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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 4, 2017

परिवेश -शिक्षा - संस्कार तालिबानी सोच बदल सकते है ?

आम तौर पर माना जाता है की शिक्षा और परिवेश व्यक्ति के सोच और विचारो को प्रभावित करते है | पारिवारिक संस्कारो के साथ आदमी बड़ा होता है , उनकी सत्यता और व्यवहारिकता को वह शिक्षा और अपने अगल - बगल के वातावरण मे अपने बने हुए मूल्यो को परखता है | वही फिर उसके जीवन मे निर्णायक कसौटी बनते है |
परंतु पश्चिमी शिक्षा और वनहा रहन सहन तथा खुलापन भी अक्सर लोगो के कट्टर विचारो को नहीं बदल पता | अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के व्यवहार से तो यही प्रतीत होता है ,,की उनकी शिक्षा -दीक्षा ने उन्हे ज्यादा कूप -मंडूक ही बनाया है | हाल ही मे उन्होने व्हाइट हाउस मे अपने महिला स्टाफ सदस्यो को उन्होने नयी गाइड लाइन जारी की है जो उनके सोच की स्ंकीर्णता को व्यक्त करता है | इस आदेश के अनुसार महिलाए स्त्रियो के ही परिधान पहने अब इसका असर यह हुआ की महिला कर्मी पैंट -कमीज़ और टाई नहीं पहन सकती | क्योंकि वे पुरुष की पोशाक मानी जाती है | अब इस भेद को तालिबन के उस फतवे से बराबरी करे -जिसमे उन्होने बिना नकाब--बुर्का पहने किसी भी स्त्री के बाहर आने पर कोडो की सज़ा निर्धारित की है | अफगानिस्तान -के तालिबन हो या ईरान के हिजाब का मसला हो वह भी ऐसा ही है --की स्त्री और पुरुष अलग -अलग है | कोई आश्चर्य नहीं की श्रीमान ट्रम्प अमेरिकी फौज मे महिलाओ की नियुक्ति अब मात्र मेडिकल सेवाओ और संचार सेवाओ तक सीमित कर दे | जनहा वे पुरुष सह कर्मियों से अलग रहे !!अभी वे फ्रंट मे और हमला करने मे पुरुषो की बराबरी करती है | इक्कीसवी सदी मे अमेरिका जैसे देश मे यह कबीलाई सोच आखिर किस वजह से है ?? इसका खुलासा होना होगा | एशिया के उन मुल्को मे जो घोषित रूप से इस्लामिक राज्य है उनमे भी इस तरह के तालिबानी हुक्म नहीं है | जैसे मलेसिया -इंडोनेशिया | कभी इराक़ सद्दाम हुसैन के काल मे पूरी तरह से स्त्री – पुरुष को बराबरी का दर्जा देता था | ईरान मे भी अयातुल्ला खुमइनी के प्रादुर्भाव से पहले नर - नारी समान अधिकार रखते थे | अब नए निज़ाम मे बराबरी खतम हो गयी है | आखिर यह भी तो तालिबानी सोच है | तब ट्रम्प को सात इस्लामिक देशो से हिंसा का खतरा तो हो सकता है परंतु सोच मे तो दोनों ही एक जैसे है |

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