जैन
मुनि तरुणसागर जी का हरियाणा
विधान सौन्ध मे प्रवचन
कडवे
प्रवचन के लिए खयातनामा
तरुणसागर जी द्वरा हरयाणा
विधान सभागार मे प्रवचन को
लेकर की गयी टिप्पणीयो से
विवाद शुरू हो गया है |
आप
पार्टी और काँग्रेस प्रवक्ता
की टिप्पणियॉ को उचित नहीं
माना जा सकता |
जिन
या जैन धर्म मे तीन प्रमुख
संप्रदाय है दिगंबर ----श्वेतांबर
और स्थानकवासी |
दिगंबर
स्वामियों का जीवन कठिन तपस्या
का प्रतिमान है |
आचार्य
विद्यासागर अपना चातुर्मास
इस वर्ष भोपाल मे व्यतीत कर
रहे है| उनके
दिन - प्रतिदिन
के जीवन से ताप और -अपरिग्रह
को मूर्तिमान रूप मे देखा जा
सकता है | | इसी
दौरान उनहो ने मुख्य मंत्री
शिवराज सिंह के आग्रह पर विधान
सभा सदस्यो को संबोधित करना
स्वीकार किया |
विद्यासागरजी
ने विधान सभा के मैदान मे
शामियाने मे एकत्र सम्पूर्ण
प्रदेश से आए भक्तो को प्रवचन
दिया |उन्होने
विधान सभा के हाल मे जाना
नामंज़ूर किया क्योंकि वनहा
कार्पेट लगे हुए थे |
तरुणसागर
जी ने प्रवचन सभागार मे दिया
---जनहा
विधान सभा की बैठक होती है |
जो
संवैधानिक स्थान है |
जनहा
वे ही बैठते है जिनहोने संविधान
की शपथ ली है |
तरुणसागर
जी को विधायिका के स्थान पर
जाने से बचना चाहिए था |
जैसे
आचार्य विद्यासागर जी ने किया
| तब
कोई विवाद की स्थिति नहीं बनती
| वस्तुतः
सभागार धर्म निरपेक्ष स्थान
होता है | चूंकि
सदस्यो की आस्था भी भिन्न -
भिन्न
मतो मे होती है ,
इसलिए
किसी भी एक धर्म को प्रमुखता
देना अनुचित होगा |
मेरे
समकालीन पत्रकार कानपुर वासी
शम्भूनाथ शुक्ल ने नया इंडिया
समाचार पत्र मे इस घटना /विवाद
पर टिप्पणी लिखी है |
अपनी
लेख मे उन्होने कहा की '''तरुण
सागर ''' जी
''अपरिग्रह
"” के
मूर्त रूप है |
उन्हे
नहीं मालूम की की दिगंबर
सन्यासियों की भांति वे पद
यात्रा नहीं करते है |
वे
पालकी अथवा व्हेडेल चेयर पर
चलते है | उनके
शिष्यो के पास उनका समान भी
रहता है | इसकी
तुलना मे आचर्या श्री विद्यासागर
जी आजीवन पदयात्रा कर रहे है
| उनका
व्रत है की वे दरी -
कार्पेट
पर पैर नहीं रखते |
जबकि
हरियाणा विधान सभा का सभागार
पूरा का पूरा कार्पेट लगा हुआ
है | तो
शुक्ल जी अपरिग्रह के मूर्तिमान
नहीं है तरुणसागर जी यद्यपि
उसका '''यथा
संभव "”” पालन
करते है |
शम्भूनाथ
शुक्ल जी आपने दलाई लामा द्वरा
संसद को संभोधित किए जाने का
उदाहरण देते कहा था की काँग्रेस
''''यदि
बौद्ध गुरुके लिए ऐसी व्यसथा
की जा सकती है तो जैन मुनि के
लिए क्यो नहीं ??
शायद
वे भूल गए की दुनिया मे दो ही
धर्म प्रमुख ऐसे है जिनहे
“”राष्ट्र प्रमुख “”” का भी
दर्जा मिला हुआ है |
पहले
है कैथोलिक चर्च के पोप और
दूसरे है बौद्ध धर्म के प्रमुख
दलाई लामा | यानहा
यह भी बताना जरूरी है की वैटिकन
की अपनी सत्ता है उनके राजदूत
विभिन्न देशो मे है |
| उसी
प्रकार दलाई लामा तिब्बत की
सरकार के राष्ट्र प्रमुख के
रूप मे भारत समेत ब्रिटेन
फ़्रांस अमेरिका आदि बहुत देशो
ने उनकी सरकार को मान्यतादी
है | ये
दोनों अपने - अपने
धर्म और शासन के मुखिया है |
इनके
आने जाने पर पूरी औपचारिकता
बरती जाती है |
प्रोटोकाल
निभाया जाता है |
जबकि
जैन मुनि के साथ ऐसा नहीं है
|
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