पंजाबी
-बंगाली
-तमिल
और मलयाली सभी तो भारतीय फिर
हिन्दू कनहा ??
बेतुल
की जिस जेल मे राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ के प्रथम संघ सरचालक
गोलवलकर को रखा गया था -
उस
बैरक मे श्रद्धा सुमन अर्पित
करने गुरुवार 8फ़रवरी
को सर संघचालक डॉ मोहन भागवत
भी पहुंचे |
इसी
दिन हिन्दू सम्मेलन को संभोधित
करते हुए उन्होने कहा की "””
देश
के मुसलमान भी राष्ट्रियता
से हिन्दू है "”
उन्होने
यह भी कहा की अगर देश का भला
-बुरा
होता है तो लोग जिम्मेदार
हिन्दू को मानेगे |
जात-पांत
को खतम करने का आवाहन करते हुए
उन्होने चेतावनी दी की अगर
यह खतम नहीं हुआ “”दुष्ट
अत्याचार करेंगे “” |
भागवत
जी के उद्बोधन से कुछ सवाल उठ
खड़े होते है जिनका देश के
सामाजिक और धार्मिक आस्था से
सरोकार जुड़ा हुआ है |
सर्व
प्रथम भारतवर्ष के सभी नागरिक
भारतीय है हिन्दू नहीं |
क्योंकि
हिन्दू शब्द को कालांतर से
वेदिक धर्म |का
पर्यायवाची मान और समझ लिया
गया है |
जो
सही नहीं है |
वेदिक
धर्म है और हिन्दू शब्द सिंधु
नदी के पार रहने वालो के लिए
सिकंदर ने प्रयोग किया था |
अतः
इस अंतर को सँझना अत्यंत आवश्यक
है |
संभवतः
भागवत जी किनही कारणो से भारतीय
शब्द का प्रयोग करने से कतराते
है |
परंतु
उनके कथन के बावजूद भी हिन्दू
कोई धर्म नहीं है |
जिस
प्रकार पंजाबी -बंगाली
-तमिल
या मलयाली छेत्र विशेस के
निवासियों के लिए प्रयुक्त
होता है ,उसी
प्रकार भारतीय भी देश के
निवासियों के लिए इस्तेमाल
किया जाता है |
देश
मे भले ही लोग हिन्दू -
मुसलमान
से दो धर्मो के मानने वालो को
पहचाने |
परंतु
विदेशो मे इन दोनों के लिए एक
ही शब्द का इस्तेमाल होता है
"”इंडियन
"”
जिसकार
अनुवाद भी भारतीय है |
हिंदुस्तान
नहीं |
उन्होने
जाती के बंधन से समाज को मुक्ति
पाने का आग्रह किया |
उनकी
यह अपील सरहनीय है --परंतु
इस व्यसथा को समाप्त होने के
निकट भविष्य मे कोई उम्मीद
नहीं दिखाई पड़ती |
इसका
उदाहरण अङ्ग्रेज़ी समाचार
पात्रो मे निकालने वाले वैवाहिक
विज्ञापनो मे देखने को मिलेगा
|
यह
ईसाई विवाहो के विज्ञापनो मे
देखने मे आता है ---जनहा
एक ऐसे वर या वधू की आकांछा
रहती है --जिनके
पूर्वज नंबूदरी ब्र्म्हन
अथवा नायर समाज से हो ,और
जो बाद मे धर्म परिवर्तन कर
ईसाई बन गए |
इसका
अभिप्राय यह है की धर्म परिवर्तन
के बाद भी "”जाति"”
पीछा
नहीं छोडती है |
अब
यनहा के निवासियों के मन मे
बैठी जातीय श्रेष्टता ही उन्हे
नाम के बाद सरनेम लिखने को
मजबूर करती है |
नाम
अगर व्यक्ति की पहचान है तो
सरनेम उसकी जाति की पहचान है
|
परंतु
यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण हो
जाता है क्योंकि देश की सत्तारूद
दल की जान और पहचान है |
1977 मे
बनी जनता सरकार का विघटन सिर्फ
इस कारण हुआ था की जनसंघ के
लोगो से संघ से संबंध विछेद
करने का पार्टी का आदेश हुआ
था | तब
संघ के सदस्यो ने सरकार से अलग
होना मंजूर किया था --परंतु
अलग होना नहीं |
आज
जब चरो ओर जाति या समाज विशेस
के लोग "”आरक्षण
"”
की
मांग को इन्हे आधार बनाते है
,तब
यह बयान दूसरा ही रूप ले लेता
है |
बिहार
चुनावो के समय भी संघ ने जातीय
आरक्षण के विरोध मे बयान दिया
था | जो
भारतीय जनता पार्टी के लिए
हानिकारक सीध हुआ |
यानहा
तक की पार्टी तीन अंको की संख्या
भी नहीं पा सकी |
अब
लगभग फिर वैसी ही स्थिति है
--तीन
राज्यो मे विधान सभा चुनाव
होने है |
एवं
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड
मे जातीय समीकरण विजय श्री
के लिए महत्वपूर्ण है |
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