दिल्ली
के वोटरो सिर्फ पानी -
बिजली
भर के लिए"”आप
को चुना ?/
1935 के
GOVERNMENT OF INDIA ACT मे
अंग्रेज़ गवर्नर को ऐसे ही
अधिकार थे | उस
समय की चुनी हुई विधान सभाओ
को भी पुलिस और शांति व्यसथा
के बारे मे कानून बनाने की
शक्ति नहीं थी |
एवं
वह विधान सभा से पारित किसी
भी विधेयक को नामंज़ूर कर दे
| उसे
ना तो विधान सभा के चुने हुए
प्रतिनिधियों की परवाह थी और
नहीं - वह
अपने फैसलो के लिए किसी को भ
जवाबदेह था | वह
तो बस – '''सम्राट
''' के
प्रति ही जवाबदेह था |
क्या
दिल्ली मे शासन अभी भी उसी
तर्ज़ पर चल रहा
चंद लोगो
को छोड़ कर देश मे चुनी हुई
सरकारो के बारे मे सभी प्र्देशों
मे एक आम धारणा है की ---सुरक्षा
और शनि व्यवस्था के साथ जन
हितकारी कार्यो को अंजाम देना
| साथ
ही नागरिकों को भ्रस्टाचार
से मुक्त करना |
ही
सरकार का काम होता है |
इसीलिए
विधायक चुने जाते है जिंका
बहुमत सरकार बनाता है |
इन
उददेशों की पूर्ति के लिए
केजरीवाल सरकार ने दस विधेयक
विधान सभा से पारित करा कर
राज्यपाल की सहमति के लिए भेजा
| परंतु
मोदी सरकार के नुमाइंदे उप
राज्यपाल ने नजीब जंग ने उनको
दाख़िक दाफ़तर करते हुए कहा की
विधान सभा को बिना मेरी अनुमति
के कानून बनाने की अनुमति नहीं
है | इसी
मुद्दे पर हाइ कोर्ट ने कहा
की दिल्ली के असली शासक तो उप
राज्यपाल है |
परंतु
उच्च न्यायालय इस बात को नहीं
बता पाया की आखिर दिल्ली की
विधान सभा और चुनी हुई सरकार
वास्तव मे अपने बहुमत से क्या
- क्या
कर सकती है ??इस
विषय पर तो उच्चतम न्यायालय
की सविधान पीठ ही फैसला कर
सकती है | जनता
की इच्छा सर्वोपरि है या एक
अफसर की |
दिल्ली
विधान सभा के चुनावो मे जब
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी
भारतीय जनता पार्टी का प्रचार
कर रहे थे तो उन्होने अपने
भासनों मे दिल्ली को दुनिया
के नक्से पर बेमिसाल नगर बनाने
का वादा किया था |
उन्होने
पाँच रैलिया की जिनमे धन और
जन का बोलबाला था |
उन्होने
पार्टी को लोकसभा की ही भांति
विधान सभा मे पूर्ण बहुमत की
मांग की थी -जिस
से वे राजधानी निवासियों को
मनोकूल सुविधाए दे सके |
परंतु
लोकसभा चुनाव के महाबली मोदी
को शायद दिल्ली वासी सबसे
पहले पहचान गए और उन्होने
"””उनकी
मांग को ठुकरा दिया "””
| ना
केवल ठुकराया --वरन
मात्र तीन प्रत्याशी ही बीजेपी
के विजयी हो सके |
यानि
केंद्र मे सत्तारूड दल को नाक
के नीचे पैदलीमात मिली – जिसे
''''वो
'''' पचा
नहीं पा रहे है |
उसी
पराजय का छोभ है की केजरीवाल
सरकार के सभी लोक हितकारी
कार्यो को भी केंद्र सरकार
रोक लगा रही है |
एक
आम आदमी की भांति दिल्ली के
लोगो ने भी विधान सभा के चुनाव
मे अपना फैसला सुनाया |
उन्हे
उम्मीद थी की बहुमत वाली सरकार
अपने किए गए चुनावी वादो को
पूरा करेगी |
केजरीवाल
इस दिशा मे प्रयास कर भी रहे
थे --- परंतु
उनके कुछ "””क्रांतिकारी
"””””फैसलो
से केंद्रीय सरकार खुश नहीं
थी | क्योंकि
वे दस्तूर वाली राजनीति नहीं
कर रहे थे | बिजली
कंपनियो का आडिट करा कर जनता
को घटी डरो पर बिजली मिली |
किसी
अन्य राज्य मे बिजली की दरो
को घटाया नहीं गया |
इस
लोकप्रिय दाव से – नोट और वोट
की राजनीति करने वाले लोगो
को बगावत की बू आने लगी |
क्योंकि
वे सिस्टम के खिलाफ काम कर रहे
थे | ब्रिज
की लागत से कम मे बनवा कर उन्होने
'''विकास
निर्माण कार्य "”
मे हो
रही संगठित बेमाइनी को उजागर
किया |
दिल्ली
उच्च न्यायालय ने केजरीवाल
सरकार की याचिका पर फैसला
सुना दिया की ----राष्ट्र
की राजधानी मे निर्वाचित
सरकार नहीं नियुक्त उप राज्यपाल
असली शासक है |
पढने
औए सुनने मे भले ही अजीब लगे
पर है तो हक़ीक़त की दिल्ली मे
पुलिस की हुकूमत की चाभी
राज्यपाल के हाथ मे है |
मुख्य
मंत्री को भी पुलिस सहता उसी
रास्ते से मिलेगी --जैसे
100 पर
फोन करने पर आम आदमी को मिलती
है | अगर
कोई दिल्ली वाला अपनी सुरक्षा
के लिए पुलिस संरक्षण चाहता
है तो उसे दिल्ली सरकार नहीं
वरन उप राज्यपाल के पास जाना
होगा |
उच्च
न्यालाया ने दस्तावेज़ो के
आधार पर भले अपना फैसला सुनाया
हो --परनू
यह निर्णय करोड़ो दिल्ली वासियो
की राय को उम्मीद को तमाचा है
|की
एक निर्वाचित निकाय को एक बाबू
जिसे केंद्र ने नियुक्त किया
हो वह काम नहीं करने दे |
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ReplyDeleteदिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल की मानसिकता देखकर अब साफ लगने लगा है कि संविधान वेत्ताओं में दूरदृष्टि थी। मत भूलिए कि दिल्ली देश की राजधानी भी है। यदि दिल्ली स्वतंत्र होकर कुछ भी करने लगे तो देश की आंतरिक स्थिति बिगड़ सकती है। इसलिए जो भी हो रहा है ,देश हित में हो रहा है।
ReplyDeleteजहांतक नरेंद्र मोदी के दिल्ली की जनता को दिये गए आश्वासनों का सबाल है। उन्होने आश्वासन तो ठीक दिये थे, कार्य भी वैसा ही होता किन्तु दिल्ली की जनता अपना विकास स्वयं ही नहीं चाहती । तब कोई कुछ भी नहीं कर सकता।