रजिस्ट्रेसन
और "रेरा"
की रार
मे फंसे है भवन -भू
खंड के उपभोक्ता
रियल
एस्टेट रेगुलेशन अथारिटी और
रजिस्ट्रेशन विभाग के दव्न्द
मे उपभोक्ता फंस के रह गया है
| अगस्त
माह के प्रारम्भ मे भवन निर्माता
और कालोनाइज़रस के लिए अपने
भावी प्रोजेक्ट्स का पंजीयन
रेरा मे करना अनिवारी हो गया
था | परंतु
वाणिज्यिक विभाग के प्रमुख
सचिव मनोज श्रीवास्तव ने नौ
पेज के खत के द्वारा रेरा द्वरा
रजिस्ट्री पर प्रतिबंध लगाने
को अनुचित बताते हुए अपने
अधीनस्थ रजिस्ट्री अधिकारियों
को भवन या फ्लॅट अथवा भू खंड
की रेजिस्ट्री यथावत जारी
रखने के निर्देश दिये थे |
इस
पत्र से रेरा के अस्तित्व पर
ही सवाल लग गया था |
परंतु
केंद्र द्वरा निर्मित मूल
अधिनियम मे यह स्पष्ट है की
"”बिना
रेरा मे रजिस्ट्री के किसी
भी भवन या भूखंड का मालिकाना
हक़ वैध नहीं है "”
| मनोज
श्रीवास्तव से जब इस ओर ध्यान
दिलाया गया तो "”उनका
जवाब था की मैंने कानून की
स्थिति को स्पष्ट किया था "”
अब
स्थिति यह है की भवन निर्माता
उपभोक्ताओ को संपातियों का
रजिस्ट्री करा रहे है |
खरीदने
वाले इस विश्वास से मुतमइन
है की उनकी रजिस्ट्री हो गयी
और वे कानून मालिक हो गए है |
परंतु
रेरा के प्रविधानों के अनुसार
ऐसी रजिस्ट्री का कोई महत्व
नहीं है | उनकी
संपती को वैध नहीं नहीं माना
जा सकता ! वे
कभी भी उस से बेदखल किए जा सकते
है ! यह
सही है की रेरा के कानून मे
रजिस्ट्री पर प्रतिबंध का
अधिकार नहीं है |
परंतु
बिना रेरा की मंजूरी के संपती
वैध भी नहीं है |
अब
कहरीदने वाले की हैसियत सिर्फ
"”कब्ज़ेदार
"” की
बची है !!
अब
सरकार को उपभोक्ताओ के संरक्षण
के लिए मनोज श्रीवास्तव के
मत को सपष्ट करना होगा |
वरना
बिल्डर्स तो फटाफट फ्लातों
और मकानो की रजिस्ट्री कर के
पैसा खरा कर लेंगे ----भले
ही बाद मे खरीदार परेशान होता
फिरे ! सवाल
यह है की रेरा का गठन उपभोक्ताओ
के हितो के संरक्षण के लिए
किया गया है ----ना
की प्रमुख सचिव के पत्र के
अनुसार राजस्व वसूलने के लिए
| सचिव
के खत और रेरा के स्पष्टीकरण
के मध्य मे प्रदेश मे हजारो
संपातियों का रजिस्ट्रेसन
हो चुका है---- अब
उसे वैध घोषित करने के लिए
सरकार को नए निर्देश जारी
करने होगे जिस से की प्रमुख
सचिव के पत्र को निरष्त किया
जाये | अन्यथा
रेरा तो ऐसी सभी पंजीकरनो को
''अवैध
ही मानेगा '''
इस
झगड़े के बीच अपना घर का सपना
लिए हुए लाखो लोगो के जीवन भर
की पूंजी भी चली जाएगी |
यह
मसला इसलिए भी महत्वपूर्ण हो
जाता है -
क्योंकि
देश की विशाल कंपनी '''जे
पी इंफ्राटेक ''
के
33 हज़ार
लोगो के अरबों रुपये की धनराशि
फंस गयी है |
क्योंकि
कंपनी को '''दिवालिया
"” घोशीत
किए जाने के लिए आई डी बी आई
बैंक ने 4000
करोड़
की बकाया राशि की वसूली के लिए
अदालत की शरण ली थी !
अब
इन 33 हज़ार
लोगो को आगामी छ माह तक सिर्फ
इंतज़ार ही करना होगा \
उन्होने
जिन फ्लैटो की बूकिंग की थी
उसका आधिपत्य किस हाल मे मिलेगा
इसका जवाब कोई नहीं दे रहा है
| यह
तो स्पष्ट है की अब उन्हे ढाचा
ही मिलेगा अपने पैसो के एवज़
मे !! फूल
फर्नीश्ड फ्लैट तो नहीं मिला
पाएगा |
ऐसी
हालत मध्य प्रदेश मे नहीं बने
इसलिए अभी से रेरा को सतर्क
होना पड़ेगा --वरना
संपती को बेच कर भवन निर्माता
तो विलीन हो जाएँगे ___जब
सरकार को अपने दफ्तर मे दस्तावेज़
नहीं मिलते गूम हो जाते है तब
ऐसी मशीनरी से यह उम्मीद करना
की वह दोषी भवन निर्माताओ को
पकड़ कर उपभोक्ता को न्याय
दिलाएँगी ---ऐसी
ही उम्मीद है जैसी की ''अच्छे
दिन की उम्मीद करना !!!
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