मंदिर को बचाने वाली शिला को ''देवत्व ''' का परिणाम घोसित करने का आग्रह
केदारनाथ समेत पूरे उत्तराखंड मे हुई तबाही को एक ओर धर्म भीरु ''दैवी प्रकोप'' बता रहे हैं , वही ''धर्माचार्यो '''ने केदारनाथ मंदिर के पीछे के भाग मे दीवार से सटे हुए बोल्डर को दैवी कृपा निरूपित किया हैं | भू - स्खलन के परिणाम स्वरूप केदारनाथ मंदिर के पीछे के भाग से जो मलवा आया था उसमे जल के साथ पत्थरो की बहुत बड़ी राशि थी | पानी और पत्थरो को महती धारा को इस चट्टान ने एक ओर मंदिर की दीवार को बचाया , वही दूसरी ओर पहाड़ से आते उस मलवे को दो भागो मे बाँट दिया था | परिणाम स्वरूप होने वाले नुकसान मे काफी कमी आई |
अभियंताओ और भू गर्भ शास्त्रियों का कहना हैं की यदि यह चट्टान मंदिर से नहीं लगती तब संभवतः मंदिर छतिग्रष्त हो जाता और करोड़ो वेदिक धर्म मानने वाले लोगो की सनातन श्रद्धा नेचर की भेंट चढ जाती || परंतु ऐसा हुआ नहीं और मंदिर ज्यो का त्यों बना रहा | हाँ मंदिर के अंदर पहाड़ से बह कर आई मिट्टी और पत्थर जरूर भर गए थे | यद्यपि वह भी एक प्रकार से बचाव का कारण हो गया, और बाहर के दबाव के बावजूद इमारत को यथा स्थित बनाए रखा |
अब स्थानीय लोगो ने इस शिला को देव स्थान घोसीत किए जाने की मांग मंदिर के धार्मिक और प्रशासनिक अधिकारियों से की हैं | अब सनातन धर्म मे ''देवत्व''' किसी के द्वारा दिया जाये ऐसा नहीं होता | या तो यह जन्मना होता हैं अथवा यह ऋषियों -मुनियो के आशिर्वाद से फलित होता हैं | वैदिक धर्म मे भक्त ही भगवान को बनाते हैं | कहने का आशय यह हैं की व्यक्ति अथवा स्थान की कीर्ति ही , उसके दैवी होने का प्रमाण होता हैं , | कोई धर्माचार्य अथवा उनका समूह ऐसा नहीं कर सकता | अब देखना होगा की धार्मिक --और प्र्शसनिक व्यसथा इस बारे मे क्या निरण्य लेती हैं |
केदारनाथ समेत पूरे उत्तराखंड मे हुई तबाही को एक ओर धर्म भीरु ''दैवी प्रकोप'' बता रहे हैं , वही ''धर्माचार्यो '''ने केदारनाथ मंदिर के पीछे के भाग मे दीवार से सटे हुए बोल्डर को दैवी कृपा निरूपित किया हैं | भू - स्खलन के परिणाम स्वरूप केदारनाथ मंदिर के पीछे के भाग से जो मलवा आया था उसमे जल के साथ पत्थरो की बहुत बड़ी राशि थी | पानी और पत्थरो को महती धारा को इस चट्टान ने एक ओर मंदिर की दीवार को बचाया , वही दूसरी ओर पहाड़ से आते उस मलवे को दो भागो मे बाँट दिया था | परिणाम स्वरूप होने वाले नुकसान मे काफी कमी आई |
अभियंताओ और भू गर्भ शास्त्रियों का कहना हैं की यदि यह चट्टान मंदिर से नहीं लगती तब संभवतः मंदिर छतिग्रष्त हो जाता और करोड़ो वेदिक धर्म मानने वाले लोगो की सनातन श्रद्धा नेचर की भेंट चढ जाती || परंतु ऐसा हुआ नहीं और मंदिर ज्यो का त्यों बना रहा | हाँ मंदिर के अंदर पहाड़ से बह कर आई मिट्टी और पत्थर जरूर भर गए थे | यद्यपि वह भी एक प्रकार से बचाव का कारण हो गया, और बाहर के दबाव के बावजूद इमारत को यथा स्थित बनाए रखा |
अब स्थानीय लोगो ने इस शिला को देव स्थान घोसीत किए जाने की मांग मंदिर के धार्मिक और प्रशासनिक अधिकारियों से की हैं | अब सनातन धर्म मे ''देवत्व''' किसी के द्वारा दिया जाये ऐसा नहीं होता | या तो यह जन्मना होता हैं अथवा यह ऋषियों -मुनियो के आशिर्वाद से फलित होता हैं | वैदिक धर्म मे भक्त ही भगवान को बनाते हैं | कहने का आशय यह हैं की व्यक्ति अथवा स्थान की कीर्ति ही , उसके दैवी होने का प्रमाण होता हैं , | कोई धर्माचार्य अथवा उनका समूह ऐसा नहीं कर सकता | अब देखना होगा की धार्मिक --और प्र्शसनिक व्यसथा इस बारे मे क्या निरण्य लेती हैं |
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