क्यो
केंद्र आतंकी की परिभाषा मे
प्रशासनिक बदलाव चाहता है ?
केंद्र
सरकार ने टाड़ा कानून के तहत
आतंकी की न्यायिक परिभाषा
मे परिवर्तन के लिए सुप्रीम
कोर्ट मे अर्ज़ी लगाई हुई है
| जिसकी
सुनवाई सितंबर माह मे होने
वाली है | आखिर
क्या दिक्कत आन पड़ी जो मौजूदा
"”टाड़ा"”
कानून
को और भी सख्त बनाने की कवायद
केंद्र ने शुरू की है |
वास्तव
मे इस किस्से की शुरुआत एक
मुकदमे से होती है जो सन 2007
मे
सर्वोच्च न्यायालय मे दाखिल
किया गया था |
मामला
कुछ यू था की आसाम के उल्फ़ा
नामक प्रतिबंधित आतंकवादी
संगठन के एक नेता की पुलिस
मुठभेड़ मे मौत हो गयी |
शिनाख्त
के लिए पोलिस ने उस संगठन के
एक सदस्य को पकड़ा जिसकी निशानदेही
पर शिनाख्त हुई |
आसाम
पुलिस ने अरूप भूनिया नामक
इस व्यक्ति को वारिष्ठ पुलिस
अधिक्षक के सामने बयान करा
कर उसे टाड़ा कानून के अंतर्गत
निरूध कर दिया |
इस
मामले मे पुलिस के पास भुइया
के "”इक़बाली
"”” बयान
के अलावा और कोई सबूत नहीं था
| गौहाटी
के टाड़ा अदालत ने पुलिस के
सामने दिये गए बयान को कानूनी
मानते हुए सज़ा सुना दी |
जिसके
विरुद्ध भुईया ने सुप्रीम
कोर्ट मे अपील दायर की |
3 फरवरी
2011 को
जुस्टिस मार्कन्डेय काटजू
और जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा
ने अभियुक्त के बयान को
अपर्याप्त मानते हुए बारी
किए जाने का निर्णय दिया |
कुछ
ऐसा ही कानून अमेरिका मे भी
है पैट्रियट एक्ट जिसके तहत
आतंकवादी को अपनी गिरफ्तारी
की सुनवाई का अदालत मे मौका
नहीं मिलता |
पुलिस
ही इन लोगो से मार -
पीट
कर बयान को सबूत बना कर पेश कर
देती है |
सुप्रीम
कोर्ट की इस खंड पीठ ने कहा
की टाड़ा कानून मे अभियुक्त
का पुलिस के सामने दिया गया
बयान "”कानूनी
रूप से मान्य है "””
परंतु
इस प्रक्रिया की वैधानिकता
को अंतिम मानना "”मूल
अधिकार '' की
अव हेलना होगी |
उन्होने
कहा की पोलिस कैसे -
कैसे
हथकंडे अपनाकर अभियुक्तों
से बयान लेती है यह सर्वा विदित
है | मार
-पीट
कर के सभी अभियुक्तों से उनके
गुनाह कबूल करा लिए जाते है
| इसलिए
उन्हे स्वेक्षा से दिया बयान
नहीं माना जा सकता |
इस
से भी महत्वपूर्ण बात उन्होने
कही की " मात्र
प्रतिबंधित संगठन का सदस्य
होना "”” कोई
अपराध नहीं है "”'
जब
तक उस व्यक्ति की संलिप्तता
किसी हिंसक वारदात मे ना सीध
हो तब तक वह "”निर्दोष
"” है
| अब
यही वह बिन्दु है जिसको लेकर
केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय
से मांग की है की इस फैसले
की"””” पुनः
समीक्षा "”' एक
बड़ी पीठ द्वरा की जाये |
केंद्र
की दलील के अनुसार प्रतिबंधित
आतंकी संगठनो के विरुद्ध सबूत
एकत्र करना अत्यंत कठिन होता
है ----इसलिए
"”पुलिस
के सामने दिये गए बयानो को
पर्याप्त सबूत माना जाये "””
|
कुछ
ऐसा ही प्रविधान अमेरिकी
प्रशासन ने Patriot
Act
मे
किया है | जिसके
तहत अमेरिकी प्रदर्शनकारियो
को "” जान
- माल
"” की
हानि पाहुचने के जुर्म मे
पुलिस द्वरा बिना मुकदमा चलाये
भी निरूढ़ किया जा सकता है |
हक़ीक़त
मे यह कानून 9/11
के बाद
जॉर्ज बुश के समय लाया गया
था | परंतु
इस कानून के प्रविधानों का
वनहा की जनता ने बहुत विरोध
किया | वनहा
के 400 से
अधिक काउंटी ने इस कानून के
प्रविधान को अपने इलाके मे
"” निष्प्रभावी
"” करार
देने का कानून बना दिया |
अमरीकी
संविधान के तहत राज्य और
काउंटी अपने -
अपने
छेत्र मे आपराधिक कानून बना
सकते है | परंतु
हमारे देश मे अपराधो के मामले
मे एक ही कानून सभी जगह लागू
होता है | अमेरिकी
कानून की भांति यनहा भी इस का
"”दुरुपयोग
"””सरकार
और पुलिस "””
द्वरा
नहीं किया जाएगा – इसकी कोई
गारंटी नहीं है |
किसी
भी प्रदर्शन या संगठन को
"”प्रतिबंधित
"” कर
के उसके सदस्यो को '''
राष्ट्रिय
हानि "” के
आधार पर निरूध किया जा सकता
है | फिर
मूल अधिकारो और प्रजातंत्र
की बात ही खतम हो जाएगी |
No comments:
Post a Comment