राजदंड
अब --बिकाऊ
हो गया है !!
विचारो
और सिद्धांतों से शासन करने
का नाम ही राजनीति रहा है
परंतु
विगत वर्षो मे अब ---शासन
सूत्र प्रप्त करना ही राजनीति
का
मुकाम
बन गया है राजनीतिक दल और उनकी
सरकारे
अब
व्यापारिक हितो के लिए राज़
करती है
चुनाव
मे नए समीकरण बनते है – लोगो
से वोट और सेठो से नोट
लेकर
जन कल्याण के नाम पर योजनाए
बनती है और वादे और दावे
किए
जाते है --यह
सब राजनीतिक दलो की आदत सी बन
गयी है
राजनीतिक
सिधान्त अब भाषणो की फटी पैकिंग
मे लिपटे है
चेकोस्लोवाकिया
के
भावी प्रधान मंत्री आन्द्रे
बाबीज के राजनीतिक योगदान
को देखे तो --उसमे
सिर्फ व्यापार और उद्योग है
!
उन्होने
सार्वजनिक जीवन मे आम लोगो
के लिए किसी भी मुद्दे पर कोई
आंदोलन या कार्यक्रम नहीं
किया है |
कुछ
इसी प्रकार का इतिहास अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प
का भी है |
वे
भी राष्ट्रपति के चुनाव के
पूर्व तक सिर्फ और सिर्फ
उद्योगपति या डेवलपर थे |
दक्षिण
पंथी रिपब्लिकन सदस्यो और
देश के धनपतियों के सहयोग और
चंदे से ,,उन्होने
पार्टी के चुनावी तंत्र पर
कब्जा किया |
अमेरिका
फ़र्स्ट के नारे ने वनहा के
अशंतुष्ट वर्गो को एक नयी
उम्मीद जगायी |
भले
ही उन्हे "”पापुलर
वोट "”
मे
पराजय मिली |
परंतु
अमेरिका की चुनाव प्रणाली
मे electoral
college नामक
व्यवस्था निर्णायक होता है
|
और
ट्रम्प को इसी तंत्र से विजय
मिली |
बाबीज
और ट्रम्प दोनों ही सार्वजनिक
जीवन से कटे हुए लोग लोकतान्त्रिक
चुनावो मे विजयी होकर ---देश
के नेत्रत्व के शिखर पर पहुंचे
|
ऐसा
नहीं की यूरोप और एसिया मे
अरबपति उद्योगपति -
अपने
देश की राजनीति
मे भाग नहीं लेते थे |
परंतु
उन्हे "”नेत्रत्व
का शिखर मिले "”
ऐसे
उधारण कम ही है |
अधिकतर
नेता राजनीति के माध्यम से
शासन सूत्र सम्हालने के उपरांत
ही शिक्षा --स्वावस्थ
---उद्योग
अथवा व्यापारिक गतिविधियो
मे शामिल हुए |
परंतु
अधिकतर राजनीतिक व्यक्तित्व
किसी न किसी व्यवसाय से आते
थे |
जैसे
वकालत अथवा डाक्टर
या शिक्षाविद
रहे है |
भारत
के स्वतन्त्रता संग्राम मे
भी इनहि व्यवसायो के लोगो का
बोलबाला रहा है |
श्रमिक
या मजदूर संगठनो से सक्रिय
राजनीति मे भी लोग आए |
स्वयं
राष्ट्र पिता महात्मा गांधी
ने भी मजदूरो के संगठन से
आंदोलनो की शुरुआत की थी |
विश्व
व्यापार संगठन के अस्तित्व
मे आने के बाद लोकतान्त्रिक
आंदोलनो की धार भोथरी हो गयी
|
श्रम
संगठनो और मजदूर हितकारी
कानूनों को पूंजीपति के लिए
--उद्योगो
के विकास -के
लिए "””बाधा
निरूपित किया गया --फलस्वरूप
''''
श्रम
कानूनों मे जिन सुविधाओ और
शर्तो का होना आवश्यक था उन्हे
"”सरकार
द्वरा वैकल्पिक करार कर दिया
गया "””
|| उत्पादन
के मूल मे "”श्रम
"”
को
गौण कर दिया |
तथा
पूंजी को सशसक्त कर दिया |
अब
मजदूर --मालिक
बराबरी पर नहीं रह गाये |
क्योंकि
श्रम और कंपनी से संबन्धित
सभी मामले "”पूंजी
के हक़ मे थे -
श्रम
का भाग नकार दिया गया |
कंपनी
कानून मे निवेशको और निर्देशको
की ज़िम्मेदारी की पारदर्शिता
को खतम किया गया |
बहाना
था विश्व व्यापार संगठन !!
शेयर
बाज़ार से देश की उन्नति नापने
वाले अखबारो मे बयान देकर
उन्नति का हवाला दे रहे थे
-----देश
की बेकारी की बदती फौज की ओर
उनका ध्यान नही था |
चेक
रिपब्लिक के बाबीज वनहा के
टीवी चैनलो के मालिक है और
उनके आँय कई उद्योग है |
उन्होने
"”धुनवाधार
प्रचार करके ही यह जीत हासिल
की है "”
ट्रम्प
के मामले मे भी यही है की
उद्योगपतियों के विशाल चंदे
की राशि की मदद से उन लोगो को
पार्टी चुनाव मे पराजित होना
पड़ा जो सक्रिय राजनीति मे
दासियो वर्षो से थे |
परंतु
एक ओर यह तस्वीर लोकतन्त्र
के धन के सामने घुटने टेकने
की है ----तो
वनही दूसरी ओर कोकीन जैसे
मादक पदार्थ के उत्पादन के
लिए कुख़यात "”कोलम्बिया
"”
के
नव निर्वाचित राष्ट्रपति है
– जुआन सांतोष !
जो
2016
मे
शांति का नोबल पुरस्कार प्राप्त
कर चुके है |
जिन्हों
ने बीसियों वर्षो से ग्रहयुध
झेल रहे देश मे --””सरकार
के विद्रोहियो को हथियार
समर्पण कराया "”
| पेशे
से पत्रकार जुआन संतोष एक अर्थ
शास्त्री भी है |
फ्रांस
मे भी माइक्रोन भी सतत राजनीति
मे रहे |
वे
फ्रांस के मौजूदा राजनीतिक
दलो के वीरुध अकेले चुनाव लड़े
--और
विजयी हुए |
न
केवल वे राष्ट्रपति बने वरन
सरकार बनाने के लिए दूमा मे
भी अपने समर्थको को बड़ी संख्या
मे जीता कर लाये |
यद्यपि
चुनाव के पूर्व रूस और कुछ
कट्टर पंथी ताकतों ने "””कुप्रचार
और बदनाम करने वाले झूठे आरोप
''
भी
लगाए |
ऐसा
ही ब्रिटेन और जर्मनी मे हुआ
---जनहा
सार्वजनिक जीवन मे तीस सालो
से अधिक से सक्रिय लोगो को ही
नेत्रत्व मिला |
अब
सवाल आता है की देश की आर्थिक
उन्नति अथवा देश के उद्योगो
की वित्तीय स्थिति ----क्या
एक समान है ??
अक्सर
बड़ी -बड़ी
कंपनियो के करार चाहे वे सरकार
के साथ हो अथवा दूसरे देशो के
साथ ---उसको
नापने का पैमाना होता है
कितने करोड़ का निवेश होगा ---
कितने
समय मे होगा यह अक्सर नहीं
मालूम होता |
दूसरा
इस समझौते को पालन कराने मे
देश और प्रदेश का राजनीतिक
नेत्रत्व बहुत "””साहसी
"”
नही
होता |
उस
एक दिन के आयोजन का प्रचार
-प्रसार
मीडिया मे ज़ोर -शोर
से होता है |
बस
उसके बाद सरकार और उसके अफसर
"””
आश्वासन
देते रहेंगे "”
| सरकारे
उद्योग लगाने के जीतने अनुबंध
करती है ---उनमे
से 10
फीसदी
की भी पूर्ति नहीं होती !
वह
भी निर्धारित समय मे नहीं |
देश
के पूंजीपति अधिकतर बैंको
से क़र्ज़ और शेयर मार्केट से
लिया हुआ उधार ---
ही
उनकी पूंजी होती है |
परंतु
बैंको मे आम आदमी की बचत को
बैंको द्वरा जिस प्रकार
"””बेदर्दी
से इन भगोड़े और दिवालिया लोगो
को कर्ज़ दिया जाता है "””
उसी
का कारण है की आज देश की जनता
का 800000
करोड़
रुपया {{आठ
लाख करोड़ }}
न
केवल अनुत्पादक बना वरन बर्बाद
हुआ |
वनही
देश मे कर्ज़ वसूली के दर से
अब तक दस हज़ार किसान ख़ुदकुशी
कर चुके है !!
दुनिया
मे चल रही जनता और पूंजी की इस
लड़ाई मे अब एक नया मोड भी आ गया
है |
रूस
के राष्ट्रपति ब्लादिमीर
पुतिन को अगले साल चुनाव ''लड़ना
है "”
उनके
राजनीतिक विरोधी और देश मे
बहुत बड़े वर्ग का समर्थन हासिल
किए हुए आलेकसई नवाल्नि को
रूस ने अपराधी घोषित कर रखा
है |
इस
कारण वे निर्वासित हो कर आंदोलन
की अगुवाई कर रहे है |
इसी
बीच
रूस की टीवी स्टार और मशहूर
क्रिस्टीना सोनचक ने पुतिन
के वीरुध अपनी दावेदारी प्रस्तुत
की है |
उन्होने
कहा की अगर नवानी चुनाव लड़ेंगे
तो वे अपना दावा वापस ले लेंगी
|
उनके
पिता केजीबी मे पुतिन के मेंटर
रह चुके है |
और
एक इंटर व्यू मे उन्होने दावा
किया --वे
अपना इरादा पुतिन से भेंट कर
के बता चुकी है |
उधर
आलेक्सेई नवलनी ने क्रिस्टीना
को क्रेमलिन का "”
डमी
उम्मीदवार "”
घोसीत
किया है |
विदेश
से जारी एक बयान मे उन्होने
कहा है की पुतिन अपने चुनाव
को लोकतान्त्रिक रूप देने
के लिए ही अपने गुरु की लड़की
को ही अपने खिलाफ उम्मीदवार
बना रहे है |
जिस
से की वे दुनिया मे यह कह सके
की वे "”चुनाव
मे विजयी होकर राष्ट्रपति
चुने गए है "”
परंतु
यह एक पाखंड ही होगा |
क्योंकि
पुतिन का तंत्र किसी भी विरोधी
को ज़िंदा नहीं रहने देता |
अभी
तक उन पर अपने पाँच आलोचको की
हत्या करवाने का आरोप है |
पुतिन
ने कभी भी अंतर राष्ट्रीय
संगठनो को चुनाव प्रक्रिया
का निरीक्षण करने की इज़ाज़त
नहीं दी है !!
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