यादों के झरोखे से :-
देश को आजादी मिले हुए अभी दस वर्ष भी नहीं हुए थे , और हम अपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को खो चुके थे | परंतु अब हम बर्तनिया हुकूमत के अंदर कोई डोमिनियन स्टेट नहीं थे वरन एक सार्वभौम राष्ट्र थे | बहुत से लोगों के मन यह शंका होगी की क्या फरक होता हैं ----इन दोनों स्थितियों में ? तो समझे की कनाडा और आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड बारतनिया यानि की ब्रिटिश सिंहासन के औपचारिक अधीनता मंजूर करते हैं | इसका अर्थ यह हुआ की इनके गवर्नर जनरल की औपचारिक नियुक्ति बकिंघम पैलेस से घोषित होती है | वीज़े ये सभी राष्ट्र भी गणराजय है -----अर्थात देश के सर्वोच्च पद पर कोई भी नागरिक आसीन हो सकता हैं | यद्यपि ये देश भी "”राष्ट्रकुल "” यानि कामनवेल्थ के सदस्य हैं | परंतु भारत के राष्ट्रपति का चुनाव हम अपने "”संविधान "” के अंतर्गत करते हैं |
यह तो थी कानूनी बारीकी , अब आइए लौटकर बीसवी सदी के छठे दशक मे चलते हैं | बड़े -बड़े बांधों ने देश के किसानों को जरूरत भर का सिंचाई का जल सुलभ कर दिया था | कुछ छोटे -मोटे कारखाने भी अब शुरू हो रहे थे | पटसन उद्योग अब गाव गाव मे रस्सी बनाए के साथ नारियल के पेड़ों से निकली मुंज की रस्सी भी नौकायन उद्योग के काम आने लगी थी | अब देश की विकास की भूख बड़ रही थी | विकसित राष्ट्र बनने के लिए स्टील और बिजली बहुत जरूरी थे | जिनके लिए प्रशिक्षित लोग और , कल - कारखाने के लिए अनवरत बिजली की जरूरत थी | परंतु उस समय ब्रिटेन --- अमेरिका आदि स्टील के कारखाने और बिजली घर देने को राजी नहीं थे | ऐसे मे पंडित नेहरू की "”” गुट निरपेक्ष "” और पंचशील ही काम आए | सोवियत रूस ने आगे आकार नव स्वतंत्रता पाए भारत की ओर "”दोस्ती का हाथ आगे किया "” और इस प्रकार भारत को पहला स्टील प्लानट "” भिलाई "” मिला | अब स्टील के को बनाने मे बिजली की खपत बहुत ज्यादा होती है , इसलिए बिजली का एक छोटा प्लांट भी भी आया | परंतु देश को ताप बिजली यानि थर्मल विद्युत की जरूरत हुई | पनबिजली का उत्पादन बारह मास और चौबीस घंटे नहीं हो सकता हैं | परंतु स्टील के उत्पादन के लिए लगातार और अधिक बिजली जरूरत होती है | इसके लिए सोवियत रूस ने ओबरा और पत्र टूर मे तापबिजली घर प्लांट डालर के विनिमय पर नहीं वरन , रुपये के विनिमय के तहत दिया | इसका अर्थ यह था की भारत सोवियुत रूस को जो सामान बेचेगा उसका मूल्य रुपये मे दिया जाएगा | जिससे रूस अपने कर्ज की भर पाई करेगा | जब दुनिया मे राष्ट्रों के बीच व्यापार ब्रिटिश पाउंड या अमेरिकी डालर मे हो रहा था ------तब भारत ऐसे नव स्वतंत्रता पाए भारत को यह सुविधा बहूत्त बड़ा वरदान साबित हुआ | आगे फिर कभी
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