Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 29, 2013

जीवेम शरद: शतम एवं पाये दो गुनी पेंशन -भत्ते , बीबी -बच्चे भी निहाल आई ए एस का कमाल

जीवेम  शरद: शतम  एवं पाये  दो गुनी पेंशन -भत्ते , बीबी -बच्चे भी                      निहाल  आई ए एस का कमाल

                 बड़ी - बड़ी खबरों के बीच मे एक छोटी सी खबर थी ,पर जिसका असर बहुत बड़ा होगा | क्योंकि  नौकरशाही  के ब्रम्हा  यानि ''अखिल भारतीय सेवाए "" अर्थात आइ ए येस और पुलिस - विदेश - वन तथा सहयोगी  सेवा के लोगो के अवकाश प्राप्त लोगो की ""पेंशन और भत्ते मे अब क्रमिक रूप  से वढोतरी  भी होगी | और इतना ही नहीं साठ साल तक की नौकरी मे तो ""निश्चित प्रोन्नति   और  विभिन्न वेतनमान  तो लिए ही पर अब वे  पेंशन  मे भी  यही सुविधा  प्राप्त  करेंगे | हैं  न मज़े की बात !

                       इस सुविधा का लाभ अब ""साहब " के  ज़िंदा रहने  या न रहने का मोहताज नहीं हैं ,  नए नियमो के अंतर्गत ''मेम  साहब को यह सुविधा  साहब के परलोक सिधार जाने के बाद भी मिलेगी | हैं न मज़े की बात की एक ओर सम्पूर्ण शिक्षा तंत्र '''तदर्थवाद '''पर चल रहा है  अस्पतालो मे डाक्टरों को भी ''वेतनमान '' नहीं वरन 'फिक्स' पे पर नियुक्त किया जा रहा हैं , ''वही ''ब्रम्हा जी अपने लिए सुविधा - लाभ - भत्ते जुटाने मे लगे हैं | जो सुविधा उन्होने अपने लिए ली हैं क्या वही सुविधा वे देश की रक्षा करने वालों अर्थात सशस्त्र  सेनाओ को भी देंगे ?  क़तई नहीं | 

                              फिर क्या आधार हैं इस नए पेंशन कानून का ? शायद पर्सनल  विभाग अर्थात  डी ओ पी टी -- इस बात की ज़हमत न उठाए क्योंकि केंद्र का यह कदम  प्रादेशिक सेवाओ के लिए नज़ीर  यानि की उदाहरण बनेगी | मनमोहन सरकार की मजबूरी इस फैसले मे साफ दिखती हैं , अन्यथा लोकसभा चुनाव की संध्या पर ''इतना गैर बराबरी '' को जन्म देने वाले कदम का कोई औचित्य नहीं सीध किया जा सकता |सनातन धर्म को --   जातियो मे विभाजित करने और उनमे  छुआ -छूत जैसी अमानवीय प्रथा के लिए  दोषी  बताया जाता है  , यह कदम भी  कुछ - कुछ वैसा ही है | वैसे सनातन धर्म मे  कर्म के आधार पर ही वर्ण का  वुभाजन किया गया था , परंतु वर्गो मे छुआ छूत की कुप्रथा  कालांतर मे ''धर्म''के ठेकेदारो ने  मै  सर्व  श्रेष्ठ की घोसणा''' करके समाज मे भेद और विद्वेष का बीज बो दिया | वैसा ही यह [ नेहरू के शब्दो ]   लौह कवच केवल अपनी रक्षा के लिए  प्रयासरत है , देश अथवा नागरिकों के लिए नहीं
                              
               प्रशासन  के इन नियंताओ  मे कही  भय तो नहीं समा गया की , उनके फैसलो से ''आने वाले  समय ''मे  उनकी पेन्सन रुपये के गिरते भाव के कारण '''बेदम'' न हो जाये ? वैसे देश के आर्थिक फैसले इसी नौकरशाही  के भाई - बिरादर द्वारा लिया गया है | अब पूरे देश को आर्थिक भँवर मे डाल कर खुद  का बुढापा  सूरक्षित करने की तो जुगत नहीं हैं ? सवाल तो उठेंगे ही ---अब जवाब के ''रूप''मे सामने क्या आता हैं यह समय अर्थात काल ही बताएगा .........................
                         

No comments:

Post a Comment