले से ना केवल पुलिस और ज़िला प्रशासन कि सरेआम किरकिरी हुई हैं ,वरन राजनीतिक आक़ाओ की मर्ज़ी को भी ठोकर लगा हैं | जिस प्रकार मौजूदा प्रदेश सरकार पुलिस और प्रशासन की क्रउर हरकतों से लोगो की आवाज दबाने की कोशिस ही है |जिसे उच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकार में अभिवयिकती और निजता के हनन करार दिया | इस फैसले से यह संदेश दिया की सरकार को अपने फैसले कानून की परिधि में रहकर लेना चाहिए | ना किसी सनक या ज़िद्द के वशीभूत हो कर | यानि एक भी नारा सरकार के वीरुध लगा की ---- सरकार को क्रोध आया और दे दिया गिरफ्तार करने का हुकुम | चौरी चौरा से गांधी पद यात्रा निकाल रहे छात्रों को पहले गाजीपुर में गिरफ्तार करना और फिर उन्हे 48 घंटे के बाद बिना एसएचआरटी छोड़ भी दिया | परंतु उनकी यात्रा दुबारा प्रारम्भ होने के बाद उन्हे फिर एक बार गिरफ्तार किया गया "”शांति भंग "” के अंदेशे से और उन्हे फ़तेहपुर की जेल भेज दिया गया ! अब क्या इस गिरफ्तारी को वैधानिक और न्यायपूर्ण कहा जा सकता हैं !
फिलहाल तो शाहीन बाग से शुरू हुआ नागरिकता संशोधन विधायक का विरोध के सिलसिले ने जनहा देश - दुनिया में शांतिपूर्ण धरना और आंदोलन का प्रतीक तो बन ही गया हैं |

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