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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 5, 2017

AM A TROLL उस किताब का नाम का नाम है जिसे स्वाति चतुर्वेदी

स्वाति चतुर्वेदी के भाजपा और संघ के डिजिटl
ने लिखा है | |वे एक खोजी पत्रकार है | यह किताब सत्तारूद दल भारतीय जनता पार्टी और संघ तथा उसके "”साइबर योद्धाओ "” से उनके सतत संगरश की कहानी है | हो सकता है की उनके अपने पूर्वाग्रह हो परंतु भारत ऐसे गणतन्त्र मे "”असहमति "” का मोल क्या सोश्ल मीडिया पर चरित्र हत्या – धमकाना --एवं नुकसान पहुचाने की '''संगठित कोशिस '' अगर किसी राज नीतिक दल द्वारा या उसके पालित पोषित संगठन द्वारा की जाती है तो यह यह लोकतन्त्र के लिए ही खतरा है की जो अपने विरुद्ध आलोचना को कुचलना या मटियामेट करने का कार्य करे तो निश्चित ही देश के आज़ादी पसंद लोगो को एक होने की जरूरत है

171 पेज की अङ्ग्रेज़ी मे लिखी इस पुस्तक पर विश्वास करने का आधार है टिवीटर और फेसबूक पर लिखी गयी भद्दी टिप्पणिया के फोटोग्राफ्स भी दिये है जो उनके कहे को सच साबित करते है |
जैसा की माहौल की हवा मे फैला हुआ था - अब इसे सुगंध कहे या दुर्गंध पाठक अपनी रुचि से तय कर सकता है | एक अखबार नवीस के नाते मुझे ये कागजी सुबूत सही लगते है | परंतु हो सकता है की अदालत के लिए नाकाफी हो ---जैसा की सहारा रिश्वत कांड मे सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले मे कहा की इनकम टैक्स द्वरा पकड़े गए कागजातों मे दरी पर मुख्य मंत्रियो को उनके मार्फत दी गयी राशि को --- रिश्वत का सबूत नहीं माना जा सकता |

परंतु यह तो साफ है की संघ और बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव मे जिस प्रकार ''अणिमा और लघिमा '' सिद्धियो का प्रयोग कर विरोधियो विशेस कर नेहरू और गांधी परिवार के सदस्यो के बारे मे भद्दी भद्दी अफवाहे फैलाने और चरित्र हत्या के लिए फोटो और उनमे मर्फिंग करने का संगठित प्रयास करने का खुलासा किया गया है | लेखिका ने राम माधव और अरूण शौरी एचके दुआ जैसे स्व्स्थपित नामो से बात की है |

इस पुस्तक से आम आदमी का यह भ्रम टूट जाएगा की फेसबूक या व्हात्सप्प पर तथा टिवीटर पर बड़े लोगो द्वरा "सही ही नहीं बोला जाता बहुत कुछ वह लिखा जाता है जो ;'''सत्य''' कतई नहीं होता वरन उसके विपरीत होता है

किसी राजनीतिक दल द्वारा अपना डिजिटल प्रचार करना बिलकुल वाजिब है --परंतु अपने विरोधियो के खिलाफ "”चरित्र हत्या और अफवाहे फैलाना तो निंदनीय ही है | निर्वाचन आयोग भी इसे कानूनन अपराध ही मानेगा | अगर सोश्ल मीडिया पर ऐसे संगठित रूप से कब्जा करने के प्रयास होंगे तब तो अखबार और चैनलो की भाति यह भी अविसवासनीय बन जाएगा | मेरी रॉय इसको कम से कम पत्रकारो को तो पदना ही चाहिए |

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