गौरी
तुम्हारी तो हत्या होनी ही
थी -क्योंकि
तुम्हारे नाम मे लंकेश
था
क्योकि
यह बहादुर लोग [जिनहोने
आपकी हत्या की }
अपने
को
मर्यादा
पुरुषोतम की संसक्राति का
रखवाला मानते है |
एवं
रावण का वाढ तो राम ने किया
था --यह
तो रामचरित मानस और बाल्मीकी
की रामायण बताती है |
फिर
राम के भक्त ----तो
''लंकेश
'' की
हत्या का पुण्य तो बटोरेंगे
ही ! क्योंकि
रावण का एक संबोधन तो ''लंकेश
'' भी
था !!
सोलह
पन्नो की साप्ताहिक पत्रिका
"” लंकेश
पत्रिके "”
की
संपादक की बर्बर हत्या – ने
यह तो इंगित कर ही दिया की आज
देश मे ''
अभिव्यक्ति
"” की
आज़ादी खतरे मे है |
जो
नेता और लोग निव्र्त्मान उप
राष्ट्रपति हमीद अंसारी के
बयान "”
मुस्लिम
देश मे सहमा हुआ है "”
को
बकवास बता रहे थे उनमे केंद्र
के मंत्री भी थे __-
आज
उनसे पूछा जाना चाहिए की "'
मुस्लिम
तो छोड़ो अब तो "”
राम
'' के
रखवालों को ''लंकेश
नाम से भी नफरत थी ---इसलिए
'''कायरना
हरकत करते हुए निहथे पर गोली
चला दी "”!
\ यह
उन लोगो की भावना और कामना हो
सकती है जो भारत देश मे एक
भगवान और -एक
ही विचार चाहते है !!
जैसा
की हिटलर ने नाजी जर्मनी मे
सभी को फौजी वर्दी पहना कर
एक करने की कोशिस की थी |
इन
लोगो का ज्ञान कितना अधूरा
है अपने देश की सभ्यता की
विविधता का |
मौजूदा
वेदिक धर्म {{
जिसे
कुछ ज्यादा ज्ञानवन और समझदार
हिन्दू धर्म कहते है --हालांकि
वे एक भी ऐसा ग्रंथ दिखा सक्ने
मे समर्थ नहीं है जो 500
साल
पूर्व का हो }}}}
को
वर्तमान स्वरूप देमे वाले
आदिगुरु शंकराचार्य ने आज
से 1400 साल
पूर्व हमारे धर्म की विविधता
का स्वीकार करते हुए वैष्णव
और शाक्त दोनों को धर्म पारायण
माना || परंतु
वर्तमान मे "”धर्म
के रक्षक "”
सिर्फ
राम और वैष्णव तथा शाकाहार
"” को
देश का एकमात्र मार्ग नियत
करने की ज़िद्द कर रहे है |
शास्त्रार्थ
और बहस से विरत रहने वाले इन
महान विद्वानो से प्रश्न
नहीं पूछा जा सकता ---क्योंकि
वह अवज्ञा होता है और सवालो
के जवाब देने मे इनकी कोई रुचि
नहीं क्योंकि वे उत्तर देने
मे असमर्थ है |
इसलिए
अहिंसक शास्त्रार्थ का जवाब
हिंशा अथवा भीड़ होती है |
विगत
कुछ समय से समाज को असहज करने
के लिए उल-
जलूल
कथन को सोशल मीडिया पर "””प्र्माणित
तथ्य'' के
रूप मे पेश किया जा रहा है |
उदाहरण
के लिए ''इस्लाम
'' को
ये मजहब नहीं मानते है वरन उसे
''दिनचर्या
"” बताते
है !! अब
इनहि के नेता सार्वजनिक अवसरो
पर कह चुके है की हिन्दू कोई
धर्म नहीं है "”
वरन
जीवन व्यतीत करने का तरीका
है "” अब
दोनों मे क्या अंतर है !!
इसका
जवाब ये ''विद्वान''
नहीं
देंगे !
6
सितम्बर
की रात्रि को जिस कायरना तरीके
से बंगलोर मे गतरी लंकेश की
"”अज्ञात
हत्यारो द्वरा गोली मारी गयी
- वह
पहला वाकया नही था |
कर्नाटक
मे दो वर्ष पूर्व कलिबुर्गी
जैसे लेखक और तर्कशास्त्री
की भी गोली मारकर हत्या की
गयी थी |
गौरी
का मामला उसिकी पुनरावरती है
| हालांकि
कलिबुर्गी के हत्यारे आज भी
पकड़े नहीं जा सके है --और
एक और व्यक्ति की बालि उनही
शक्तियों द्वरा ले लि गयी है
|
पूना
मे भी धाभोलकर की हत्या भी ऐसे
ही तत्वो द्वरा की गयी थी जो
लोकतान्त्रिक तरीको मे विश्वास
नहीं रखते है |
भारतीयम
आपको सलाम करता है गौरी और
आप के विचारो को हिंशा से दबाया
नहीं जा सकता है |
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