क्या
तीसरा क्रूसेड़ अटलांटिक के
तट पर लड़ा जाएगा ?
बारहवी
सदी मे ईसाई और इस्लाम के बीच
जेरूसलम के पवित्र नगर पर
कब्जे को लेकर हुए इस युद्ध
मे ब्रिटेन के सम्राट रिचर्ड
जिनहे लायन हार्ट भी कहा जाता
है उन्होने इस्लाम फौज के
सेनापति और मिश्र के बादशाह
सलादीन से अपनी फौज के लिए
सागर तट पर खड़े जहाजो का रास्ता
मांगा था – जो सलादीन ने मंजूर
किया था |
भूमध्यसागर
पर हुए इस युद्ध के बाद धर्म
के नाम पर युद्ध होना बंद हो
गया था |
परंतु
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड
तृम्प द्वरा सात इस्लामिक
देशो के नागरिकों के वहा आने
पर प्रतिबंध लगाने से इन देशो
से कूटनीतिक संबंध प्रभावित
होने की पूरी आशंका है |अभी
ये संबंध है |
ये
देश है जहा इस्लाम के अनुयाईओ
का बहुमत है |
येमान
-
लीबिया
-
सुडान
-
सोमालिया
-
सीरिया-
और
इराक़ तथा ईरान है |
शुक्रवार
27
जनवरी
के इस प्रशासनिक आदेश से ट्रम्प
ने खतरनाक टिप्पणी भी की "””हमे
उनकी ज़रूरत नहीं है -हम
उन लोगो को प्रवेश नहीं दे
सकते है जिनसे हमारे सैनिक
युद्ध कर रहे है |
“”” इस
बयान से उन्होने अपने प्रशासन
की नीति को दिशा दे दी है |
उन्होने
इस आदेश को होमलैंड --एफ
बी आई -
आब्रजन
आदि सभी संबन्धित इकाइयो को
भेज कर नए प्रवेश नियम बनाने
का निर्देश दिया है |
हालांकि
ट्रम्प साहब को अपने फैसले
क भरी कीमत चुकाने का अंदेशा
व्यक्त किया जा रहा है |
सबसे
पहली बलि तो अटार्नी जेनरल
हुई जिनहोने इस फैसले को
असंवैधानिक बताते हुए इस आदेश
की अदालत मे पैरवी से इंकार
कर दिया |
उन्हेने
हटाने के बाद विदेश विभाग के
500
करम्चरियों
ने एक स्मरण पत्र भेज कर इसे
गलत कदम बताया |
जिस
पर ट्रम्प के प्रैस सलाहकार
ने कहा "”जिनहे
इस प्रशासन के निर्देशों को
मानने से तकलीफ है --वे
नौकरी छोड़ कर जा सकते है |
उम्मीद
है सौ एक लोग पद त्याग की सोच
रहे है |
उदाहर
चार राज्यो वाशिंगटन राज्य
-कोलारेडों
सहित चार राज्यो की सरकारो
ने फेडरल अदालत मे इस आदेश को
चुनौती दे रखी है |
माइक्रोसॉफ़्ट
के प्रबंधन ने वाशिंगटन राज्य
के गवर्नर को सूचित कर दिया
है की यदि इस आदेश को लागू करने
की कोशिस हुई तो वे अपने व्यापार
को पड़ोसी देश मेकसिको मे चले
जाएंगे |
गौर
तलब है की माइक्रोसॉफ़्ट के
मालिक बिल गेट है जो दुनिया
के सबसे धनी व्यक्ति है ---यानि
ट्रम्प से दो सौ गुना संपाती
के मालिक |
आईबीएम
भी इस ओर विचार कर रहा है |
इन
दो कंपनियो का कारोबार अम्रीका
के राजस्व और नौकरी के अवसरो
को काफी कम कर सकता है |
जिन
सात देशो के नागरिकों को वीसा
देने मे सुरक्षा एजेंसिया
को कड़ाई से जांच -
परख
के निर्देश से अधिकान्स लोगो
को अम्रीका मे प्रवेश नहीं
मिलने की गुंजाइश है |
इसलिए
नहीं की वे किसी आतंकी या
आतंकवादी गुट से संबंध रखते
है ----वरन
इस लिए की अमेरिकी स्तर पर इस
देश के नागरिक सूचनाए उपलब्ध
करने मे नाकाम होंगे |
क्योंकि
अमेरिका की भांति प्रत्येक
नागरिक का डाटा इन अविकसित
देशो मे नहीं सुलभ होता |
एक
तरह से इन देशो को प्रवेश नहीं
देने का यह "”द्रविड़
प्राणायाम "”
ही
है |
इस
आदेश का अरब देशो मे भरी विरोध
हो रहा है |
अभी
तक जो आतंकी संगठन आपस मे लड़
-भीड़
रहे थे --उनके
लिए अब अकेला शत्रु अमेरिका
बन गया है |
9/11 की
घटना से यह तो साफ है की जिस
प्रकार के छापामार युद्ध मे
इन मुस्लिम देशो के नागरिक
प्रवीण है -उनको
रोकने मे वनहा का प्रशासन उतना
ही नाकाम है |
अरब
और अफ्रीका के इस्लाम के
अनुयायियों की संख्या देखते
हुए यह कहना ठीक ही होगा की
''इनहोने
एक सिरफिरे ''
कौम
से ना केवल दुश्मनी मोल ली है
-वरन
उन्हे एक करने मे भी सहायक
होंगे |
अब
अपने आदेश को सही ठहरने के लिए
अमेरिका ने दुनिया के छोटे
से देश कुवैत का सहारा किया
है |
जिसने
भी अफगानिस्तान -
पाकिस्तान
-
सीरिया
-
और
ईरान तथा इराक के नागरिकों
के वनहा आने पर पाबंदी लगा दी
है |
एक
तरह से यह क़ाबू मे आए राज्य से
हां कहलाने जैसा है |
गौर
तलब है की जब इराक ने सद्दाम
हुसैन के नेत्रत्व मे कुवैत
को दो डीनो मे अपने अधीन कर
लिया था तब अमेरिका ने ही इस
देश को उनके आधिपत्य से मुक्ति
दिलाई थी |
कुवैत
के इस फैसले से ना केवल उसने
अरब दुनिया के देशो से अपने
को अलग कर लिया है वरन उनकी
दुश्मनी भी मोल ले ली है |
इसे
कहते है नादां की दोस्ती मे
ढेलो की सनसनाहट होना |
अब
कुवैत को तो एक छोत्या सा धमाका
ही हिला देगा |
जिस
से बचाने की ताकत अमेरिका मे
भी नहीं है |
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