मोदी
जी महात्मा ने अपना चित्र
हरिजन या यंग इंडिया तक मे
नहीं छापा था – आपने तो सभी
हद पार कर दी
महात्मा
गांधी -
की
महानता मोदी जी तुम क्या
समझोगे जिनके सिद्धांतों पर
चलकर रंगभेद के खिलाफ अहिंसक
लड़ाई मार्टिन लूथर किंग सेकंड _
नेल्सन
मंडेला --डेस्मंड
टूटू जैसे संगर्षशील नेताओ
ने अपने देश के लोगो को चमड़ी
के रंग के आधार पर उंच -
नीच
को समाप्त किया था |
आप
और आप के साथी --सहयोगी
तो सवालो से बचते है और विरोधियो
पर हिंसक हमला करते है |
इन
लोगो ने नस्ली भेदभाव को बंद
कराया ----- |
उनके
प्रयासो से जनता को राहत मिली
तो --आपके
अहंकार भरे कदम नोटबंदी से देश के करोड़ो
लोग माहे भर लाइन मे लगे रहे
--किसानो
को बीज -
खाद
और बिजली के बिल के भुगतान के
लिए उनका ही पैसा जरूरत पर
नहीं मिला |\
हजारो
लोगो को शादियो की तारीख टालनी
पड़ी |
और
सबसे दुखद रहा की बंकों से
अपनी जमा -
पूंजी
निकालने की लाइन मे 90
से
अधिक लोगो की मौत हो गयी |
मोहनदास
करमचंद गांधी कभी सत्ता के
भूखे नहीं रहे ----और
आप तो सत्ता के लिए कोई भी छल
-छदम
कर सकते हो ||
जरा
अपने को तौलो तो पाओगे की तुम
महात्मा के "”
पासंग
"”
भी
नहीं |
महात्मा
ने तो बिहार मे आंदोलन के दौरान
एक ही कपड़े मे स्नान् करती
महिला को कपड़ो को बदन मे ही
सूखाने की मजबूरी ने उन्हे
"आजीवन
"
अधोभाग
नंगा ही रखने का निश्चय किया
जिसे 30
जनवरी
1948 मे
नाथु राम गोडसे द्वारा हत्या
किए जाने तक निभाया |
तालाब
मे कमल भी खिलता है पर उससे
सैकड़ो गुना अधिक 'जलकुंभी
'
होती
है |
जो
हरियाली का भ्रम आंखो को देती
है ----परंतु
जानकार समझते है की यह "'किसी
काम लायक नहीं "”सिवाय
जलाने के |
सर्वभाक्षि
बकरी और ऊंट भी इसे नहीं खाते
है |
गुजरात
के तालाब के कमल तो महात्मा
थे और नरेंद्र मोदी जी आप
जलकुंभी ही है|
जो
दिखने मे बहुत हारा -
भरा
लगता है ,परंतु
होता वह धोखा ही है क्योंकि
ईंधन के अलावा उसका कोई उपयोग
होता ही नहीं है |
खादी
महात्मा के लिए एक उत्पाद
मात्र नहीं था ----वह
लंकाशायर और मानेचेस्टर से
आने वाले विदेशी कपड़ो के विरोध
का और 'स्वावलंबन'
का
प्रतीक था |
आपने
उसे खड़ी ग्रामोद्योग की बपौती
बना कर महात्म्न की विरासत
ही सौप दी !
घर
-
घर
चरखा और गाव -
गाव
मे करघा ग्रामीण भारत की खुद
मुख़ातरी का चिन्ह था |
वह
लोगो को काम देता था-----
नौकरी
नहीं !
अब
आप उसे मजबूरी का काम बना रहे
हो |
जो
स्वीकार नहीं हो सकता |
राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ सदैव से महात्मा
गांधी का विरोधी और आलोचक रहा
है |
इस
संगठन की देश की आज़ादी के
संग्राम मे कोई भूमिका नहीं
रही |
उल्टे
इनके कई नेताओ के अंग्रेज़ो
का भेदिया होने के सबूत राष्ट्रीय
अभिलेखागार मे है |
परंतु
महात्मा ने इस संगठन और इसके
नेताओ के बारे मे कोई दुर्भावना
नहीं रखी |
परंतु
संघ ने इसके विपरीत ही कार्य
किया |
मोदी
जी महात्मा नोआख़ाली मे भी
पुलिस या सेना की सुरक्षा ले
कर नहीं गए थे जबकि सरदार और
नेहरू जी इस बात पर ज़ोर दे रहे
थे |
और
आप तो बिना लाव लश्कर और तीन
चक्र की सुरक्षा मे चलते हो
|
वे
मौत से डरते नहीं थे --और
आप उस से भयभीत है |
अरे
कैसे बराबरी की कोशिस कर रहे
हो |
अंत
मे एक पौराणिक कथा से आलेख का
समापन करना चाहूँगा----
द्वारिका
के वासुदेव श्री कृष्ण की
ख्याति सुनकर अनंग के राजा
ने अपना नाम ''पौंडर
वासुदेव ''
रख
लिया |
\ उनही
की भांति सर पर मोर पंखी लगाता
था और हाथ मे एक चक्र भी लेता
था जैसे वासुदेव सुदर्शन धारण
करते थे |
वह
अपनी प्रजा से जबर्दस्ती अपनी
जय बुलवाता था |
ऐसा
ना करने वालो को सज़ा देता था
|
श्री
कृष्ण ने उसे बहुतेरा समझाया
परंतु पौंडर हमेशा अपमानजनक
शब्दो से ही जवाब देता था |
और
हर कथा की भांति एक दिन श्री
क्रष्ण ने पौंडर का अंत कर
दिया |
और
उसकी प्रजा को सुखी कर दिया
|
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