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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 29, 2025

 

औसविज नर संहार था -तब गाजा मे क्या हुआ ?


नाजी अत्यकहर के स्मारक के रूप में औसविज यंत्रणा शिविरों की 80 वी यादगार दिवस में ब्रिटेन के महाराज चार्ल्स और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुयल और रूस के हमले की मार सह रहे जेलेन्सकी की माउजूदगी ने यहूदियों पर हुए अत्याचार को तो स्मरण कराया ------परंतु इस्राइल द्वरा फिलिसतिन के गाजा छेत्र में अरबों के हुए नर संहार जिसमे 45000 लोगों की मौत हुई --उसे अनदेखा कर दिया | कम से कम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस बयान ने तो बर्बाद गाजा छेत्र को रियल स्टेट की भांति बताते हुए ट्रम्प ने उस इलाके का विकास पर्यटन के लिए किए जाने की बात कही ! दस लाख से ज्यादा एकतरफा युद्ध की विभीषका से बचे लोगों के दुखों पर नामक छिड़कने जैसा ही हैं | ट्रम्प का यह बयान की गाजा छेत्र के निवासियों को कांही और जा कर बसना चाहिए ! यह शब्द उस नेता के हैं जिसने बेहतर ज़िंदगी की खोज मे आए हजारों मेक्सिकन -कॉलम्बियान - पेरू अन्य देशों से आए आप्रवासियों को जबरन उनके देश वापस भेज दिया ! जिस नेता का लँगोटिया यार दुनिया का सबसे आमिर व्यक्ति एलेन मस्क ने जर्मनी के चांसलर के चुनावों मे शरणार्थियों को देश निकाला देने की मांग करने वाली राजनीतिक दल का खुला समर्थन करके नया केवल उस राष्ट्र के चुनावों मे "”विदेशी "” हस्तकचेप किया बल्कि लोकतंत्र के उदार चेहरे को दागदार भी किया |

इतना ही नहीं सालों से अफ्रीका के कांगो और सूडान में हो रहे कबीलों के झगड़ों मे अब तक की लाख लोगों की जान जा चुकी हैं | परंतु दुनिया के देश यूक्रेन और रूस के संघर्ष की ही बात करते हैं | लगता है की दुनिया मे एक बार फिर "””” गोरे लोगों

की ही जान को "”” महत्वपूर्ण माना जा रहा हैं | जैसे

की दास प्रथा के जमाने में होता हैं | ट्रम्प ने भी अपनी नीतियों को गोरे अमेरिकनों को केंद्र में रखा हैं | हालांकि दक्षिण अमेरिका के देशों से संयुक्त राज्य अमेरिका आए गोरे और पीले लोगों को दास प्रथा के समय की याद दिला रहा हैं |

मतलब दुनिया से अभी "” रंगभेद "” खतम नहीं हुआ है , बल्कि ट्रम्प जैसे लोग आबादी को विभाजित करने को ही उचित मानते हैं --क्यूंकी उस नीति से वोटों का ध्रुवी करन होता हैं जो चुनाव में फलीभूत होता हैं | लगभग दुनिया के सभी लोकतंत्र देशों मे { यूरोप } के कुछ देशों को छोड़कर जन्हा की सारकारे अपनी जनता के प्रति ईमानदार हैं |वनहा सत्ता का केन्द्रीकरण नहीं हैं | जैसा की बेलारूस मे तीस साल से चले आ रहे राष्ट्रपति लुकाशेंको को फिर "”चुन "” जैसा लिया ! हालांकि उनके चुनाव को निसपक्ष तो बिल्कुल ही नहीं कहा जा सकता | जैसा उनके दोस्त रूस के ब्लादिमीर पुतिन भी दशकों से सिंहासन पर बने हुए हैं |

इस्लाम माने वाले अरब और अफ्रीका के काले लोग संयुक्त राष्ट्र संघ और दुनिया के बड़े देशों की नजरों मे वैसी ही स्थिति मे है ----जैसी की भारत मे दलितों की हैं | की दलित की शादी करवाने के लिए पुलिस के 70 जवान पहरेदारी मे कगाए गए -क्यूंकी दूल्हा घोड़े पर बैठा था ---जो ऊंची जाति के लोगों को पसंद नहीं | वैसे ही अमेरिका के गोरे लोगों को दूसरे देश के इसी गोरे भी नहीं बर्दाश्त है ---क्यूंकी वे उनके क्लास के नहीं !इस्लाम मानने वाले देश भी भीफिलिस्टिन के अरब निवासियों की मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं | ट्रम्प ने जोर्डन और मिश्र से कहा था की वे दस -दस लाख फिलिस्टिनी शहरणरथियों को अपने यंहा बसाये | एक ओर अमेरिकी नेता अरब राष्ट्रों से गज के लोगों शरण देने की सलाह देता है ------दूसरी ओर खुद देश मे बसे हुए लोगों को सेना की सह्यता से निकाल रहा हो |यही पाखंड अब यूरोप की राजनीति का आधार बंता जा रहा है |

किस्सा कोताह यह की ---- हम करे तो रामलीला तुम करो तो करेक्टर ढीला |

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