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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 26, 2025

 

यादों के झरोखे से :-


बात तब की है जब मैं जूनियर हाई स्कूल का छात्र हुआ करता था | लखनऊ में पंडित नेहरू का दौरा था ' | अमौसी हवाई अड्डे पर उनका विमान उतरना था | अब हवाई अड्डे का नाम चौधरी चरण सिंह विमानपत्तन हो गया हैं | पंडित जी विक्टोरिया पार्क में सभा को संबोधित करने वाले थे | शाम को नियत वक्त पर देश के प्रथम प्रधान मंत्री पालिमाउथ कार से उतरे | उनके साथ शार्क स्किन की बुसशर्त और पैंट पहने लंबे से गलमुछ वाले व्यक्ति भी उतरे | पंडित जी पीछे की सीट से उतरे और यह सज्जन ड्राइवर की बगल से उतरे | पार्क में अनुमान से 20 से 30 पुलिस वाले थे ,जो व्ययस्थ देख रहे थे | वे नेहरू टोपी भी लगाए थे जो गुलाबी रंग की थी| पंडित जी के पीछे की कार से सम्पूर्णानन्द जी और एक और मंत्री भी उतरे थे | उनके साथ कोई भी आदमी नहीं था |

पूछने पर मुझे बताया गया की गलमूचों वाले व्यक्ति रॉय बहादुर जमुना प्रसाद त्रिपाठी थे ,जो उत्तर प्रदेश पुलिस मे पुलिस कप्तान थे | जो प्रधान मंत्री की सुरक्षा मे थे ,यानि बॉडीगार्ड थे | बाकी मंत्री अकेले थे | नेहरू जी के साथ शायद तीन या चार गड़िया थी हाँ दो पिकअप थी जिसमे से ही कुछ सिपाही उतरे थे | बस इतनी ही सुरक्षा प्रधान मंत्री की थी |

दूसरे वीआईपी थे ईरान के तत्कालीन शहंशाह आर्यमहर और एम्प्रेस

सुरैया का लखनऊ का दौरा | तब स्कूल की तरफ से हम लोगों को उनके गुजरत्ने वाले सड़क पर लाइन से खाद्य कर दिया गया था | हमरे मास्टर साहब ने कहा था की जब वे गुजरे तब नर लगाना था "” शाहे ईरान ज़िन्दाबाद " \| विदेशी शाही जोड़े के साथ खुली कर में दो लोग शायद सुरक्षा के थे | तीसरा वाकया था , प्रथम अंतरिक्ष यात्री रूस के "”यूरी गाग्रिन "” की लखनऊ यात्रा थी | तब शूली छात्रों को बस हाथ हिलाने थे | उनके साथ भी पाँच छा ही गड़िया रही होंगी | ये सभी राष्ट्र के प्रथम नागरिक के बराबर को उनकी सुरक्षा की हकदार थे |

ये वाकया इसलिए याद आया क्यूंकी भोपाल मे औद्योगिक अधिवेशन के उद्घाटन मे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को आना था ___ शहर को "” sanitaiez करने के एनएसजी के निर्देश पर भोपाल की एक तिहाई इलाके को बड़ाबांदी कर दी गई | बीस -तीस सड़क मार्ग को एकांगी कर दिया गया | अनेकों मार्गों को बंद कर दिया गया | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के राजभवन से ट्राइबल मूजियाम के रास्ते को तो घंटों पहले लोगों की आवाजाही को रोक दिया गया था | अब सुरक्षा के नाम पर ऐसी कवायद शायद ही किसी अन्य राष्ट्र में होती होगी , जन्हा तक मुझे जानकारी हैं | वैसे इतनी तो सुरक्षा इंदिरा गांधी या राजीव गांधी की भी नहीं हुआ करती थी | हाँ आवागमन से आधे सेएक घंटे पूर्व ही ट्रैफिक रोक जाता था | पर अब तो ................|

 

आंदोलन का अधिकार मांगने वाले --- आज किसान और वकीलों के आंदोलन से भयभीत !


संभवतः आजाद भारत में सरकार के विरुद्ध पहला आंदोलन { गौ वध निरोधक कानून } की मांग को लेकर तत्कालीन जनसंघ और आरएसएस ने प्रभुदत्त ब्रमहचारी की अगुवाई में निकाला था | अब ब्रिटिश हुकूमत के ट्रेंड पुलिस वालों ने इन आंदोलनकारियों से उसी प्रकार निपटे ,जिस प्रकार वे स्वाधीनता आंदोलन के समय काँग्रेस के लोगों से निपटते थे | परंतु आजादी की लड़ाई से "”दूर "” रहने वाले स्वयंसेवकों को और सफेद वस्त्रधारी साधुओ को पुलिस के हथकंडों का अनुभव नहीं था ! इसलिए गौ रक्षा आंदोलन के इन कार्यकर्ताओ ने राजनीतिक सहयोगीयो की मदद से नेहरू सरकार को "”हिन्दू विरोधी "” और मलेकछ बताया था | आज वही जनसंघ और संघ की विरासत को आगे ले जाने वाली सरकार किसानों की मांग को दबाने केव लिए और वकीलों के विरोध को देखते हुए ----आंदोलन को दबाने के लिए "”कानून "” का सहारा ले रही हैं |

लेकिन मोदी सरकार के दोनों ही प्रयास बैक फायर कर गए |

गौर तलब हैं की 2020 में मोदी सरकार किसानों के हित के नाम पर तीन विधेयक

kraashi उपज व्यापार वाणिज्य विधेयक और क्रशक कीमत आश्वासन कर्षी व्यापार करार तथा आवश्यक वस्तु संशोधन बिल यह कह कर मोदी सरकार लाई थी की इन कानूनों द्वरा किसान की उपज का "”अच्छा मूल्य "” मिलेगा ! परंतु वास्तव यह विधेयक उद्योगपति अदानी की स्कीम मे ही मदद कर रहे थे | सरकार की मंशा को भाँपते हुए पंजाब और हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने "” दिल्ली चलो का नारा दिया | इस आवाहन पर हजारों ट्रकतोर जी टी रोड पर निकाल पड़े ---जिनका मकसद दिल्ली संसद भवन को घेरना था | परंतु सरकार अपने प्रयासों को किसानों के हिट मे बताती रही | परंतु किसान कानूनों को वापस लेने की मांग पर आड़े रहे |और किसान आंदोलन एक साल तक चला ! एक अनुमान के अनुसार 605 आंदोलनकारी किसानों की दिल्ली बार्डर पर मौत हुई | हालांकि "” संवेदनशील बताने वाली सरकार "” को ना ना तो मरने वाले किसानों की संख्या ज्ञात थी और इतनी संवेदना भी नहीं थी की लोकसभा में विपक्ष के संवेदना प्रस्ताव को विचार के लिए मंजूर करते | हालांकि एक साल तक सड़कों को खोदकर खाइनयां खोद कर और लोहे छड़े को सड़कों पर सीमेंट पर लगाने का काम मोदी सरकार के समय ही हुआ !! वैसे यह नरेंद्र मोदी सरकार की सार्वजनिक रूप से पहली "” खंदकी हार थी "” और किसानों की चमकती हुई विजय थी |

मोदी सरकार में "”सहनशक्ति "” का पूरी तरह से अभाव हैं | इसका उदाहरण हाल ही लाए गए एडवोकेट ऐक्ट 1961 मे संशोधन बिल को जनता की रॉय जानने के लिए सार्वजनिक डोमेन मे दल गया | संघ और सरकार समझते थे की सत्ता और अंधभक्तों की सहायता से वकीलों पर भी नियंत्रण कर लेंगे | विरोधी दल और सुप्रीम कोर्ट की बार काउंसिल के वरिस्थ सदस्य सरकार के कानूनों की "”वास्तविकता और सत्ता की मंशा "” को सार्वजनिक रूप से उजागर करते रहे हैं | जिससे सार्वजनिक रूप से सरकार की काफी "”किरकिरी" होती रहती हैं | सत्ता के भक्तों ने शीर्ष नेत्रत्व को वकीलों पर लगाम कसने की सलाह दी जिसका समर्थन "” प्रधान मंत्री के अंध भक्तों ने सोशल मीडिया पर किया | परंतु जब उत्तर प्रदेश और बीजेपी शासित राज्यों से भी सरकार की संशोधन की पहल का जोरदार विरोध हुआ तब सत्ता के कंगूरे पर बैठे लोगों को बताया गया की काफी विरोध है जो --- अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के बेतुके प्रशासनिक कदमों की भांति भर्त्सना की जा रही हैं | तब मोदी सरकार ने दूसरी बार "”अपने आगे उठे कदम को वापस लिया "” और केंद्र सरकार ने सार्वजनिक रूप से संशोधन वापस लिए जाने का ऐलान किया |यह शक्तिशाली प्रधान की सार्वजनिक पराजय थी |

Feb 25, 2025

 

लोकतंत्र बनाम जिम्मेदार सरकार ---भारतीय नागरिक


प्रयागराज में "”महा कुम्भ "” मे हुई अव्यवस्था और भगदड़ पर सोशल मीडिया पर "” एक भक्त"” ने पोस्ट लिखा की " सरकार के बेहतरीन इंतजाम के बावजूद ट्रेनों में तोडफोड और जगह -जगह गंदगी को देखते हुए , लगता हैं भारत के नागरिक "”लोकतंत्र "” के लिए तैयार नहीं हैं ! अब इन सज्जन को क्या कहे की आज के भारत को जिस प्रकार का राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचा मिल हैं --वह हमारे पूर्वजों की "देन " नहीं हैं बल्कि ब्रिटिश या अंग्रेजों की विरासत हैं | कुछ अति उत्साही मौजूदा लोकतंत्र को सम्राट अशोक के "”नगर गणतंत्र" की विरासत मानेंगे ! वे पूरी तरह गलत नहीं हैं , परंतु सही भी नहीं हैं |

ईस्ट इंडिया कंपनी द्वरा देशी रियासतों को परास्त करने के बाद शोषण और अत्याचार की परिणिती ही 1857 का विद्रोह का जनक था | जिसके बाद ब्रिटिश शासक ने भारत की प्रशासनिक और राजनीतिक बागडोर अपने हाथों मे ले ली | 1858 में विक्टोरिया चार्टर द्वरा भारत के उन प्रांतों को जन्हा कंपनी बहादुर सीधे लगान वसूलती थी और उन रियासतों का प्रबंध सीधे ब्रिटिश संसद के माध्यम से महारानी की सरकार ने अपने हाथों में ले लिया | 1861 में भारत में ब्रिटेन की सरकार की ओर से भारत के लिए वायासरॉय की नियुक्ति की गई जिसकी मदद के लिए पाँच सदस्यीय कौंसिल बनाई गई , जो महारानी के मंत्रिमंडल के , भारत के सचिव के अधीन थी | एक जिम्मेदार शासन व्यवस्था के लिए "”भारतीय सिविल सेवा "” का गठन किया गया | जो आज के मौजूदा आईएएस के पुरखे थे | वायसरॉय की मदद के लिए पाँच सदस्यीय काउंसिल का गठन हुआ --जो गृह -सेना --कानून --वित्त और राजस्व मामलों के लिए जिम्मेदार थी | इसमे वैसे तो अंग्रेज ही सदस्य होते थे परंतु भारतीयों के लिए भी एक जगह थी |

1905 में ब्रिटिश संसद ने भारत के लिए एक "”जनोन्मुखी "’ प्रशासन देने की पहल करते हुए 1909 में सीमित मताधिकार द्वरा धर्म आधारित निर्वाचन छेत्र बनाए | जिनको वायासरॉय को सलाह देने के लिए एक काउंसिल के लिए चुना जाता था | इसमे हिन्दू और मुसलमान लोगों के लिए अलग -अलग निर्वाचन छेत्र थे | 1919 में सिखों के लिए भी प्रथक निर्वाचन छेत्र गठित किए गये | ऐसा भारत के आम लोगों में ब्रिटिश शासन के प्रति सद भावना उत्पन्न करने का प्रयास था | एक विदेशी कौम द्वरा भारत को प्रशासनिक ढांचे मे बांधने का शायद यह प्रथम प्रयास था | 1919 के अधिनियम द्वरा केंद्र में दो सदन का गठन किया गया | जिसमे तत्कालीन "” नरेंद्र मण्डल "” यानि की खुद मुख्तार देशी राजाओ की ओर से प्रतिनिधि नामित होते थे | दूसरे सदन में नरेश मण्डल अर्थात बड़े -बड़े महराज बहादुर और राजा बहादुर , जो की वास्तव में इलाकों से किसानों से मालगुजारी --लगान वसूलते थे | ब्रिटिश शासित इलाकों में दो प्रथा थी | एक में इलाके की पैदावार के हिसाब से सरकार नियात राशि का भू राजस्व तय करती थी | फिर उसको वसूलने का अधिकार किसी देशी सेठ साहूकार या जमींदार को मिलता था | जिसकी जिम्मेदारी उस राजस्व को खजाने में पहुचने की थी | कुछ इलाकों में जन्हा अंग्रेज भी जमीन लेकर फसल उगाते थे , वन्हा किसानों को जमीन के रकबे के हिसाब से मालगुजारी नियत की जाती थी | इस प्रथा में किसान सीधे खजाने मे लगान जमा करता था | अवध में दोनों प्रथा थी | चूंकि उस समय शासन का मुख्य ये का श्रोत लगान या मालगुजारी ही हुआ करता था ------इसलिए जिलों मे सर्वोच अधिकारी को "”कलेक्टर '’ नाम दिया गया | जीसे आज हम डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कहते हैं | जिम्मेदार प्रशासन की दिशा में यह पहला कदम था -----जिसमे कोई भी नागरिक अपनी शिकायत कलेक्टर साहब से सीधे कर सकता था , जो उसकी जांच करता था | आज तो आम आदमी सिर्फ मुख्य मंत्री या प्रधान मंत्री से ही शिकायत कर सकता हैं | हालांकि कलेक्टर साहेबान भी जन सुनवाई करते तो हैं | यह भी ब्रिटिश सीस्टम से ही आया हैं |



Feb 18, 2025

 

यादों के झरोखे से :-

हम पहले बता चुके हैं की आजादी के बाद किस तरह देश में उद्योग और खेती के विकास के लिए आवश्यक पूंजी का अभाव था| कुछ लोग इस देश में हैं जो इतिहास के पन्नों में विभिन्न राजाओ के काल को स्वर्णिम बताया कर --- वर्तमान की तुलना करते हैं ! अब उनका सारा ज्ञान इतिहास की किताबों का हैं | जब उनके तर्क को समर्थन के लिए इतिहास में तथ्य मिल जाते हैं ,तब गाने लगते हैं "””जनहा जनहा डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा वो भारत देश हैं मेरा "” | अब चंद बरदाई के "” चार बां स चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ,तय ऊपर सुल्तान हैं मत चुकयो चौहान "” अब जिस तिथि और स्थान मे मुहम्मद गोरी को मारे जाने का प्रथविराज रासो मे जिक्र है वह इतिहास की तारीखों से नहीं मेल खाता हैं ! अब जन प्रचलित "”आल्हा "” में जिस आल्हा और उदल का जिक्र हैं --- उनकी लड़ाइयों का इतिहास में जिक्र नहीं मिलता हैं | लेकिन गावों में तो वे नौजवानों के आइडियल हैं | लेकिन वे इतिहास के पन्नों में नहीं हैं | अब काल्पनिक नायकों से इतिहास की हकीकत नहीं हुआ करती | कुछ ऐसे ही वे नव रईस थे जो नेहरू द्वरा मूल उद्योगों को सार्वजनिक छेत्र में रखे जाने से असहमत थे | उनसे पूछ लिया की स्टील - खनिज और पानी तथा हवाई जहाज के निर्माण के लिए पूंजी कान्हा से लाते ? उन्होंने कहा देश के उद्योगपति लगा सकते थे ! अब उन्हे कौन बताए की 1960 और 2020 मे बहुत अंतर हैं | तब टेक्सटाइल मिले बॉम्बे -कानपुर और कलकत्ता तथा कोयंबटूर मे ही थी | स्टील का बस एक कारखाना टाटा का जमशेदपुर मे था | रेलवे के एंजिन बनाए का कारखाना चितरंजन मे ही था | तब ट्रेन गिनी चुनी हुआ करती थी , पर दुर्घटनहीं ही होती थी | पंडित नेहरू के समय में एक रेल दुर्घटना हुई जिसमे जन -धन की हानि हुई थी , तब सरकार में सत्ता जिम्मेदारी निभाती थी | तब लाल बहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे , उन्होंने नेहरू के मना करने के बावजूद मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया | अब तो रोज दुर्घटनाए होती हैं , और मंत्री को तो छोड़ो किसी अधिकारी का भी इस्तीफा नहीं होता | खैर बात छठे दशक ( 1960) की कर रहे थे तब सोना भी ढाई सौ से तीन सौ रुपये हुआ करता था | लेकिन सरकार के पास इतना पैसा नहीं था की वह स्टील और बिजली के बड़े कारखाने लगाए | तब पहला स्टील कारखाना आज के भिलाई में रूस की मदद से और बंगाल में दुर्गापुर ब्रिटेन की सहायता से तथा राऊरकेला कारखाना अमेरिका की सहायता से बना | यह तत्कालीन सरकार के नेत्रतव की दूरदर्शिता थी की आज खनिज तेल और बड़े -बड़े उद्योगों के छेत्र मे देशी सेठ कारखाने लगा रहे हैं | परंतु सार्वजनिक छेत्र की पूंजी तब सुलभ हुई जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने बैंक का राष्ट्रीयकरण किया | तब सरकार को भी सार्वजनिक छेत्र में हिंदुस्तान ऐरीनौटिक्स और इंडियन ऑइल जैसे नवरतन उद्योग लगे | आगे फिर कुछ ........

Feb 17, 2025

 

यादों के झरोखे से :-

देश को आजादी मिले हुए अभी दस वर्ष भी नहीं हुए थे , और हम अपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को खो चुके थे | परंतु अब हम बर्तनिया हुकूमत के अंदर कोई डोमिनियन स्टेट नहीं थे वरन एक सार्वभौम राष्ट्र थे | बहुत से लोगों के मन यह शंका होगी की क्या फरक होता हैं ----इन दोनों स्थितियों में ? तो समझे की कनाडा और आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड बारतनिया यानि की ब्रिटिश सिंहासन के औपचारिक अधीनता मंजूर करते हैं | इसका अर्थ यह हुआ की इनके गवर्नर जनरल की औपचारिक नियुक्ति बकिंघम पैलेस से घोषित होती है | वीज़े ये सभी राष्ट्र भी गणराजय है -----अर्थात देश के सर्वोच्च पद पर कोई भी नागरिक आसीन हो सकता हैं | यद्यपि ये देश भी "”राष्ट्रकुल "” यानि कामनवेल्थ के सदस्य हैं | परंतु भारत के राष्ट्रपति का चुनाव हम अपने "”संविधान "” के अंतर्गत करते हैं |

यह तो थी कानूनी बारीकी , अब आइए लौटकर बीसवी सदी के छठे दशक मे चलते हैं | बड़े -बड़े बांधों ने देश के किसानों को जरूरत भर का सिंचाई का जल सुलभ कर दिया था | कुछ छोटे -मोटे कारखाने भी अब शुरू हो रहे थे | पटसन उद्योग अब गाव गाव मे रस्सी बनाए के साथ नारियल के पेड़ों से निकली मुंज की रस्सी भी नौकायन उद्योग के काम आने लगी थी | अब देश की विकास की भूख बड़ रही थी | विकसित राष्ट्र बनने के लिए स्टील और बिजली बहुत जरूरी थे | जिनके लिए प्रशिक्षित लोग और , कल - कारखाने के लिए अनवरत बिजली की जरूरत थी | परंतु उस समय ब्रिटेन --- अमेरिका आदि स्टील के कारखाने और बिजली घर देने को राजी नहीं थे | ऐसे मे पंडित नेहरू की "”” गुट निरपेक्ष "” और पंचशील ही काम आए | सोवियत रूस ने आगे आकार नव स्वतंत्रता पाए भारत की ओर "”दोस्ती का हाथ आगे किया "” और इस प्रकार भारत को पहला स्टील प्लानट "” भिलाई "” मिला | अब स्टील के को बनाने मे बिजली की खपत बहुत ज्यादा होती है , इसलिए बिजली का एक छोटा प्लांट भी भी आया | परंतु देश को ताप बिजली यानि थर्मल विद्युत की जरूरत हुई | पनबिजली का उत्पादन बारह मास और चौबीस घंटे नहीं हो सकता हैं | परंतु स्टील के उत्पादन के लिए लगातार और अधिक बिजली जरूरत होती है | इसके लिए सोवियत रूस ने ओबरा और पत्र टूर मे तापबिजली घर प्लांट डालर के विनिमय पर नहीं वरन , रुपये के विनिमय के तहत दिया | इसका अर्थ यह था की भारत सोवियुत रूस को जो सामान बेचेगा उसका मूल्य रुपये मे दिया जाएगा | जिससे रूस अपने कर्ज की भर पाई करेगा | जब दुनिया मे राष्ट्रों के बीच व्यापार ब्रिटिश पाउंड या अमेरिकी डालर मे हो रहा था ------तब भारत ऐसे नव स्वतंत्रता पाए भारत को यह सुविधा बहूत्त बड़ा वरदान साबित हुआ | आगे फिर कभी


Feb 15, 2025

 

""उप महामहिम"” - पारदर्शिता और सत्य के लिए प्रधान न्यायधीश चयन समिति में बैठते हैं !


उप राष्ट्रपति धनखड़ जी ने भोपाल मे राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी मे सम्बोधन करते हुए "”आश्चर्य व्यक्त किया "” की कार्यपालिका की नियुक्ति के संबंध में न्यायपालिका को कैसे हम "”शामिल "” कर सकते हैं | उनके तर्क के अनुसार लोकतंत्र में राष्ट्र के तीनों निकायों मे शक्ति के विभाजन के अनुसार सीबीआई के डायरेक्टर के चयन मे प्रधान न्यायधीश का क्या काम !! उनके अनुसार कार्यपालिका {सरकार } के कार्य सम्पादन में किसी भी प्रकार का "”हस्तकछेप "” चाहे वह विधायिका से हो अथवा न्यायपालिका से हो --- संविधान तथा लोकतंत्र के उसूलों के विरुद्ध हैं | धनखड़ जी खुद अदालतों मे वकालत कर चुके हैं | हालांकि वे सफल वकील नहीं रहे | उन्होंने कहा की संविधान में संशोधन "”केवल संसद का अधिकार हैं "”! एक अनजाने महा न्याय वादी की किताब कॉ उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा "”मेरी समझ से तो संविधान के मूलभूत सिद्धांतों पर बहस की जरूरत हैं "”|

जगदीप धनखड़ जी संवैधानिक पद के नंबर दोयम पर आसीन हैं | परंतु वे उच्च सदन के सभापति भी हैं | अब वे सांविधानिक --रूप से नंबर दो पर होने के बाद राष्टीय विधायिका के "”सभापति "” भी हैं ! मेरी तुच्छ बुद्धि के अनुसार यदि सांविधानिक पद पर हैं तब ,उन्हे विधायिका और उससे जन्मे व्ययस्थापिक से बिल्कुल समान दूरी बना कर रखनी चाहिए | राज्यसभा मे बैठक का संचालन करते हुए उनके व्यवहार और फैसलों को समझा जा सकता है की "””वे कितने न्याय प्रिय हैं '” विपक्ष के सांसदों ने अनेकानेक बार उन पार "” न्याय नहीं नहीं करने "”का आरोप लगाया हैं "|


सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट से बार -बार यह सुनना पड़ा था की "”वह सरकारी तोता है "” | जिसका इशारा था की सीबीआई की जांच सरकार के समर्थन में ही होती हैं | वह "”न्याय"” पूर्ण नहीं होती हैं !! क्यूंकी अधिकतर सरकार अपने किसी "”स्वामिभक्त " अफसर को इस पद पर नियुक्त करती थी | सुप्रीम कोर्ट की फटकार से "” केंद्र सरकार "” ने सीबीआई मुखिया की नियुक्ति में सर्वोच्च अदालत के प्रधान को भी शामिल किया | जिसका अर्थ यह था की कम से कम अब सीबीआई को ""पिंजरे का तोता "” सुप्रीम कोर्ट नहीं कह सकेगी |

लेकिन मोदी सरकार के समय जिस प्रकार "”जांच एजेंसियों "” ने सत्ता विरोधियों को "”निशाना "” बनाने का काम किया है , उसके बाद ही सत्तारूद दल को "वाशिंग मशीन "” की उपाधि मिल गई है | अब सरकार सीबीआई से ज्यादा इ डी की जांच को प्रमुखता से अवसर दे रही हैं | मोदी सरकार के "”काल "” मे यह मुहावरा बन गया हैं की अगर आप गैर भाजपाई है तो आपको धरमराज बन के रहना होगा | वरना आप एंडी टीवी कर प्रणव रॉय और राधिका रॉय की भांति बेगुनाह होते हुए भी -- “”सरकारी "” जांच एजेंसी इतना परेशान करेगी की आप को देश छोड़ना पड़ेगा | यह बात और है की आठ माह बाद वही जांच एजेंसी -- अदालत मे बयान देती है की की रॉय दंपति के विरुद्ध कोई कोई अपराध किया जाना नहीं पाया गया !!! कुछ ऐसा ही झूठ तू जी घोटाले के बारे में विनोद राय ने भी देश से बोल था | जिसको आरएसएस और बीजेपी ने प्रचारित कर के तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार को बदनाम किया | फलस्वरूप चुनावों मे काँग्रेस की पराजय हुई |

उप महामहिम जी को यह समझना होगा की सरकार बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण लोकतंत्र को कायम रखना हैं , और उसके लिए सत्ता रुड पार्टी के "”अनीतिक " और अवैध फैसलों को रोकने -- टोकने वाला अफसर चाहिए | ना की कार सेवको पर गोली चलवाने वाला मुख्य सचिव जो बाद में अयोध्या के राम मंदिर निर्माण का जिम्मा निभा रहा हैं | इन्ही कारणों से जांच एजेंसियों के मुखिया की रीड़ इतनी मजबूत होनी चाहिए की वह प्रधान मंत्री को भी गलत काम के लिए ना कह सके |

Feb 11, 2025

मोदी की अमेरिका यात्रा से पूर्व कूकी की बलि चड़े विरेन सिंह !

 

,मोदी की अमेरिका यात्रा से पूर्व कूकी की बलि चड़े विरेन सिंह !

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के पूर्व जिस अप्रत्याशित रूप से मणिपुर के मुख्य मंत्री विरेन सिंह से इस्तीफा लिया गया ,वह चौंका देने वाला वाकया था | दस महीने से ज्यादा समय से जातीय हीनशा में झुलस रहे मणिपुर में नेत्रत्व परिवर्तन की मांग काफी समय से की जा रही थी | परंतू मोदी - शाह की राजनीति में मंत्री की "”असफलता "” को कभी इस्तीफा देने का कारण नहीं मन गया ! फिर क्या हुआ की मणिपुर के मुख्य मंत्री से बीजेपी हाई कमान ने अचानक इस्तीफा ले लिया ? बताया जा रहा है की सत्तारूद बीजेपी के विधायकों ने मुख्य मंत्री के विरुद्ध "”अचानक "” अविश्वास व्यक्त किया ! कहा जाता है की सतरुद दल के 30 विधायकों ने दिल्ली में कहा था की अगर विरेन सिंह को नहीं हटे जाता तब वे अगले विधान सभा सत्र में काँग्रेस के "”अविश्वास प्रस्ताव "” का समर्थन करेंगे ! विधायकों के रुख को देखते हुए नेता द्वय ने विरेन सिंह को इस्तीफा देने को कहा !

परंतु अंदर की खबर हैं की प्रधान मंत्री अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की नाराजगी नहीं मोल लेना चाहते थे |इसी लिए उन्होंने "”ईसाई कूकियों "” के ऊपर हुए अत्याचार की खबरों को खतम करने की नजर से विरन सिंह को हटा दिया | उनके इस्तीफे की मांग कूकी आदिवासी समुदाय 3 मई 2023 से कर रहा ,जब उनके मार्च पर मतेई समुदाय के लोगों द्वारा हमला किया गया | कूकी लोग मतेई समुदाय को आदिवासी का आरक्षण दिए जाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे |

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प धरम के मामले में अत्यधिक संवेदनशील है | उन्होंने व्हाइट हौसए में एक " feth ऑफिस खोले जाने का आदेश दिया हैं | जिसकी प्रमुख एवंगलिस्ट पौला व्हाइट हैं | अब इसी एक निर्णय से समझा जा सकता है की ट्रम्प अपने धरम को लेकर कितने संवेदनशील है , जबकि अभी तक हुए सभी राष्ट्रपति धरम को नितांत निजी मसला मानते रहे हैं | ट्रम्प द्वरा भारत के अवैध आप्रवासियों को जिस तरीके से हथकड़ी और बेदी लगा कर स्वदेश भेजा , उससे भी भारतवासी नाखुश हैं |

परंतु नरेंद्र मोदी जी को ट्रम्प की प्रसन्नता मोल लेने के लिए विरेन सिंह की कुर्बानी देनी पड़ी | इसलिए यह समझना की मणिपुर में 20 माह से हो रही अशान्ति और जातीय झगड़े के कारण सत्तारूद दल ने अपने "”मोहरे की कुर्बानी दी है "” गलत होगा |

गौर तलब है की मणिपुर मे कूकी आदिवासी , ना केवल अल्प संख्यक है वरन वे ईसाई धर्मावलम्बी है | जबकि मतेई सनातनी है | माना जाता हैं की दिल्ली की सरकार के नेताओ की "”हिन्दू राष्ट्र "” के समर्थन की नीति के कारण ही 21 महीने तक राज्य में हीनक्ष का तांडव होता रहा , और प्रारंभ में गृह मंत्री अमित शाह का दौरा हुआ था | उसके बाद सत्तारूद दल ने "”दंगा ग्रस्त मणिपुर "” को अपने हाल पर छोड़ दिया | काँग्रेस नेता राहुल गांधी दो दिन के दौरे पर वनहा गए थे और उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी से आग्रह किया था की वे मणिपुर जाए और वनहा शांति स्थापना का प्रयास करे |

परंतु चुनावी सफलता के मद में चूर दिल्ली सरकार को "”राजनीति"” ज्यादा पसंद थी शांति व्यवस्था की परवाह कम थी | इसी दौरान सैकड़ों लोगों की हत्या और बलात्कार तथा आगजनी की घटनाए हुई | कहा जाता है की ईसाई समुदाय के चर्चों को भी आग के हवाले किया गए |

राष्ट्रपति ट्रम्प का ईसाई धरम से लगाव इसी बात से आँका जा सकता हैं की उन्होंने इतिहास मे पहली बार व्हाइट हाउस मे "”आस्था"” अथवा फैथ का कार्यालय खोला है | जिसकी प्रमुख एवंगुआलिस्ट पौला व्हाइट है | अब सहज ही समझ जा सकता है की ट्रम्प का ईसाई धर्म के प्रति कितना लगाव हैं | ट्रम्प ने एटार्नी जनरल पाम बोनडी को आदेश दिया हैं की वे एक कार्यदल का गठन करे जो अमेरिका में"” ईसाइयों के शोषण "”को रोकने का प्रयास करे | अब इन हालातों में विरेन सिंह का जाना तो निश्चित था | क्यूंकी ईसाई कुकी आदिवासीयो के प्रति हुए अत्याचार की कहानी वणः तक पहुँच गई होगी |

 

,मोदी की अमेरिका यात्रा से पूर्व कूकी की बलि चड़े विरेन सिंह !



प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के पूर्व जिस अप्रत्याशित रूप से मणिपुर के मुख्य मंत्री विरेन सिंह से इस्तीफा लिया गया ,वह चौंका देने वाला वाकया था | दस महीने से ज्यादा समय से जातीय हीनशा में झुलस रहे मणिपुर में नेत्रत्व परिवर्तन की मांग काफी समय से की जा रही थी | परंतू मोदी - शाह की राजनीति में मंत्री की "”असफलता "” को कभी इस्तीफा देने का कारण नहीं मन गया ! फिर क्या हुआ की मणिपुर के मुख्य मंत्री से बीजेपी हाई कमान ने अचानक इस्तीफा ले लिया ? बताया जा रहा है की सत्तारूद बीजेपी के विधायकों ने मुख्य मंत्री के विरुद्ध "”अचानक "” अविश्वास व्यक्त किया ! कहा जाता है की सतरुद दल के 30 विधायकों ने दिल्ली में कहा था की अगर विरेन सिंह को नहीं हटे जाता तब वे अगले विधान सभा सत्र में काँग्रेस के "”अविश्वास प्रस्ताव "” का समर्थन करेंगे ! विधायकों के रुख को देखते हुए नेता द्वय ने विरेन सिंह को इस्तीफा देने को कहा !

परंतु अंदर की खबर हैं की प्रधान मंत्री अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की नाराजगी नहीं मोल लेना चाहते थे |इसी लिए उन्होंने "”ईसाई कूकियों "” के ऊपर हुए अत्याचार की खबरों को खतम करने की नजर से विरन सिंह को हटा दिया | उनके इस्तीफे की मांग कूकी आदिवासी समुदाय 3 मई 2023 से कर रहा ,जब उनके मार्च पर मतेई समुदाय के लोगों द्वारा हमला किया गया | कूकी लोग मतेई समुदाय को आदिवासी का आरक्षण दिए जाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे |

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प धरम के मामले में अत्यधिक संवेदनशील है | उन्होंने व्हाइट हौसए में एक " feth ऑफिस खोले जाने का आदेश दिया हैं | जिसकी प्रमुख एवंगलिस्ट पौला व्हाइट हैं | अब इसी एक निर्णय से समझा जा सकता है की ट्रम्प अपने धरम को लेकर कितने संवेदनशील है , जबकि अभी तक हुए सभी राष्ट्रपति धरम को नितांत निजी मसला मानते रहे हैं | ट्रम्प द्वरा भारत के अवैध आप्रवासियों को जिस तरीके से हथकड़ी और बेदी लगा कर स्वदेश भेजा , उससे भी भारतवासी नाखुश हैं |


परंतु नरेंद्र मोदी जी को ट्रम्प की प्रसन्नता मोल लेने के लिए विरेन सिंह की कुर्बानी देनी पड़ी | इसलिए यह समझना की मणिपुर में 20 माह से हो रही अशान्ति और जातीय झगड़े के कारण सत्तारूद दल ने अपने "”मोहरे की कुर्बानी दी है "” गलत होगा |







गौर तलब है की मणिपुर मे कूकी आदिवासी , ना केवल अल्प संख्यक है वरन वे ईसाई धर्मावलम्बी है | जबकि मतेई सनातनी है | माना जाता हैं की दिल्ली की सरकार के नेताओ की "”हिन्दू राष्ट्र "” के समर्थन की नीति के कारण ही 21 महीने तक राज्य में हीनक्ष का तांडव होता रहा , और प्रारंभ में गृह मंत्री अमित शाह का दौरा हुआ था | उसके बाद सत्तारूद दल ने "”दंगा ग्रस्त मणिपुर "” को अपने हाल पर छोड़ दिया | काँग्रेस नेता राहुल गांधी दो दिन के दौरे पर वनहा गए थे और उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी से आग्रह किया था की वे मणिपुर जाए और वनहा शांति स्थापना का प्रयास करे |


परंतु चुनावी सफलता के मद में चूर दिल्ली सरकार को "”राजनीति"” ज्यादा पसंद थी शांति व्यवस्था की परवाह कम थी | इसी दौरान सैकड़ों लोगों की हत्या और बलात्कार तथा आगजनी की घटनाए हुई | कहा जाता है की ईसाई समुदाय के चर्चों को भी आग के हवाले किया गए |

Feb 5, 2025

 

शाही स्नान --बंदिशों और आस्था का पाखंड !

संगम में प्रधान मंत्री के संग भूटान नरेश का स्नान


प्रयागराज के संगम मे कुम्भ के अवसर को राजनीतिक रूप से भुनाने के चक्कर में सत्ता के वादे और धार्मिक आस्था का मखौल उड़ाने के लिए पहले योगी आदित्यनाथ ने चार तारीख को और पाँच फरवरी को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के संग भूटान नरेश का दुबारा संगम में डुबकी लगाने का योग हकीकत मे जान्ह , वीआईपी लोगों को कुम्भ में आने से रोकने का मुख्यमंत्री का बयान पाखंड ही सिद्ध हुआ ! सबसे आश्चर्यजनक बात थी की भूटान नरेश जिंगमे खेसर नामांगयाल वांगचुक का कुम्भ मे स्नान --- कारण है की भूटान का राजधर्म बौद्ध है , जो की मूर्ति पूजा का और सनातनी कर्मकांड का विरोधी है | बौद्ध जन सनतानियों के ऐसे आयोजन मे शामिल नहीं होते | परंतु कुम्भ मे हुई "”भगदड़ "” में मारे गए सैकड़ों लोग और लापता तीर्थ यात्रियों के घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी को अपनी "”साख "” बचाने के लिए बड़े - बड़े नामों को कुम्भ में पहुचने की जरूरत पड़ी ! अब कोई साधु या सन्यासी अथवा मठाधीश ऐसा नहीं बच जो विवादित नया हो गया हो - एक ओर शंकराचार्य है तो दूसरी ओर मठों और संप्रदायों के साधु है | जिनकी जाती या वर्ग विशेष मे ही पँहुच -परख हैं | ऐसे में बीजेपी के थिंक टंक ने ऐसे व्यक्ति को लाने की सलाह दी जो विवादित नया हो और जिसकी ईमानदारी पर भी आम लोगों को विश्वास हो ! इसी कारण भूटान नरेश का चयन किया गया | परंतु वे भूल गये की बौद्ध भी जैन धरम की भांति मूर्ति पूजा के विरोधी है और सनातनी कर्मकांडों को तो वे ब्राम्हनों का बने हुआ कायदा बताते हैं | जो काफी हद तक सही भी हैं | परंतु सत्ता के मद मे चूर बीजेपी का सत्ता शीर्ष ने कूटनीतिक संबंधों को भी भुनाने से भी गुरेज नहीं किया |

कुम्भ के भगदड़ मे हुई मौतों को लेकर अभी तक उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी बचत के लिए तीन सदस्यीय जांच आयोग बनाया हैं | हमारा अनुभव बताता है की ऐसे आयोगों की सिफ़ारिसे हमेशा ही ठंडे बस्ते मे डाल दी जाती हैं | ना तो उनकी सिफारिशों पर ध्यान दिया जाता है और नया ही उनकी सलाह पर कोई कारवाई होती हैं | पिछला इतिहास इस तथ्य की गवाही हैं | विगत मे अनेकों भगदड़ की घटनाए हुई , जिनमे सैकड़ों लोगों की जान गई हैं | पर राज्य सरकारों ने इंत जाम कर्ताओ को "””कभी भी "” दंडित नहीं किया |

अब इन हालत में आम आदमी को भी इन जाँचों पर कोई भरोसा नहीं हैं | हालत यह है की जिन परिवारों के लोग कुम्भ स्नान के संगम आए थे वे लोग अब उन्हे खोजते हुए संगम एरिया मे पहुँच रहे हैं | उन्हे नया तो मारे गए लोगों की फ़ोटो दिखाई जा राही है और नया ही वे कोई संतोसजनक उत्तर दे रहे हैं | कुम्भ प्राधिकरण के अफसर भी उतने ही लोगों के नाम और फ़ोटो दिखा रहे जिनकी घोसना योगी आदित्यनाथ ने टीवी के सामने की थी ! अब ऐसे में लोग अपने सगे - संबंधियों के बारे मे जानकारी चाह रहे है --- मीडिया के कैमरे के सामने रोते बिलखते हुए परिजनों का सवाल यही है की "””आखिर हमारे परिजन ,आए तो थे संगम स्नान के लिए परंतु अब वे गायब हैं ?”” इसका जवाब योगी सरकार नहीं देना चाहती है | क्यूंकी अगर सरकार यह स्वीकार कर ले की भगदड़ की घटना एक नहीं हुई थी वर्ण टीनसे चार जगह हुई थी | जैसा की मीडिया का एक वर्ग दावा कर रहा हैं |