भ्र्र्ष्टाचार
की लक्ष्मण रेखा के लिए लाये
अध्यादेश -
44
हज़ार
यूरो की रिश्वत है कबूल सरकारी
मुलजिम को
रिश्वत
के कई रूप भारत मे दिखाई पड़ते
है – पटवारी साहब "”शुक्राना
"”
लेते
है तो पुलिस दारोगा नजराना
और बड़े अफसर "”भेंट
या गिफ्ट '
लेते
है |
निर्माण
कार्यो मे इंजीनीयर साहब
"”कमीशन
"”
लेते
है सरकारी खरीद मे "”हिस्सा"”
होता
है |
अभी
एक मामला सामने आया है --जिसमे
भोपाल मे बैठे आला हज़रत ने
बजट पास करने पर स्वीक्रत
राशि पर अपना "””कट
"”
भिजवाने
की मांग फोन पर ही कर ली थी |
रिश्वतख़ोरी
इतनी व्यापक हो गयी है की अब
बाज़ार मे लोग इसे भ्रष्टाचार
की जगह शिष्टाचार कहने लगे
है |
कुछ
इसी परंपरा मे योरोप के देश
रोमानिया ने तो तीस -
बत्तीस
लाख की रिश्वत से कम की राशि
म्के गोलमाल -
लेनदेन
को
संगे अपराध ही नहीं माना है
|
इस
से अधिक की राशि
को ही गंभीर अपराध माने जाने
संबंधी अध्यादेश जारी किया
है |
जिसका
वनहा की माइनस डिग्री तापमान
मे लोग सदको पर विरोध जाता रहे
है |
भारत
होता तो यह सब करने की ज़रूरत
ही नहीं थी --बस
मन माफिक जांच एजेंसी और
सहानुभूति रखने वाला ज़ ही
चाहिए था |
बीस
साल पहले सैनिक तानाशाही से
छूटकरा पाने के लिए रुमनीय
के नागरिकों ने बड़ा आंदोलन
किया -प्रजातन्त्र
लाने के लिए -वोट
से चुनी सरकार बनाने के लिए
परंतु गत 2फेरवऋ
को एका बार फिर बीस लाख नागरिकों
ने राजधानी बुखारेस्ट मे
संसद भवन पर घेरा डाला |
माइनस
डिग्री की ठंड मे नर -
नारी
राष्ट्रपति द्वारा सोशल
डेमोक्रेट पार्टी के नेता
द्रागनिया को बचाने के लिए
इस कानून को
ढाल
बनाने का आरोप जनता द्वारा
लगे |
राजधानी
के अलावा देश चार प्रमुख नगरो
और बंदरगाहों मे भी जनता -
जनार्दन
की भीड़ ने आक्रोश जताया |
वनही
सत्तारूद सोशल डेमोक्रेट
पार्टी के नेता सोरिन ने कहा
की
की इस अध्यादेश का उपयोग जेल
मे बदती भीड़ को कम करने के लिए
लाया गया है |
इसमे
कहा गया है की जो लोग हिसा से
जुड़े मामलो मे बंदी है उन्हे
नहीं छोड़ा जाएगा |
केवल
उन लोगो को को छोत मिलेगी जीके
ऊपर 44
हज़ार
यूरो से कम की गड़बड़ी के आरोप
है |
मतलब
भारतीय हिसाब से 32
लाख
रुपये की रिश्वत "”गंभीर"”
अपराध
नहीं ह
यह
उस देश मे हो रहा है जिसने 1986
मे
टनशाई का अंत कर वोट से चुनी
सरकार को राज -
काज
चलाने का अधिकार दिया था |
सत्तरूद
पार्टी द्वरा कहा जा रहा है
की 31
जनवरी
का अध्यादेश यूरोपियन यूनियन
की शर्तो के कारण उन्हे ऐसा
करना पद रहा है |
जबकि
मीडिया और विरोधी दल पूछ रहे
है की दिसम्बर मे हुए संसदीय
चुनावो मे इस प्रकार के सुधार
की कोई बात नहीं की गयी थी |
अब
एक महीने बाद ही ऐसा क्यो ?
अंतराष्ट्रीय
मीडिया द्वारा इस आंदोलन को
बहुत अहमियत दी जा रही है
--क्योंकि
इस अध्यादेश के कारण 2500
लोग
जेल से रिहा हो कर अपराध मुक्त
हो जाएंगे |
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