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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 9, 2017

क्या अपराध को सिद्ध करना पुलिस की ज़िम्मेदारी नहीं है ?
निरपराध लोगो के सालो जेल की हवालात मे रहने का दोष किसका ?
यूं तो सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया है जिसमे नागरिक को गिरफ्तार करने के लिए सिर्फ पुलिस की एक रिपोर्ट ही काफी है ---भले ही वे आप को दोषी सिद्ध ना कर सके फिर भी आप सालो मे जेल बिताने के लिए मजबूर है | एवं इसमे अदलते भी अब आप की मदद नहीं कर सकेंगी | क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की खंड पीठ के न्यायाधीश दीपक मिश्र और अमिताव रॉय ने एक मुकदमे मे ऐसा ही निर्देश तेलंगाना और आंध्रा उच्च न्यायालय को दिया |

मामला ऐसा है की आंध्र उच्च न्यायालय ने हबीब अब्दुल्ला की पुलिस द्वारा गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी | उन्होने पुलिस को प्रार्थी के विरुद्ध दोष सिद्ध होने तक गिरफ्तार किए जाने से रोका था | उच्च न्यायालय ने गिरफ्तार करने के बाद विवेचना के नाम पर अब्दुल्ला को जेल मे रखने की इजाजत नहीं दी | आंध्र पुलिस ने उच्च न्यायालय ने इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे अपील दायर की थी | वास्तव मे उच्च न्यायालय मे प्रार्थी की ओर से नागरिक के मूल अधिकार का वास्ता देते हुए कहा था की विवेचना के नाम पर पुलिस आतंक के नाम पर सालो जेल मे रखती है | एवं सालो जेल मे रहने के बाद प्रारम्भिक अदालत मे ऐसे लोग अक्सर बरी हो जाते है | अतः पर्याप्त सबूत मिलने तक "”निरपराध "” का जेल मे रहना उसके स्वतन्त्रता के अधिकार का हनन है |

इस संदर्भ मे केरल और आंध्रा के कई मामलो का हवाला दिया गया | परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस के गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा | अब सवाल यह है की किसी भी निरपराध को विवेचना के नाम पर सालो "”हवालात "” के नाम पर सेंट्रल जेल मे अपराधियो के साथ रखना-- क्या न्याय है ?? सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम जरूर है ,पर जरूरी नहीं वह न्यायोचित भी हो | अभी तक ऐसे निरपराध लोगो की जवानी के बीस -बीस साल जेल मे रहने के बाद जब वे बाहर आते है तब तक उनकी आधी ज़िंदगी बर्बाद हो चुकी होती है | जिसका ना तो कोई दोषी होता है और ना ही विवेचना अधिकारी को कोई सज़ा अदालत से मिलती है |
दूसरे प्रजातांत्रिक देशो मे ऐसे मामलो मे भुक्तभोगी को मुआवजा मिलता है | यह उसका अधिकार होता है | परंतु भारत मे पुलिस और विवेचना एजेंसी को कभी भी मुकदमे की असफलता के लिए दोषी नहीं करार दिया जाता | आखिर क्यो ? क्या नागरिक किसी पुलिस स्टेट मे रह रहा है ? क्या नागरिक के मूल अधिकार सिर्फ संविधान के पन्नो तक ही सीमित है ? क्या सर्वोच्च न्यायालय का हालिया का फैसला सिर्फ पुलिस के हित के लिए है ? नागरिक कनही कानून की दुनिया मे गायब नहीं हो गया ? जिस नागरिक के लिए कानून और संविधान बने वह सरकारी तंत्र के सामने बेबस हो गया है ? अगर हाइकोर्ट नागरिक को पुलिस की मनमानी गिरफ्तारी से नहीं बचा सकेगा तब संविधान के अनुच्छेद 226 का अर्थ ही व्यर्थ हो जाएगा | सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक बनाम सरकार के मध्य सरकार के पक्ष मे फैसला दिया | जिसकी संविधान पीठ मे विवेचना होना चाहिए |

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