परिवेश
-शिक्षा
-
संस्कार
तालिबानी सोच बदल सकते है ?
आम
तौर पर माना जाता है की शिक्षा
और परिवेश व्यक्ति के सोच और
विचारो को प्रभावित करते है
|
पारिवारिक
संस्कारो के साथ आदमी बड़ा होता
है ,
उनकी
सत्यता और व्यवहारिकता को वह
शिक्षा और अपने अगल -
बगल
के वातावरण मे अपने बने हुए
मूल्यो को परखता है |
वही
फिर उसके जीवन मे निर्णायक
कसौटी बनते है |
परंतु
पश्चिमी शिक्षा और वनहा रहन
सहन तथा खुलापन भी अक्सर लोगो
के कट्टर विचारो को नहीं बदल
पता |
अमेरिकी
राष्ट्रपति ट्रम्प के व्यवहार
से तो यही प्रतीत होता है ,,की
उनकी शिक्षा -दीक्षा
ने उन्हे ज्यादा कूप -मंडूक
ही बनाया है |
हाल
ही मे उन्होने व्हाइट हाउस
मे अपने महिला स्टाफ सदस्यो
को उन्होने नयी गाइड लाइन जारी
की है जो उनके सोच की स्ंकीर्णता
को व्यक्त करता है |
इस
आदेश के अनुसार महिलाए स्त्रियो
के ही परिधान पहने
अब इसका असर यह हुआ की महिला
कर्मी पैंट -कमीज़
और टाई नहीं पहन सकती |
क्योंकि
वे पुरुष की पोशाक मानी जाती
है |
अब
इस भेद को तालिबन के उस फतवे
से बराबरी करे -जिसमे
उन्होने बिना नकाब--बुर्का
पहने किसी भी स्त्री के बाहर
आने पर कोडो की सज़ा निर्धारित
की है |
अफगानिस्तान
-के
तालिबन हो या ईरान के हिजाब
का मसला हो
वह भी ऐसा ही है --की
स्त्री और पुरुष अलग -अलग
है |
कोई
आश्चर्य नहीं की श्रीमान
ट्रम्प अमेरिकी फौज मे महिलाओ
की नियुक्ति अब मात्र मेडिकल
सेवाओ और संचार सेवाओ तक सीमित
कर दे |
जनहा
वे पुरुष सह कर्मियों से अलग
रहे !!अभी
वे फ्रंट मे और हमला करने मे
पुरुषो की बराबरी करती है |
इक्कीसवी
सदी मे अमेरिका जैसे देश मे
यह कबीलाई सोच आखिर किस वजह
से है ??
इसका
खुलासा होना होगा |
एशिया
के उन मुल्को मे जो घोषित रूप
से इस्लामिक राज्य है उनमे
भी इस तरह के तालिबानी हुक्म
नहीं है |
जैसे
मलेसिया -इंडोनेशिया
|
कभी
इराक़ सद्दाम हुसैन के काल मे
पूरी तरह से स्त्री – पुरुष
को बराबरी का दर्जा देता था
|
ईरान
मे भी अयातुल्ला खुमइनी के
प्रादुर्भाव से पहले नर -
नारी
समान अधिकार रखते थे |
अब
नए निज़ाम मे बराबरी खतम हो
गयी है |
आखिर
यह भी तो तालिबानी सोच है |
तब
ट्रम्प को सात इस्लामिक देशो
से हिंसा का खतरा तो हो सकता
है परंतु सोच मे तो दोनों ही
एक जैसे है |
No comments:
Post a Comment